
“अनूपपुर के ‘अमृत-हरित महाभियान’ कार्यक्रम से विधायकों और जिला पंचायत अध्यक्ष की आमंत्रण कार्ड में अनुपस्थिति ने खड़े किए सवाल, क्या ये बीजेपी की नई राजनीतिक रणनीति या प्रोटोकॉल का उल्लंघन?
अनूपपुर, 4 जुलाई 2025।
जिले के कोतमा में आयोजित होने जा रहे अमृत-हरित महाभियान कार्यक्रम के आमंत्रण पत्र ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। इस कार्ड में जहां मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और राज्य सरकार के दो मंत्रियों में दिलीप जायसवाल स्वतंत्र प्रभार व दिलीप अहिरवार राज्य मंत्री के नाम प्रमुखता से अंकित हैं, वहीं अनूपपुर विधायक बिसाहू लाल सिंह (बीजेपी), पुष्पराजगढ़ विधायक फंदेलाल सिंह (कांग्रेस) और जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती प्रीति रमेश सिंह का नाम पूरी तरह नदारद है।
क्या कहता है संवैधानिक प्रोटोकॉल?
भारत सरकार और राज्यों के ‘प्रोटोकॉल मैनुअल’ (Protocol Manual) के अनुसार, किसी भी शासकीय कार्यक्रम में आयोजन स्थल के क्षेत्रीय विधायक, सांसद और जिला पंचायत अध्यक्ष को अतिथि या विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित करना बाध्यकारी परंपरा है।
मध्यप्रदेश सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी निर्देश के अनुसार भी, शासकीय आयोजनों में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की गरिमामयी उपस्थिति सुनिश्चित करना प्रशासनिक दायित्व है।
इन नियमों के बावजूद कार्यक्रम के आमंत्रण पत्र में अनूपपुर और पुष्पराजगढ़ क्षेत्र के विधायकों और जिला पंचायत अध्यक्ष का उल्लेख न होना न सिर्फ प्रोटोकॉल का उल्लंघन है, बल्कि इसे प्रशासन की चूक या सोची-समझी राजनीतिक रणनीति भी माना जा रहा है।
क्या है सियासी मायने?
अनूपपुर विधायक बिसाहू लाल सिंह कांग्रेस से बीजेपी में आए खुद बीजेपी के वरिष्ठ नेता हैं। उन्हें नजरअंदाज करना यह संकेत देता है कि बीजेपी की अंदरूनी राजनीति में गुटबाजी या नए सिरे से नेतृत्व का उभार हो रहा है।
कोल विकास प्राधिकरण कैबिनेट मंत्री दर्जा प्राप्त रामलाल रौतेल का कहना है मै निर्वाचित जनप्रतिनिधि नहीं हूं लेकिन बिसाहू लाल सिंह जी विधायक हैं और सीनियर लीडर हैं प्रोटोकॉल के तहत आमंत्रण कार्ड में उनका नाम होना चाहिए

पुष्पराजगढ़ विधायक फंदेलाल सिंह का नाम कार्ड में नहीं होने से विपक्षी कांग्रेस इसे लोकतांत्रिक मूल्यों की अनदेखी और सत्ता के घमंड का प्रतीक बता रही है।
रमेश सिंह कांग्रेस जिला अध्यक्ष
जिला पंचायत अध्यक्ष प्रीति रमेश सिंह का नाम न होने से स्थानीय निकायों के महत्व और विकेन्द्रीकृत शासन की भावना को झटका लगता दिख रहा है, जबकि पंचायत प्रतिनिधियों को ग्राम्य स्तर पर सबसे अहम माना गया है।
क्या यह ‘भोपाल की रणनीति’? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी आलाकमान द्वारा क्षेत्रीय नेताओं के प्रभाव को सीमित करने के लिए ऐसे कार्यक्रमों में केवल पार्टी के ऊपरी स्तर के नेताओं को महत्व दिया जा रहा है। इस रणनीति का मकसद प्रदेश में एक केंद्रीय नेतृत्व को मजबूत करना और स्थानीय गुटों को नियंत्रित रखना हो सकता है।
सामाजिक असर और लोकतांत्रिक संकेत
निर्वाचित प्रतिनिधियों को नजरअंदाज करना जमीनी स्तर के मतदाताओं में असंतोष को जन्म दे सकता है।
क्षेत्रीय विकास योजनाओं में जनप्रतिनिधियों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने की परंपरा टूटने से लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के कमजोर पड़ने का संकेत मिलता है।
आमंत्रण कार्ड में ही लोकतांत्रिक संस्थाओं के निर्वाचित प्रतिनिधियों की उपेक्षा ने इस नेक पहल की सार्थकता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज है कि क्या यह गलती महज प्रशासनिक लापरवाही है या बीजेपी का एक सोचा-समझा राजनीतिक दांव?
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