बांधवगढ़ के जंगलों में हुआ हादसा प्रकृति की निर्दयता का एक उदाहरण है, जिसने नन्हे गजराज के जीवन में गहरा दुख भर दिया। यह कहानी सिर्फ एक हाथी के बच्चे की नहीं है, बल्कि हर उस जीव की है जो अपने परिवार के साथ, अपनी मां की छाया में खुद को सुरक्षित और संपूर्ण महसूस करता है। जब वह छाया अचानक उससे दूर हो जाए, तो जीवन की कड़ी सच्चाई उसे एक गहरे अवसाद में धकेल देती है।
बांधवगढ़ के सालखनिया बीट में जब दस हाथियों की मौत की खबर आई, तो प्रदेश देश शोकाकुल हो गया। लेकिन इस घटना का सबसे गहरा प्रभाव उस नन्हे गजराज पर पड़ा, जिसने अपनी मां को इस हादसे में खो दिया। अपनी मां और परिवार की उपस्थिति के बिना, वह केवल एक खोया हुआ नन्हा जीव था, जो अपने आस-पास के विशाल जंगल में अकेला, डरा हुआ और व्याकुल घूम रहा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो गया और उसकी मां उसे क्यों छोड़कर चली गई। उसके मन में एक सवाल था—वह अपनी मां के पास वापस कब जा पाएगा?
अपनी मां की तलाश में वह जंगल में इधर-उधर भटकता रहा। उसकी हरकतें उसकी बेचैनी और दु:ख को बयां कर रही थीं। कभी वह अपनी सूंड ऊपर उठाकर हवा में सूंघता, जैसे मां की गंध ढूंढने की कोशिश कर रहा हो। कभी वह जमीन पर सूंड रखकर कुछ सूंघने लगता, मानो किसी निशान को तलाश रहा हो। उसकी छोटी-छोटी आंखों में एक गहरी उदासी थी, जो उसके अकेलेपन और खोए हुए बचपन का प्रतीक बन गई थी। कटनी के पास महानदी के किनारे वह इसी व्यथा से पीड़ित दिखा, जहां स्थानीय ग्रामीणों ने उसकी पीड़ा को समझा और वन विभाग को सूचना दी।
वन विभाग के अधिकारी भी इस अनाथ हाथी की हालत को देखकर द्रवित हो उठे। प्रशिक्षित हाथियों की एक टोली और करीब सौ वनकर्मी उसे बांधवगढ़ के जंगल वापस लाने की कोशिश में जुट गए। यह काम आसान नहीं था। नन्हे गजराज के मन में डर और शंका थी, और वह अपने दुख में इतना डूबा हुआ था कि उसे समझाना कठिन था। लेकिन वन कर्मियों ने सूझ बूझ से सुरक्षित बांधवगढ़ रिजर्व फॉरेस्ट तक पहुंचाया, जहां उसकी देखभाल शुरू हुई।
उसके मन में जो दर्द था, उसकी कल्पना करना भी कठिन है। एक बच्चे के लिए उसकी मां ही उसकी दुनिया होती है, और मां का सहारा खो देना उसके पूरे अस्तित्व को हिला देने के बराबर है। नन्हे गजराज की सूंड से उसकी मां की गंध का वह आखिरी निशान भी खो चुका था। उसकी चिंघाड़ में उसकी टूट चुकी आत्मा की आवाज सुनाई देती है । उसकी हर गतिविधि में एक तड़प है, जो उसकी स्थिति का सजीव चित्रण कर रही है।
वन विभाग के वन कर्मी उसकी देखभाल में पूरी मेहनत कर रहे हैं, लेकिन उसकी मां की कमी को पूरा करना उनके लिए भी नामुमकिन है। हालांकि, प्रशिक्षित हाथियों की टोली उसे अपनाने का प्रयास कर रही है, और वन विभाग उसे सुरक्षित माहौल देने का पूरा प्रयास कर रहा हैं। लेकिन इस मासूम के मन में जो घाव हैं, वे शायद ही भर पाएंगे।
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