जम्मू-कश्मीर विधानसभा में अनुच्छेद 370 की बहाली के प्रस्ताव ने राज्य में राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है। इस प्रस्ताव ने BJP और अन्य राष्ट्रवादी दलों के बीच नाराजगी की लहर फैलाई है, जो इस विशेष दर्जे की पुनर्स्थापना को राष्ट्रीय एकता के खिलाफ मानते हैं। BJP विधायकों ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए विधानसभा में दस्तावेजों की प्रतियां फाड़ीं और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का पुतला जलाकर अपना आक्रोश प्रकट किया। इससे विधानसभा के भीतर और बाहर तनावपूर्ण स्थिति बन गई।
अनुच्छेद 370, जो जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करता था, 2019 में हटा दिया गया था। अब इस प्रस्ताव के माध्यम से इसका बहाल करने का प्रयास किया जा रहा है, जो नेशनल कांफ्रेंस जैसी पार्टियों के लिए एक भावनात्मक और राजनीतिक मुद्दा है। उमर अब्दुल्ला और उनकी पार्टी का मानना है कि इससे राज्य की स्वायत्तता और पहचान को पुनः स्थापित किया जा सकता है। दूसरी ओर, BJP इसे भारत की अखंडता और संप्रभुता के खिलाफ बताते हुए इसका तीखा विरोध कर रही है।
केंद्र सरकार के पास संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राज्य सरकार को बर्खास्त करने का अधिकार है, लेकिन यह कदम विशेष परिस्थितियों में ही उठाया जा सकता है। अगर राज्य में संवैधानिक तंत्र पूरी तरह से विफल हो जाता है, तो केंद्र सरकार राष्ट्रपति शासन लागू कर सकती है। हालांकि, यह अधिकार न्यायिक समीक्षा के अधीन है, और सुप्रीम कोर्ट ने S.R. Bommai मामले में स्पष्ट किया है कि अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।
इस स्थिति में, केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकार को तभी बर्खास्त कर सकती है, जब यह साबित हो कि राज्य सरकार के कदम संविधान के प्रावधानों के खिलाफ हैं और वहां गंभीर संवैधानिक संकट उत्पन्न हो गया है।
अतः जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की बहाली का प्रस्ताव राष्ट्रीय राजनीति के लिए एक संवेदनशील मुद्दा बन गया है, जहां संवैधानिक प्रावधानों और राष्ट्रीय अखंडता के बीच संतुलन बनाए रखने की चुनौती केंद्र सरकार के सामने है।
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