
(मंच पर हल्का धुंधलका है। दूर मंदिर की घंटियाँ बज रही हैं। कहीं कोई ढोलक की थाप, आयातित स्पीकरों से मेरे अंगने में तेरा क्या काम है’ वाला रिमिक्स बजता है। गायों की मिमियाहट, बच्चे धूल में खेलते हुए, और पीपल के पेड़ के नीचे बुजुर्ग बैठे हैं। चूल्हों से उठता धुआं और गुड़-चना बेचती एक बूढ़ी महिला मंच के किनारे पर बैठी है।)
(फीके नीले प्रकाश में मंच खुलता है। धीरे-धीरे मंच पर पात्रों का प्रवेश होता है — कोई बीड़ी सुलगाता हुआ, कोई लोटा लिए आता है, तो कोई मोबाइल में गाना बजाता हुआ।)
पात्र परिचय मंच पर स्वाभाविक गतिविधियों के साथ

कक्का – पीपल के नीचे खाट पर बैठे हैं। आँखों में अनुभव, चेहरे पर गाँव की मिट्टी की आत्मीयता।
घसीटा – बगल में मोबाइल हाथ में लिए बैठा है, नए जमाने का जागरूक युवा।
चौरंगी लाल – चटख पीला कुर्ता, जेब में पेन, आंखों में चालाकी। हर सरकार में फिट हो जाने वाला।
दरबारी लाल – गमछा ओढ़े, सबकी बातें सुनने वाला और पीछे से प्रचारक।
फफूंदी लाल – किसान वेश में, लाठी लिए हुए, पुरखों की जमीन बचाकर लौटा है कोर्ट से।
फोकट लाल – मूढ़े पर बैठा, हवा में उड़ती बातों का ज्ञानी। सबकुछ मुफ्त में पाने वाला।
पुसऊ राम – सबकी बात पर हां मिलाने वाला, अवसरवादी।
(अब मंच पर दीप जलाया जाता है। धीमे स्वर में “राम राम जय राजा राम” बजता है। सब खामोश हो जाते हैं।)
(मंच पर कक्का बैठे हैं ,चारों तरफ ग्रामीण, चौरंगी, दरबारी, फफूंदी, फोकट और पुसऊ राम अपनी-अपनी चटाइयों पर जम चुके हैं। घसीटा मोबाइल में कुछ देखकर मुंह बनाता है।)
कक्का
“राम नवमी है भैया… चल चली गांव के पावन स्थल पर राम अर्पण का आयोजन हो रहा है। पर खबर आई है — प्रचार बाहरी पार्टी के फ्लेक्सों से हुआ है। और गांव के लोक कलाकार, जो साल भर मेहनत करते हैं, वो इस लिस्ट में ग़ायब हैं?”
घसीटा (झट से)
“कक्का, यही तो मुद्दा है! गोपालगंज वाले चौबे जी पोपट गांव वाले तिवारी जी और बीरगांव से सिंह आ रहे हैं लेकिन शकुन गांव के सुरेश भैया जो ढोलक पे जान डाल देते हैं, उनकी तो पूछ ही नहीं!”
चौरंगी लाल (हाथ उठाकर)
“अरे घसीटा! ये कला की बात है, राजनीति नहीं! हमें संस्कृति का प्रसार करना है। बाहरी लोग प्रोफेशनल होते हैं!”
फफूंदी लाल (गरजता है)
“प्रोफेशनल? तो फिर गांव के गायकों से झंडा बैंड बजवाओ और उन्हीं के नाम से फर्जी बिल लगाओ? प्रचार विभाग के जो सलाहकार बने हैं, वो कब गांव आए थे ये बताओ?”
दरबारी लाल (कान खुजलाते हुए)
“मुझे पता चला है… जो फ्लेक्स लगे हैं, वो चंग्गू और मंहगू ने लगाए हैं। दोनों ने ही प्रचार का ठेका ले रखा है। ‘कृपा पात्र’ कलाकारों को मंच मिला है, और बाकियों को तिरस्कार!”
फोकट लाल (हँसते हुए)
“सबको राम का नाम चाहिए, लेकिन माइक, मंच और माला सिर्फ अपनों के लिए। और हाँ, प्रचार के लिए प्रेस विज्ञप्ति भी आई — पांच उंगलियों पे गिनी जा सकती है!”
पुसऊ राम
“मैं तो कहता हूँ, राम जी को तो गांव वालों के गीतों से ही आनंद आता है। ये सरकारी डांस-ड्रामा उन्हीं को सुहाता है जिनकी जेब गर्म होती है।”
[दृश्य 2 — मंच संचालन की साजिश]
(दरबारी और चौरंगी आपस में कानाफूसी करते हैं।)
दरबारी लाल
“देख चौरंगी, हमें ही मंच संभालना है। घसीटा जैसे लड़कों को बोलने मत देना। कक्का तो वैसे भी बूढ़ा है, बस बैठा रहे।”
चौरंगी लाल
“ठीक है, मैं भाषण में अपना नाम घुसा देता हूँ। बाद में फर्जी बिल बनवाकर रकम निकाल लेंगे।”
(फफूंदी और घसीटा सब सुन लेते हैं।)
फफूंदी लाल (घसीटा को)
“अबे ये साजिश है! मंच भी हथियाओ, बिल भी खाओ और फिर राम अर्पण का दिखावा करो।”
घसीटा
“अबकी बार तो हम लाइव वीडियो करेंगे। फेसबुक और व्हाट्सऐप पे वायरल कर देंगे कि गांव के असली कलाकारों का अपमान हुआ है!”
[दृश्य 3 — चौपाल का निष्कर्ष]
कक्का (खड़े होकर)

“हे प्रभु श्रीराम! जिस वनपथ पर आप चले, वहां छल, कपट और दलाली नहीं थी। आज उसी मार्ग पर यह तमाशा हो रहा है! गांव के साधारण रामभक्त कलाकारों को अपमानित करके जो मंच सजेगा, उस पर न भक्ति टिकेगी, न संस्कृति!”
(सभी पात्र मिलकर बोलते हैं)
“गांव के कलाकारों को हक़ दो! बाहरी दिखावे नहीं, स्थानीय प्रतिभा को सम्मान चाहिए!”
घसीटा (मंच की ओर देखकर)
“ये ‘राम अर्पण’ नहीं, ये ‘नाम हरपण’ है। गांव के नाम पर आयोजन, पर हक़ सिर्फ दलाल दरबारियों का!”
पर्दा गिरता है — दर्शकों के सोच में पसीने बहते हैं ।
कैलाश पाण्डेय
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