गुढ़ के बदवार क्षेत्र में दिलीप बिल्डकॉन (DBL) कंपनी द्वारा ब्लास्टिंग के बाद निकले पत्थरों और रेत को अवैध रूप से खनन कर ठेकेदारों को बेचा गया।

गुढ़ के बदवार क्षेत्र में दिलीप बिल्डकॉन (DBL) कंपनी द्वारा ब्लास्टिंग के बाद निकले पत्थरों और रेत को अवैध रूप से खनन कर ठेकेदारों को बेचा गया।

घटना गुढ़ टनल क्षेत्र में अवैध रेत खनन और उसके व्यापार से जुड़े गंभीर मुद्दों को उजागर करती है। मामले की गहराई से समीक्षा करने पर कुछ बिंदु सामने आते हैं
खनिज माफिया की गतिविधियां

इस अवैध कारोबार में कांग्रेस नेता के बेटे की संलिप्तता का आरोप है।
चोरी की गई सामग्री की अनुमानित कीमत ₹4 से ₹6 करोड़  बताई जा रही है।
प्रशासनिक और राजनीतिक संलिप्तता
प्रशासनिक अधिकारियों पर यह आरोप है कि उन्होंने रसूखदार व्यक्तियों और सफेदपोश नेताओं के संरक्षण में कुछ लोगों को बचाने की कोशिश की।
एफआईआर दर्ज करने में पक्षपात किया गया, जिसमें प्रभावशाली व्यक्तियों के नाम सूची से हटा दिए गए।
DBL की शिकायत और प्रशासन की कार्यवाही
DBL ने बार-बार प्रशासन से लिखित शिकायत की थी, लेकिन अब तक केवल खानापूर्ति की कार्यवाही हुई।
मीडिया की सक्रियता के बाद मामले को संज्ञान में लिया गया और प्रारंभिक जांच की गई।
कुछ दलाल प्रशासनिक अधिकारियों के सीधे संपर्क में हैं, जिससे वे कानूनी कार्रवाई से बच रहे हैं।
इस मुद्दे में राजनीतिक दबाव के जरिए प्रभावशाली व्यक्तियों के नाम कार्यवाही से हटाने के प्रयास हो रहे हैं।
प्रशासनिक निष्क्रियता और पक्षपात
क्यों कुछ रसूखदारों को प्रशासनिक अधिकारियों और नेताओं के संरक्षण में बचाया जा रहा है?
सरकारी खजाने को नुकसान
सरकारी खजाने को करोड़ों का नुकसान पहुंचाने वाले व्यक्तियों को सजा क्यों नहीं दी जा रही है?
किसी स्वतंत्र एजेंसी, जैसे लोकायुक्त या न्यायिक आयोग, से जांच करवाई जाए।
DBL द्वारा दी गई सूची में शामिल सभी नामों पर निष्पक्षता से कार्रवाई हो।
राजनीतिक हस्तक्षेप का खुलासा
जिन नेताओं ने दबाव डलवाया है, उनके नाम सार्वजनिक किए जाएं और उन्हें कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़े।
ऐसे अधिकारियों की पहचान की जाए जो रसूखदारों को बचा रहे हैं।
इन अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।
खनिज माफिया के खिलाफ सख्त कदम
अवैध खनन रोकने के लिए विशेष निगरानी दल गठित किया
रेत खनन और बिक्री की ऑनलाइन निगरानी प्रणाली लागू
यह घटना प्रशासनिक ढांचे में गहरे भ्रष्टाचार और राजनीतिक संरक्षण की ओर संकेत करती है। यदि इस पर कठोर कार्रवाई नहीं की गई, तो यह समाज और सरकार की पारदर्शिता पर प्रश्नचिह्न लगाएगी।

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