
कुपोषण मुक्त अनूपपुर – जन-जन का पोषण यज्ञ
स्थान आदिवासी बहुल गांव का आंगनबाड़ी केंद्र
काल 8 से 22 अप्रैल 2025 – पोषण आहार पखवाड़ा
सूरज की हल्की किरणें गांव की लाल मिट्टी पर चमक रहीं हैं। एक पगडंडी से महिलाएं धीरे-धीरे आ रही हैं, गोद में बच्चे, सिर पर पल्लू, कुछ ने साड़ी के कोने में दलिया और केला बाँध रखा है। कुछ बच्चों के गले में नीला-पिला ताबीज, और आंखों में भोली उम्मीद।
दीवारें रंगीन चित्रों से सजी हैं
“हरी सब्ज़ी रोज़ खाओ, बच्चा तगड़ा बनाओ!”
“माँ का दूध — पहला टीका!”
“खाली पेट मत भेजो स्कूल!”
एक कोने में बच्चों का वजन करने की मशीन, थालियों में ‘नमूना थाली’, पास में रंगीन दरी पर बैठी सहायिकाएं, पोषण चार्ट, एनिमेटेड वीडियो चलाता छोटा टीवी।
दीवारों पर लिखी गई पंक्तियाँ लाल मिट्टी और गोबर से बने बैकग्राउंड पर चमकती हैं
“शरीर का मंदिर पोषण से पवित्र हो!”
“जच्चा-बच्चा स्वस्थ तो गांव स्वस्थ!”





भीतर का दृश्य – कक्का की चौपाल शुरू
पेड़ की छाया में चौकी बिछी है, जिस पर कक्का बैठते हैं। उनके चेहरे पर झुर्रियां हैं, लेकिन आंखों में तेज़ है। हाथ में लाठी और सिर पर पगड़ी। बाकी पात्र पास में बैठे हैं — घसीटा मोबाइल में रिकॉर्ड कर रहा है, फफूंदी लाल गंभीर, दरबारी लाल कान में रेडियो लगाए, चौरंगी लाल कुर्ते की सलवटें ठीक करता हुआ, फोकट लाल मुंह में नीम की दातून चबाते हुए, और पुसऊ राम हर बात पर गर्दन हिला रहा है।)
कक्का (गंभीर लेकिन सहज स्वर में)
“बेटा-बेटी, मां-बहनें!
आज जो ये आंगनबाड़ी है, वो गांव का तीर्थ है।
यहाँ की थाली में दाल नहीं सिर्फ़, भविष्य की नींव है।
कोई बच्चा भूखा ना रहे,
कोई मां एनीमिया से ना गिरे —
यही है हमारा संकल्प!”
महिलाओं की भागीदारी
(भीड़ में से एक युवा आदिवासी महिला उठती है — गोद में कुपोषित बच्चा, आंखों में चिंता।)
महिला
“कक्का जी, मेरा बेटा हर हफ्ते बीमार पड़ जाता है।
पेट भी ढीला और बोलना भी शुरू नहीं किया है।”
सहायिका पास आकर धीरे-से जवाब देती है
“बहन, हमने बच्चा गोद में नहीं, भविष्य गोद में लिया है।
उसे आयरन सिरप, हफ्ते में एक बार फॉलिक टैबलेट,
दूध-दलिया, सहजन की सब्जी और समय पर टीकाकरण ज़रूरी है।
हम रोज़ घर आएँगे, समझाएंगे, जाँच करेंगे।”
दिवाल लेखन व चित्रण गतिविधि
(दूसरी तरफ, बच्चे दीवार पर रंग लगा रहे हैं — चटख रंगों से बना एक चित्र: एक बच्चा गाजर खा रहा है, दूसरा पालक। एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता उन्हें थाली में खिचड़ी परोस रही है। सहायक शिक्षक रंग भरने में मदद कर रहे हैं।)
घसीटा (मोबाइल से शूट करता हुआ)
“अब ये आर्ट वॉल बनेगी ‘पोषण की चेतना’!
गांव का हर बच्चा रोज़ इस दीवार से पढ़ेगा —
क्या खाना है, क्यों खाना है!”
फोकट लाल (थोड़ी विनोदी शैली में)
“कक्का जी, मैं तो कहता हूं,
गांव के कुएं में एक-एक चम्मच च्यवनप्राश डाल दो,
सबका पोषण अपने आप हो जाएगा!”
कक्का मुस्कुराते हैं
और कहते हैं अनूपपुर कलेक्टर श्री हर्षल पंचोली जी ने सन्देश में कहा कि

च्यवनप्राश नहीं, चेतना घोलनी है पानी में।
मुफ्त का पोषण नहीं, समझ का पोषण ज़रूरी है।”
फफूंदी लाल का अनुभव
“कक्का जी,
जब सरकारी कागज़ में मेरी बेटी कुपोषित थी,
मैंने खुद अपनी रसोई बदली।
आंगनबाड़ी से सीख कर मेथी, मूंग, कद्दू, सहजन का चटनी बनाया।
6 महीने में Hb बढ़ गया, बच्ची स्कूल जाने लगी।
अब मैं खुद मोहल्ले में ‘पोषण चाचा’ कहलाता हूँ।”
विशेष गतिविधियाँ और प्रभाव कुल आंगनबाड़ी केंद्र 1156
लाभार्थी बच्चे (0-6 वर्ष) 60,000 से अधिक
0 से 3 वर्ष तक के बच्चे घर-घर जाकर पोषण गतिविधियाँ
3 से 6 वर्ष तक के बच्चे आंगनबाड़ी केंद्रों पर पोषण शिक्षा व आहार
गर्भवती एवं धात्री महिलाएं लगभग 10,000
इन्हें आयरन, कैल्शियम, टीकाकरण और सुपोषण आहार पर विशेष जानकारी दी जा रही है
पोषण पखवाड़ा के प्रमुख उद्देश्य
जीवन के पहले 1000 दिनों पर फोकस
पोषण ट्रैकर ऐप का प्रचार-प्रसार
CMAM के माध्यम से कुपोषण का सामुदायिक प्रबंधन
बचपन के मोटापे से निपटने हेतु जागरूकता
जिला स्तरीय प्रमुख गतिविधियाँ
जागरूकता रैलियाँ एवं पोषण रथ अभियान
स्वास्थ्य जांच शिविर हीमोग्लोबिन टेस्ट, वजन-ऊंचाई मापन
पोषण परामर्श सत्र – संतुलित आहार, थाली मॉडल
रसोई कार्यशालाएं – स्थानीय खाद्य सामग्री से पोषणयुक्त व्यंजन
पोस्टर, स्लोगन, रंगोली एवं नारा प्रतियोगिता
बच्चों की कुपोषण दर में गिरावट
महिलाओं में प्रसव पूर्व देखभाल की जागरूकता
स्थानीय समुदाय में स्वास्थ्य एवं पोषण का संदेश

संपर्क सूत्र
श्री विनोद परस्ते,
जिला महिला एवं बाल विकास कार्यक्रम अधिकारी, अनूपपुर
(अधिक जानकारी के लिए अपने निकटतम आंगनबाड़ी केंद्र से संपर्क करें)





थाली प्रदर्शन
एक टेबल पर सात दिन की पोषण थाली रखी है
सोमवार – खिचड़ी + हरी सब्ज़ी
मंगलवार – मूंग दाल चिल्ला
बुधवार – सहजन की सब्जी
गुरुवार – दलिया + केला
शुक्रवार – चना + गुड़
शनिवार – दही चावल
रविवार – लोकल मौसमी फल
हर थाली के पास पोषण मानक चार्ट
BMI चेकअप
पास में गांव के किशोर-किशोरियों की लाइन लगी है।
सुपरवाइजर BMI जांच रहे हैं।
जिनका वजन कम है, उनके घर दौरा तय किया जा रहा है।
गर्भवती माताओं की काउंसलिंग
अंदर एक कोने में गर्भवती महिलाएं बैठी हैं।
ANM उन्हें बता रही हैं – “गर्भावस्था में कैल्शियम, आयरन, दूध, फल और नींद — सबका तालमेल ज़रूरी है।”

अंतिम क्षण – कक्का का भावुक संबोधन
(सबका ध्यान खींचते हुए, आंसू से नम आंखों से)
“बेटा-बेटी,
भूखा बच्चा सिर्फ़ घर का दुख नहीं,
राष्ट्र का प्रश्न है।
जब बच्चा कुपोषित होता है,
तो हम सब उस दर्द के अपराधी बनते हैं।
अब संकल्प लो –
ना सिर्फ़ अपने लिए,
बल्कि पड़ोसी के बच्चे के लिए भी,
‘कुपोषण को गांव से विदा करेंगे।’”
(तालियां गूंजती हैं, महिलाएं सिर हिला रही हैं, कुछ आंखें भीगी हैं। पृष्ठभूमि में गाना बजता है –)
“थाली में जब हरी सब्ज़ी आएगी,
मां की गोद से खुशबू आएगी।
बचपन जब मुस्कराएगा,
तभी भारत आगे बढ़ पाएगा!”
यह चौपाल सिर्फ़ संवाद नहीं थी,
यह एक जनांदोलन का प्रारंभ था।
पोषण आहार पखवाड़ा ने गांव की दीवारों से लेकर थालियों तक
स्वास्थ्य की इबारत लिख दी।
कैलाश पाण्डेय
व्हाट्सएप नंबर
9893302765
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