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कक्का की चौपाल में फूटा दिव्यांगों का दर्द, योजनाएं कागज़ों में सिमटीं

कक्का की चौपाल में फूटा दिव्यांगों का दर्द, योजनाएं कागज़ों में सिमटीं



“स्वास्थ्य विभाग और सामाजिक न्याय विभाग की लापरवाही पर सूरदास, हकला, लंगड़ा और मंदबुद्धि ने सुनाई अपनी-अपनी कहानी – प्रमाण पत्रों से लेकर उपकरणों तक सब कुछ अधूरा।”

कक्का की चौपाल विशेष  “दिव्यांग की लाठी, बाबू की बैसाखी बन गई”
गांव के बाहर पीपल का विशाल पेड़, नीचे मिट्टी में खाटें डली हैं। धूप ढलने लगी है। कक्का अपनी सोंटी के सहारे टिके हुए हैं। पास ही चौरंगी लाल, घसीटा, बड़कऊ, रामधनी और कुछ दिव्यांगजन — जिनके चेहरे उम्मीद और अपमान के मिलेजुले भाव से भरे हुए हैं।

पात्र परिचय

कक्का: अनुभवी बुज़ुर्ग, सामाजिक मामलों के सजग प्रहरी

चौरंगी लाल: तर्कशील, व्यंग्यबाण चलाने वाला युवा

घसीटा: जागरूक समाजसेवी और RTI कार्यकर्ता

रामधनी: पीड़ित दिव्यांग, जिनका प्रमाण पत्र तीन साल से अटका है

बड़कऊ: गांव का बेरोजगार दिव्यांग जो राशन तक से वंचित है

चौपाल का आरंभ

कक्का (गंभीर आवाज में)
“बाबू लोग सरकारी कुर्सी पे बैठे-बैठे ‘दिव्यांगों’ की लाठी चबा गए बेटा… कोई है जो पूछेगा उनसे?”

चौरंगी लाल (हँसते हुए)
“कक्का, पूछने वाला कौन? जो पूछेगा, उसे बाबू लोग ‘कागजों के जंगल’ में ऐसा उलझा देंगे कि वो दोबारा बोल ही न पाए!”

घसीटा (सुनाता है)

“कक्का जी, अनूपपुर के सामाजिक न्याय विभाग के पास ढेरों योजनाएं हैं
1. राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP)  वृद्धावस्था, विधवा और दिव्यांग पेंशन
2. दिव्यांगजन सशक्तिकरण योजना – ट्राई साइकिल, बैसाखी, कान की मशीन, व्हीलचेयर
3. स्वावलंबन कार्ड योजना – दिव्यांगों के लिए यूडीआईडी कार्ड
4. दिव्यांग विवाह प्रोत्साहन योजना
5. बेरोजगार दिव्यांगों के लिए स्वरोजगार ऋण योजना
लेकिन… सच्चाई?”

रामधनी (आंखों में आंसू)

“कक्का… तीन साल हो गए आवेदन दिए, मेडिकल बोर्ड बैठा ही नहीं!
सुनते हैं, बोर्ड तब बैठता है जब बाबू की जेब में गर्मी हो जाए।”

कक्का (करुणा भरे स्वर में)

“रामधनी, तेरे जैसे हजारों लोग हैं। लेकिन बाबू लोग तो अपात्रों को प्रमाण पत्र दे देते हैं — वो जिनके पास मोटरसाइकिल, खेत और पक्के मकान हैं।”

चौरंगी लाल

“कक्का, अनूपपुर में तो सुनते हैं — दफ्तर में बैठा बाबू खुद अपने रिश्तेदारों के नाम से फर्जी दिव्यांग बना देता है। मेडिकल बोर्ड भी उन्हीं का मुहरदार!

घसीटा

“और सूची?
सरकारी पोर्टल पर न तो दिव्यांगजन की सूची है,
न ही पात्रता सूची,
न ही उपकरण वितरण का रिकार्ड।
ALIMCO से आए उपकरण गोदामों में सड़ रहे हैं… और अधिकारी कह रहे हैं — ‘बजट नहीं आया’।”

कक्का (क्रोधित होते हुए)

“ये ‘बजट नहीं आया’ नहीं बेटा… ये ‘बजट नीचे तक नहीं आया’ होता है।
ऊपर से चला, बाबू की अलमारी में पहुंचा… वहां से उसके रिश्तेदारों के घर!”

चौरंगी लाल

“और स्वास्थ्य विभाग का हाल?
मेडिकल बोर्ड सिर्फ उन्हीं को प्रमाण पत्र देता है जो पहचान वाला हो या दलाल से मिला हो।
बाकी को —
‘कागज अधूरे हैं’,
‘आप दिव्यांग नहीं लगते’,
‘फॉर्म भरने की आखिरी तारीख निकल गई’!”

बड़कऊ (गहरी सांस लेता है)

“कक्का, मैं 90% दिव्यांग हूँ… ना स्कूल से छात्रवृत्ति मिलती, न पेंशन।
बोलते हैं — पहले प्रमाण पत्र लाओ।
फिर सुनते हैं — ‘प्रमाण पत्र में त्रुटि है, नया बनवाओ’।
हर साल नई उम्मीद, हर साल नया अपमान।”

घसीटा (तथ्य प्रस्तुत करते)

जिले में कुल अनुमानित 23,000 दिव्यांगजन

लेकिन प्रमाण पत्र धारक केवल 11,000

फर्जी लाभार्थी संख्या: लगभग 3000

ALIMCO से मिले उपकरणों में से 40% आज तक वितरित नहीं हुए

मेडिकल बोर्ड की बैठकों में वार्षिक औसत: 4 से भी कम


कक्का (धीरज से)

“बेटा घसीटा, ये अब सामाजिक न्याय नहीं, ‘सामाजिक अन्याय विभाग’ बन गया है।
जहाँ योजनाएं पोस्टरों में होती हैं, लेकिन हकीकत में केवल बाबुओं के पर्स में।” हर ब्लॉक में मेडिकल बोर्ड हर महीने बैठना चाहिए।


चौरंगी लाल (आक्रोश में)

“कक्का, हमें अब गांव-गांव चौपाल करनी चाहिए,
RTI लगाना चाहिए, मीडिया में उठाना चाहिए,
दिव्यांगों के नाम से जो मज़ाक हो रहा है, वो अब नहीं चलेगा।”

कक्का (धारदार स्वर में)

“ठीक कह रहे हो बेटा…

दिव्यांगजन की असल समस्याएं – प्रशासनिक लापरवाही, भ्रष्टाचार, अपात्र लाभार्थी, फर्जी प्रमाण पत्र

सामाजिक न्याय विभाग की असफलताएं – योजनाओं का प्रचार मगर क्रियान्वयन शून्य

स्वास्थ्य विभाग का खेल – मेडिकल बोर्ड में दलाली, जान-पहचान और देरी ।

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Kailash Pandey
Anuppur
(M.P.)

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