
मध्यप्रदेश में ‘सर्व शिक्षा अभियान’, ‘एक शाला एक परिसर’ और ‘शिक्षा का अधिकार’ जैसे सुनहरे नारे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत देखकर कोई भी दांतों तले उंगलियां दबा ले। अनूपपुर जिले के अकुआ गांव में शिक्षा विभाग ने एक ऐसा अजूबा पेश किया है, जहां बच्चे हैं पर शिक्षक नहीं, और शिक्षकों की जगह लटक रहा है विद्यालय पर ताला। यह पूरा मामला उस सरकारी तंत्र की सड़ांध और संवेदनहीनता का जीता-जागता उदाहरण है, जो सबसे पिछड़े, संरक्षित बैगा समुदाय के बच्चों का भविष्य बर्बाद करने पर तुला है।
अनूपपुर जिले के सकरा संकुल के शासकीय प्राथमिक माध्यमिक विद्यालय अकुआ में करीब 48 छात्र-छात्राएँ पढ़ाई कर रहे हैं, जिनमें 95% से ज्यादा बैगा आदिवासी समुदाय के बच्चे हैं। शिक्षा विभाग के नियमों के मुताबिक इस विद्यालय में कम से कम 5 शिक्षक होना अनिवार्य था, लेकिन महज 3 शिक्षकों से काम चलाया जा रहा था। उनमें से भी दो शिक्षकों – दुर्गा किरमें और ब्रजनंदन शुक्ला – को संकुल प्राचार्य आर.पी. सोनी ने जनशिक्षक प्रतिनियुक्ति के नाम पर बिना नए शिक्षकों की पदस्थापना के पहले ही विद्यालय से मुक्त कर दिया।
तीसरा और आखिरी शिक्षक लामू सिंह मरावी मेडिकल पर है, जिससे पूरा स्कूल शिक्षक विहीन हो गया। अब स्कूल में ताला लटक रहा है और छोटे-छोटे मासूम बच्चे घरों में बैठकर अपने ‘शिक्षा के अधिकार’ का मातम मना रहे हैं। संकुल प्राचार्य और बीआरसी की मिलीभगत से यह घोर लापरवाही हुई, और मामला जिला पंचायत सीईओ के अनुमोदन तक पहुंचने के बावजूद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।

अजूबा देखिए, शिक्षा विभाग की संवेदनहीनता का
विभाग की नजर में बच्चों का स्कूल बंद होना कोई गंभीर मुद्दा नहीं।
आदिवासी बैगा बच्चों के शिक्षा के अधिकार से खिलवाड़ जारी है।
संकुल प्राचार्य का मनमाना प्रस्ताव और बीआरसी की आंख मूंदकर सहमति – दोनों ने मिलकर बच्चों का भविष्य दांव पर लगा दिया।
जिले में कई स्कूल ऐसे हैं जहां शिक्षक नहीं हैं, और जहां शिक्षक हैं वहां बच्चे नहीं। फिर भी कागजों पर रेगुलर और अतिथि शिक्षक ‘पढ़ा’ रहे हैं।
अतिथि शिक्षक भर्ती में पारदर्शिता और शासन के नियम मजाक बन चुके हैं; संकुल प्राचार्य अतिथि शिक्षक भर्ती को निजी दुकान बना चुके हैं।
जिला प्रशासन, सर्व शिक्षा अभियान और आदिम जाति कल्याण विभाग की निष्क्रियता ने साफ कर दिया है कि बैगा बच्चों की शिक्षा उनके लिए सिर्फ कागजों का खेल है। ये जिम्मेदार अधिकारी तब तक कुंभकर्णी नींद से नहीं उठेंगे, जब तक शासन-प्रशासन से सीधी कार्रवाई नहीं होगी। अनूपपुर जिले की यह शिक्षा व्यवस्था बताती है कि आदिवासी अंचलों में ‘शिक्षा का अधिकार’ सिर्फ बैनर-होर्डिंग और भाषणों में जिंदा है।
ग्रामवासियों की मांग अकुआ विद्यालय में तत्काल शिक्षकों की नियुक्ति सुनिश्चित की जाए।
संकुल प्राचार्य और संबंधित जिम्मेदार अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई हो।
जिले के सभी प्राथमिक-माध्यमिक विद्यालयों का विशेष सर्वे कर बच्चों और शिक्षकों की वास्तविक उपस्थिति का भौतिक सत्यापन किया जाए।
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