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अस्पताल या अखाड़ा? रतलाम के जिला अस्पताल में डॉक्टर का गुंडाराज

अस्पताल या अखाड़ा? रतलाम के जिला अस्पताल में डॉक्टर का गुंडाराज


रतलाम जिला अस्पताल, जहां मरीज इलाज के लिए आते हैं, वहां अब बदसलूकी, जातिसूचक टिप्पणियों और गाली-गलौज का मुफ्त प्रदर्शन होने लगा है। ताजा वाकया सैलाना विधायक कमलेश्वर डोडियार के साथ हुआ, जहां एक तथाकथित “सेवा भावी” डॉक्टर सी.पी.एस. राठौर ने अपनी जुबान की कैंची चलाते हुए अस्पताल को अखाड़ा बना दिया।
रात करीब 9:30 बजे अस्पताल पहुंचे विधायक महोदय को डॉक्टर राठौर ने “चल हट, गंदी गाली से नवाजा। सोचिए, जो डॉक्टर एक जनप्रतिनिधि से ऐसा दुर्व्यवहार कर सकता है, वह गरीब मरीजों को किस तरह ट्रीट करता होगा? यह घटना डॉक्टरों के “हिप्पोक्रेटिक ओथ” (जो शायद इन दिनों ‘हिपोक्रेसी’ ओथ हो गया है) पर सीधा तमाचा है।
यह घटना न केवल रतलाम जिला अस्पताल बल्कि कुछ जाहिल मानसिकता को उजागर करती है। मरीजों के साथ दुर्व्यवहार, जातिगत भेदभाव और अहंकार यहां का नया चलन बन चुका है। जिस डॉक्टर का काम दर्द दूर करना है, वह खुद पीड़ा का स्रोत बन जाए तो क्या इसे “सेवाभाव” कहेंगे या “गुंडागर्दी”?
क्या फर्जी डिग्रीधारी डॉक्टर सिस्टम का हिस्सा हैं?
विधायक महोदय ने यह सवाल भी उठाया कि ऐसे जाहिल  डॉक्टर फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर सेवा में घुसकर शोषण और दादागिरी क्यों कर रहे हैं। यदि यह सच है, तो यह पूरा विभाग ही सवालों के घेरे में है। क्या स्वास्थ्य विभाग सिर्फ नाम के लिए मरीजों की सेवा कर रहा है, या कुछ और
वायरल वीडियो ने खोली पोल
घटना के समय का वीडियो वायरल हो चुका है, जो डॉक्टर की गुंडागर्दी का जीता-जागता सबूत है। अब सवाल उठता है कि क्या प्रशासन इस डॉक्टर के खिलाफ कार्यवाही करेगा या फिर इसे “तथाकथित वरिष्ठता” के नाम पर रफा-दफा कर दिया जाएगा?
रतलाम अस्पताल की यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति विशेष की नहीं, बल्कि पूरे स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करती है। जब जनप्रतिनिधियों के साथ ऐसा व्यवहार हो रहा है, तो गरीब और असहाय जनता के साथ क्या होता होगा? शायद, यह विभाग “इलाज कम और अपमान ज्यादा” देने में विश्वास करने लगा है।
ऐसे डॉक्टरों को तुरंत बर्खास्त कर उनके खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। साथ ही, स्वास्थ्य विभाग को यह सुनिश्चित करना होगा कि अस्पतालें “गुंडों का गढ़” नहीं, बल्कि “मरीजों की शरणस्थली” बनें। वरना, डॉक्टर और गुंडों में अंतर करना मुश्किल हो जाएगा।
इलाज से पहले तहजीब सिखाइए डॉक्टर साहब, क्योंकि मरीज दवा से पहले सम्मान का हकदार है।

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