
“जब वक्त की साँसें गिनती पर हों, तब हर सेकंड अमूल्य होता है। पर भारत के इमरजेंसी कॉल सिस्टम में पहले 30 सेकंड अमिताभ बच्चन की आवाज़ सुननी पड़ती है — ‘साइबर फ्रॉड से बचिए’! अब सवाल ये है कि साइबर क्राइम से तो बचा लिया, पर क्या यमराज से भी कोई सौदा हो गया है?”
देश भर में लोगों की जान बचाने वाले इमरजेंसी नंबरों पर कॉल करने से पहले अगर आवाज़ यह हो—
“नमस्कार, ये आपकी सुरक्षा हेतु सूचना है…”
तो ज़रा सोचिए, क्या वक़्त की गर्दन पर खड़े उस ‘एम्बुलेंस वाले सेकंड’ को ये चेतावनी सुनाई देती है?
“242 lives burnt in 38 seconds, and we were caught up in the warning!”
पहले 30 सेकंड तक “सावधान! साइबर अपराध से बचिए…”
और जब बात ऑपरेटर तक पहुँची—
“क्षमा करें, आपकी कॉल महत्वपूर्ण है, कृपया प्रतीक्षा करें…”
अब आप बताइए, हार्ट अटैक की उलटी गिनती में जब हर धड़कन की कीमत होती है, उस समय
क्या डॉक्टर का नंबर मिलते ही “साइबर ठगी से बचिए!” सुनना ज़रूरी है?
“अगर आपकी गाड़ी पलट गई है, खून बह रहा है, तो घबराइए नहीं! पहले सुनिए, ‘साइबर सुरक्षा आपके हाथ में है!’
फिर आराम से मरिए!”
1 बार कॉल करो, 1 बार चेतावनी सुनो, 9 मिनट तक नेटवर्क का इंतज़ार करो!
कहीं ऐसा न हो कि अगले साल से ये अलर्ट अमिताभ की जगह अनुपम खेर बोले—
“अरे! मरने से पहले ये बात जान लीजिए, ठगी से बचे रहिए!”
समाधान नहीं, सिर्फ सतर्कता — यह कैसा सिस्टम?
भारत सरकार और टेलीकॉम विभाग की मंशा अच्छी हो सकती है, लेकिन “हर बार, हर कॉल में वही चेतावनी सुनना, वो भी इमरजेंसी में,” ये नीति नहीं, निरी संवेदनहीनता है।
अगर यह चेतावनी दिन में पहली कॉल पर, या केवल सामान्य कॉल्स पर लागू हो, तब समझ में आता है।
लेकिन जिस नंबर पर फोन का मतलब ही जान बचाना है, वहाँ चेतावनी जरूरी नहीं, संजीवनी चाहिए!
आपदा में अवसर की बात छोड़िए,
यहाँ तो आपदा में अवाजें ही आवाजें हैं,
और ज़िंदगी— सिस्टम की प्रतीक्षा में ख़ामोश हो जाती है।
अतः सरकार और संबंधित एजेंसियों से विनम्र अनुरोध है—
“एमरजेंसी को वाकई एमरजेंसी रहने दें, और साइबर चेतावनी को थोड़ी राहत दें।”
वरना अगली बार कोई सीरियस केस में फोन करेगा तो…
“अमिताभ कहेंगे – सावधान रहें…”
और कॉलर कहेगा – अब तो राम नाम सत्य है…”



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