दलबदल की सियासत कांग्रेस की विधायक निर्मला सप्रे पर फंसा सियासी पेंच

दलबदल की सियासत कांग्रेस की विधायक निर्मला सप्रे पर फंसा सियासी पेंच



भोपाल। सागर जिले की बीना विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक निर्मला सप्रे का मामला मध्यप्रदेश की राजनीति में चर्चा का केंद्र बना हुआ है। कांग्रेस ने उन्हें भाजपा का सदस्य मानते हुए अपने साथ न बैठाने का फैसला कर लिया है। हालांकि, विधानसभा की सदस्यता पर अंतिम निर्णय शीतकालीन सत्र से पहले होने की संभावना है।
कांग्रेस का आरोप भाजपा का लोकतंत्र पर हमला
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने भाजपा पर लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करने का आरोप लगाया है। जीतू पटवारी का कहना है कि भाजपा ने देशभर में 600 निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को दलबदल कराया है। उन्होंने निर्मला सप्रे की सदस्यता समाप्त करने की प्रक्रिया में देरी पर सवाल उठाते हुए इसे भाजपा की साजिश करार दिया।
निर्मला सप्रे: दलबदल के आरोप और भाजपा की भूमिका
लोकसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की मौजूदगी में निर्मला सप्रे के भाजपा में शामिल होने की घोषणा हुई थी। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार चंद्रभूषण सिंह बुंदेला के खिलाफ काम किया, जिससे भाजपा को सागर लोकसभा सीट पर जीत मिली। इसके बाद से ही कांग्रेस ने उनकी सदस्यता रद्द करने के लिए विधानसभा अध्यक्ष को आवेदन दिया, लेकिन अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ।
कांग्रेस की रणनीति और भाजपा की चुप्पी
कांग्रेस ने सप्रे को अपने विधायक दल की बैठक में न बुलाने और सदन में उनके साथ न बैठाने का निर्णय लिया है। यह कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिससे पार्टी स्पष्ट संदेश देना चाहती है कि दलबदल करने वालों के लिए कोई जगह नहीं है। दूसरी ओर, भाजपा ने इस मामले में चुप्पी साध रखी है, जिससे राजनीतिक ध्रुवीकरण और गहरा रहा है।
क्या होगा शीतकालीन सत्र में?
16 दिसंबर से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र से पहले इस मामले का हल निकालने का दबाव बढ़ रहा है। कांग्रेस ने अदालत जाने की भी तैयारी कर ली है। अगर सदस्यता समाप्त होती है, तो बीना में उपचुनाव होंगे, जिसके लिए कांग्रेस ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है।
निर्मला सप्रे का मामला भाजपा की रणनीतिक सफलता और कांग्रेस के लिए चुनौती दोनों को दर्शाता है। यह प्रकरण दलबदल विरोधी कानून की सीमाओं और राजनीतिक दलों की वैचारिक कमजोरी को उजागर करता है। भाजपा ने सप्रे को “घड़ी के कांटे की तरह बीच में लटकाए” रखा है, जिससे वह कांग्रेस को कमजोर कर सके। कांग्रेस की आक्रामकता इस बात का संकेत है कि वह उपचुनाव में इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश करेगी।
निर्मला सप्रे प्रकरण मध्यप्रदेश की राजनीति में दलबदल और लोकतांत्रिक मूल्यों के संघर्ष का प्रतीक बन चुका है। शीतकालीन सत्र से पहले इस मामले का समाधान राजनीतिक गर्मी को और बढ़ा सकता है। कांग्रेस और भाजपा, दोनों के लिए यह मुद्दा अपनी-अपनी राजनीतिक साख को साबित करने का मंच बन गया है।

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