भारत, चीन, और रूस के बीच बढ़ती नजदीकियाँ और उनके सामरिक और कूटनीतिक गठबंधन, खासकर भारत-चीन सीमा विवाद के बावजूद, वैश्विक शक्ति संतुलन में महत्वपूर्ण बदलावों को दर्शाते हैं। इन घटनाक्रमों को लेकर अमेरिका और अन्य पश्चिमी शक्तियाँ, जैसे पाकिस्तान और बांग्लादेश, के माध्यम से अपने दबाव बनाने की कोशिशें कर सकती हैं। अमेरिकी रणनीति के तहत पाकिस्तान और बांग्लादेश में तुर्की द्वारा दिए गए ड्रोन का इस्तेमाल, भारतीय सुरक्षा पर दबाव बनाने के एक तरीके के रूप में देखा जा सकता है।
भारत-रूस-चीन की बढ़ती नजदीकियाँ
भारत और रूस के बीच सैन्य, कूटनीतिक और आर्थिक सहयोग, विशेष रूप से S-400 मिसाइल प्रणाली की खरीदारी के बाद और चीन के साथ ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसी बहुपक्षीय संस्थाओं के तहत बढ़ती नजदीकी, एक ऐसे समय में हो रही है जब अमेरिका का ध्यान इन देशों के समीकरण को चुनौती देने पर है। इन देशों का सामूहिक संबंध खासकर सुरक्षा, ऊर्जा, और रणनीतिक मामलों में अमेरिका के लिए चिंता का कारण बन सकता है, क्योंकि अमेरिका का प्राथमिक लक्ष्य वैश्विक स्तर पर चीन और रूस के प्रभाव को सीमित करना है।
तुर्की ड्रोन और पाकिस्तान-बांग्लादेश का संबंध
तुर्की ने Bayraktar TB2 जैसे ड्रोन, जिनका उपयोग सीमा निगरानी और संभावित हमलों में किया जाता है, पाकिस्तान और बांग्लादेश को दिए हैं। यह ड्रोन भारतीय सीमा के पास तैनात किए गए हैं, जिससे भारत के लिए रणनीतिक चिंता का विषय बन गया है। पाकिस्तान और बांग्लादेश की अमेरिका और तुर्की से बढ़ती सैन्य सहयोग की गतिविधियों से यह संकेत मिलता है कि अमेरिका इन देशों के माध्यम से भारत पर दबाव बना सकता है, विशेष रूप से भारतीय-चीन संबंधों और भारत-रूस गठबंधन को चुनौती देने के लिए।
भारत-चीन सीमा विवाद और अमेरिका का दबाव
भारत-चीन सीमा विवाद अब तक दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बना हुआ है, लेकिन चीन और रूस के बढ़ते संबंधों ने भारत को भी रणनीतिक रूप से एक और मजबूत साझेदार, रूस, के रूप में दिया है। अमेरिका, जो चीन की बढ़ती ताकत और रूस के सैन्य अभियानों के खिलाफ दबाव डालने का प्रयास कर रहा है, अपनी रणनीति में पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ सैन्य संबंधों को मजबूत कर सकता है ताकि भारत को इस मोर्चे पर घेर सके।
यह संभव है कि भारत पर दबाव बनाने के लिए कर रहा हो, विशेष रूप से चीन और रूस के साथ बढ़ती नजदीकियों और भारत के रणनीतिक समीकरणों को ध्यान में रखते हुए। अमेरिकी दबाव, चीन और रूस के संयुक्त प्रभाव को कम करने और भारत के क्षेत्रीय दबदबे को चुनौती देने के लिए इन देशों के माध्यम से चालें चल सकता है।
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