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गजकुण्डी / दचकुंडी/ धमुका – एक भुला दिया गया पटाखा / देसी धमाका

गजकुण्डी / दचकुंडी/ धमुका – एक भुला दिया गया पटाखा / देसी धमाका


जो लोग ग्रामीण पृष्ठभूमि से हैं या 90 के दशक से पहले जन्मे हैं उन्हें यह शब्द सुनकर मेरी इस पोस्ट को पढ़ने की इच्छा जाग जाएगी । गजकुंडी की कहानी है ही कुछ ऐसी। इसका प्रयोग सबसे अधिक गोवर्धन पूजा के दिन पशुधन गोधन बैल भैंस आदि का जुलूस निकलता था उस समय बहुत धमाके किए जाते थे पाड़ो की लड़ाई भी होती थी।

पोटाश और गंधक के एक अनुपात में मिश्रित पाउडर को को एक विशेष प्रकार के औजार कहें या यंत्र में भरकर जब ज़मीन पर ठोका जाता है तो सुतली बम से भी भयंकर आवाज़ होती हैं और कान में टींईईई का साउंड देर तलक सुनाई देता था। इसी मसले से एक फटाका बनता था जिस पर प्रतिबंध लग गया है। लहसुन फटाका। जिसे जमीन पर जोर से मारने पर धमाका होता था।

एक लंबी लोहे की रॉड जिसे ग़ज़ कहते हैं, ग़ज़ भर लंबी! 25 से 40 इंच तक! आखिर में हाथी के पेट जैसी मोटी चौकोर या ड्रम नुमा हिस्सा, इस आखिरी पेट जैसे हिस्से में एक छेद होता है, जिसमे पोटाश भरकर कागज की पैकिंग से भरकर पैक किया जाता है। फिर पूरी ताकत से ज़मीन पे दे मारते हैं , एक धमाका होता है जो बहुत दूर तक सुनाई द देता है। इसका एक छोटा स्वरूप भी बनाया जाता है जो जमीन से समांतर छड़ रखकर कम उम्र के बच्चों द्वारा प्रयुक्त किया जाता है

चौकोर कुंडी के ऊपरी समतल भाग से मध्य तक एक खड़ा (वर्टिकल)नालीदार छिद्र और एक बाजू से आड़ा (हॉरिजॉन्टल) नालीदार छेद होता है,जो अंग्रेजी के L अक्षर तरह होते हैं।
.गजकुंडी का बारूद केवल पोटाश से नहीं बल्कि पीले रंग के गन्धक ( sulphur) और सफेद रंग के पोटाश का समानुपातिक मिश्रण होता है। कुंडी के बाजूवाले छेद में कागज या कपड़े को ठूंसकर बन्द करने के पश्चात खड़ी नाली में बारूद भर जाता है।
खड़ी नली में गज लगा कर हल्की ताकत के साथ कुंडी को कठोर सतह पर मारने के साथ ही धमाका होता है।
गजकुंडी चलाने में सावधानी यह रखना होती है कि कागज/ कपड़े से बंद किये गये छिद्र पर आपकी उंगलियाँ ना हो,अन्यथा की स्थिति में कुंडी के दबने के साथ हाथ वहीं रह जानेपर उँगलियों के चिथड़े हो जाते हैं।


गजकुण्डी धारक सदैव जोश में होता है जिसकी जेब मे पोटाश को थैली, कपड़े को चिंदी या पेपर  और शेर का जिगर और पूरे मोहल्ले या गांव म घूम घूम कर धमाके करना गजकुण्डी के मालिक का काम। हमे इसे चलाने का सौभाग्य मिला , कम मिला पर मिला, मालवा में बहुत प्रसिध्द थी गजकुण्डी। इसमें बारूदी मसाला भरने मैं लापरवाही बरतने पर हाथ घायल भी हुए हैं और उंगलियां भी गायब हो गई इसीलिए अब इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

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