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SECL सोहागपुर एरिया की रामपुर बटुरा खदान,रजिस्टर में कोयला का  नहीं, रिश्वत का लेखा – TI की तिजोरी वाली ड्यूटी!

SECL सोहागपुर एरिया की रामपुर बटुरा खदान,रजिस्टर में कोयला का  नहीं, रिश्वत का लेखा – TI की तिजोरी वाली ड्यूटी!

मध्यप्रदेश के  SECL सोहागपुर की रामपुर बटुरा खदान, जहाँ कोयले की चिंगारियाँ देश की ऊर्जा को रौशन करती हैं, अब वहाँ से धुआँ उठता है—भ्रष्टाचार, अव्यवस्था और सड़ांध का। इस धुंध के बीच सबसे गहरा काला चेहरा है ‘TI’—तकनीकी निरीक्षक का। जिनके हाथों में निरीक्षण की जिम्मेदारी होनी है, उनके हाथ अब कट के लिफाफों में व्यस्त है

यहाँ ट्रक ड्राइवरों की सुबह कोयले की आशा से नहीं, TI के मूड से शुरू होती है। कोई नियम, कोई टोकन नहीं—सिर्फ ‘कट’। तकनीकी निरीक्षण अब कोयले की गुणवत्ता नहीं, जेब की मोटाई नापता है। और इस पूरी स्क्रिप्ट के डाइरेक्टर हैं—‘एक महोदय’, जिन्हें सब जानते हैं, पर नाम लेना सबके बस की बात नहीं।

TI – तकनीकी निरीक्षक नहीं, ‘कमीशन इंस्पेक्टर’ है

TI का मतलब अब है – “तेरा इरादा कट के बिना कुछ नहीं मिलेगा!”

“आपके पास कट है?” – पहला सवाल।

“नहीं है?” – तो फिर लाइन में लगे रहिए, सड़क नापते रहिए।

उनके पास एक छोटा रजिस्टर है—न लोडिंग का रिकॉर्ड, न ट्रक नंबर का हिसाब। सिर्फ ‘कट हिसाब’—किससे कितना लिया गया और कौन कब लोड होगा।

TI जितेंद्र पांडेय का नाम सुनते ही ट्रक यूनियन वाले धीरे से मुस्कुरा देते हैं—वो मुस्कान  में डर और लाचारी झलकती है।

एक दिन, एक खेल – पूरा ‘TI टाइमटेबल’

सुबह 6 बजे ट्रक लाइन में खड़े, सबकी निगाहें उसी सफेद गाड़ी पर।

सुबह 8 बजे प्राइवेट लिफ्टर आते हैं, जिनके ‘कट पास’ पक्के होते हैं।

9 बजे TI का आगमन, रजिस्टर खुलता है, कुछ ट्रकों पर निशान – ‘कट-क्लियर’ ट्रक।

12 बजे तक वही ट्रक लोड होते हैं, बाकी ट्रक धूप सेंकते हैं।

शाम 5 बजे जो ‘भुगतान’ नहीं कर सके, वापस लौट जाते हैं – खाली पेट, खाली ट्रक।

रात TI की जेब भारी हो जाती है, और ‘अगला शो’ की तैयारी शुरू।

सरकारी मशीनें बीमार, प्राइवेट मशीनें तंदरुस्त – TI का जादू?

जिस खदान में सरकारी मशीनें हर दूसरे दिन ब्रेकडाउन में होती हैं, वहीं कुछ ‘विशिष्ट’ निजी मशीनें रोज़ नए जोश में दौड़ती हैं। इनका इंजन तेल से नहीं, TI की सहमति से चलता है।

सरकारी मशीनें – “मेंटेनेन्स में हैं सर!”प्राइवेट मशीनें – “कट-सर्टिफाइड!”

शिकायत करें तो किससे करें? – जब जाँच अधिकारी ही जाँच-प्रूफ हो

कई बार यूनियन, ट्रांसपोर्टर, ड्राइवर—सबने शिकायतें कीं। कुछ तो SECL हेडक्वार्टर तक पहुँचीं। पर न कार्रवाई, न बदली, न सस्पेंशन—TI साहब की पोस्टिंग फिक्स है ।

“जाँच होगी” – फेवरेट डायलॉग है। पर जाँच कहाँ होती है? TI साहब खुद ही जाँच अधिकारी बन जाते हैं।

ड्राईवर और कोयला मजदूरों की आवाज़ – हक का कोयला, कमीशन में जला

“हम सुबह 5 बजे उठते हैं, 10 घंटे ट्रक लाइन में खड़े रहते हैं, और अंत में लोडिंग उन्हीं को मिलती है जो पहले ही जेब गरम कर चुके होते हैं।”

“अगर जेब ढीली है, तो TI साहब का चेहरा कड़क होता है।”

“नियम किताबें बंद हैं, लिफाफे खुले हैं। और उन लिफाफों में सिर्फ रुपये नहीं—हमारे हक का धुआँ है।”
सवाल जो सोहागपुर एरिया रामपुर बटूरा खुली खदान प्रबंधन से पूछे जाने चाहिए

क्या तकनीकी निरीक्षक अब खदान के दलाल बन चुके हैं?
क्या SECL का हेडक्वार्टर इन धंधों की रिपोर्ट देख नहीं पा रहा, या देख कर चुप है?
क्या ऐसे अफसरों पर कार्रवाई होगी या उन्हें और ऊँचा प्रमोशन मिलेगा?
क्या रामपुर बटुरा एक उदाहरण है या पूरे कोयला क्षेत्र की सच्चाई?

रामपुर बटुरा की  काले हीरे की कालाबाजारी अब सिर्फ खदान की बदहाली नहीं, सिस्टम की नाकामी की वजह बन चुकी है। TI जैसे अधिकारी, जो “तकनीकी दक्षता” के लिए नियुक्त हुए हैं, अब “तकनीकी दलाली” के प्रमुख बन चुके हैं।

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