
राजनीति के रंगमंच पर नाटकीय मोड़ कभी भी आ सकते हैं, और इस बार दिल्ली की सियासत में एक ऐसा ही मोड़ आया है। आम आदमी पार्टी (आप) के सात विधायकों ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देकर राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। चुनाव से ठीक पहले आए इस तूफान ने पार्टी की स्थिरता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
विधायकों की विदाई
इस्तीफा देने वाले विधायकों में जनकपुरी से राजेश ऋषि, महरौली से नरेश यादव, त्रिलोकपुरी से रोहित कुमार महरौलिया, पालम से भावना गौड़, कस्तूरबा नगर से मदन लाल, बिजवासन से भूपेंद्र सिंह जून, और आदर्श नगर से पवन शर्मा शामिल हैं। इन सभी ने पार्टी नेतृत्व पर गंभीर आरोप लगाए हैं, जिनमें भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, और मूल सिद्धांतों से भटकने जैसे मुद्दे प्रमुख हैं।
आरोपों की बौछार
राजेश ऋषि ने अपने इस्तीफे में लिखा, “पार्टी मूल सिद्धांतों को त्यागकर भ्रष्टाचार में डूब गई है।” उन्होंने संतोष कोली के हत्यारे को टिकट देने का भी आरोप लगाया, जिसे उन्होंने कार्यकर्ताओं के साथ विश्वासघात करार दिया। नरेश यादव ने कहा, “आम आदमी पार्टी का उदय भ्रष्टाचार के खिलाफ हुआ था, लेकिन अब पार्टी खुद भ्रष्टाचार के दलदल में लिप्त हो चुकी है।” रोहित कुमार महरौलिया ने बाबा साहब के विचारों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए पार्टी से नाता तोड़ लिया।
चुनावी समीकरणों पर प्रभाव
दिल्ली विधानसभा चुनाव में मात्र पांच दिन शेष हैं, और ऐसे में इन इस्तीफों का पार्टी की छवि और चुनावी संभावनाओं पर गहरा असर पड़ सकता है। विपक्षी दल इस मौके का फायदा उठाकर ‘आप’ की आंतरिक कलह को भुनाने की कोशिश करेंगे। पार्टी के लिए यह चुनौतीपूर्ण समय है, जहां उसे न केवल अपने बचे हुए विधायकों और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाना होगा, बल्कि जनता के सामने अपनी विश्वसनीयता भी साबित करनी होगी ।
राजनीति में इस्तीफे कोई नई बात नहीं हैं, लेकिन जब ‘आम आदमी’ की पार्टी के ‘खास आदमी’ ही पार्टी छोड़ने लगें, तो सवाल उठना लाजमी है। क्या यह ‘आप’ के लिए आत्ममंथन का समय है, या फिर यह सिर्फ चुनावी मौसम का एक और ड्रामा? राजनीति के इस खेल में कौन किसको मात देगा, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन फिलहाल ‘आप’ के लिए यह समय आत्मचिंतन करने का है।
दिल्ली की राजनीति में यह घटनाक्रम एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।



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