जबलपुर। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस एसए धर्माधिकारी की बैंच ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है। जिसमें हाई कोर्ट ने सरकार से पूछा है,कि छात्र अनुसूचित जनजाति वर्ग का है, और निर्धन भी है। तो उससे 30 लाख रूपए की रिकवरी क्यों की जा रही है। मामले में हाई कोर्ट ने राज्य सरकार सहित अन्य से 18 नवंबर तक दस्तावेज के साथ जवाब पेश करने के निर्देश दिए हैं।
दरअसल,याचिकाकर्ता एमजीएम मेडिकल कॉलेज में पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स का अनुसूचित जनजाति वर्ग का छात्र है। उसे इस हद तक रैगिंग का सामना करना पड़ा कि उसने कोर्स छोड़ने का फैसला कर लिया था। लेकिन डीन एमजीएम मेडिकल कॉलेज इंदौर ने सीट छोड़ने के लिए दंड के रूप में 30 लाख रूपए की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने मांग के नियमों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 के विपरीत बताया और याचिकाकर्ता के अधिकवक्ता आदित्य संघी ने कोर्ट में तर्क दिया कि एमपी मेडिकल कॉलेज में सीट छोड़ने के बांड की शर्तों के लिए 30 लाख की मांग के कारण 7 छात्रों ने आत्महत्या कर ली है। श्री संघी ने तर्क दिया कि जनवरी 2024 में संसद में पहले ही इस मामले पर चर्चा हो चुकी है, और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने एमपी राज्य सरकार को 30 लाख रूपए की शर्तों को तुरंत वापस लेने का निर्देश दिया है। मामले की सुनवाई के बाद मध्य प्रदेश सरकार सहित निदेशक चिकित्सा शिक्षा और डीन एमजीएम मेडिकल कॉलेज को 18 नवंबर 2024 तक एनओसी के साथ मूल दस्तावेज लौटाने का निर्देश दिया गया है। कोर्ट को बताया गया कि पीड़ित छात्र अनुसूचित जनजाति वर्ग से संबंधित है, और वह बहुत मेधावी होने के साथ बहुत गरीब है। तर्को को सुनने के बाद कोर्ट ने संबंधितों से जवाब मांगा है।
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