शराब के नशे के घुटती जिंदगी चमकते माफिया

वह जिला जहाँ कभी जंगलों की हरियाली, पहाड़ी नदियों की कल-कल और लोक संस्कृति की खुशबू बसी थी, आज वहां हर गली-कूचे में एक ही गंध है — शराब, गांजा, पाउडर और बेखौफ व्यापार की।
अब नाम बदलते देर नहीं — “उड़ता अनूपपुर”। व्यवस्था की नींद और माफियाओं की चांदी
यहाँ अब न कोई नियम दिखता है, न रोक-टोक।
सुबह किराने की दुकान पर बिस्किट के साथ गांजा,
ढाबे पर पराठे के साथ शराब।
कोई कहेगा — ये सिस्टम है।
सच यह है — यहाँ सिस्टम नाम की कोई चीज बची ही नहीं।
बोलेरो की टक्कर नहीं, चेतावनी थी
15 जून की रात, कोतमा में शुक्ला ढाबे के पास एक युवक को कुचल देने की घटना कोई साधारण हादसा नहीं। यह एक स्पष्ट संकेत था —
“जो बोलेगा, वो कुचला जाएगा।”
वाहन बिना नंबर का, सवार अज्ञात, लेकिन सब कुछ पहले से तय।
लोगों ने देखा, सुना, समझा — लेकिन जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं।
शब्दों से नहीं, साए से चलता है यहाँ राज
जिले के ठेकों की कमान अब किसी आम व्यापारी के हाथ में नहीं —
नाम भले कारोबार का हो, लेकिन व्यवहार पूरा गिरोहबाज़ी जैसा।
बिना नंबर की गाड़ियाँ,
काली फ़िल्म,
हूटर और
गुप्त हथियार
सब कुछ ‘अधिकारिक’ ढंग से दौड़ता है।
जिन्हें रोकने का काम था, वे या तो समझौते में हैं या अनदेखी के अभ्यास में माहिर।
दस की गोली, पचास का इंजेक्शन — बच्चों तक नशे में डूबे
स्कूल, कॉलेज, मंदिर, चौराहे — अब इनमें फर्क नहीं।
हर गली में नशा उपलब्ध है — बस भुगतान कैश में होना चाहिए।
गांजा
सिरप,
नशीली गोलियाँ
अब अनूपपुर का नया “रोजगार मॉडल” बन चुका है।
कहाँ है नियंत्रण? कहाँ हैं नियम?
68 करोड़ का ठेका,
हर गली में ‘फील्ड ऑफिस’,
और गांव-गांव तक “डिलीवरी सिस्टम”
जैसे कोई ई-कॉमर्स कंपनी हो!
जनजातीय क्षेत्र होने के कारण कुछ लीगल छूट भी है, मगर अब वह संस्कृति नहीं, सुविधा के
बहाने कई कुंटल नशा हर रोज पहुंचता है बाजारों में। “तंत्र मौन है, माफिया एक्टिव है”
कई बार ज्ञापन दिए गए, कई बार खबरें चलीं, महिलाओं ने प्रदर्शन किया —
पर न दुकान हटी, न अहाते बंद हुए।
क्यों?
क्योंकि यह कारोबार अब “व्यापार नहीं, व्यवस्था” बन चुका है।अनूपपुर अगर अब भी नहीं जगा, तो अगला नाम होगा – “उजड़ा अनूपपुर”
जिसने भी आंखें मूंद रखी हैं, वह भूल रहे है कि
माफिया किसी का नहीं होता।
वह सिर्फ तब तक आपके साथ है, जब तक आप चुप हैं।
जिस दिन आम जनता ने बोलना शुरू किया, उस दिन यह साजिशें बेनकाब होगी ।
लेकिन वह दिन अब दूर नहीं — कोतमा की सड़कों पर जो आक्रोश दिखा, ये सच्चाई है, अफवाह नहीं ।


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