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कक्का की चौपाल में अखिल भारतीय पंचायत परिषद के 67वें स्थापना दिवस का भव्य आयोजन

कक्का की चौपाल में अखिल भारतीय पंचायत परिषद के 67वें स्थापना दिवस का भव्य आयोजन



गांव की मिट्टी की खुशबू, चौपाल की धूल में लिपटी बातों की मिठास, और सरपंचों की वह ताकतवर आवाज जो वर्षों से ग्रामीण लोकतंत्र की नींव को मजबूत करती आ रही है। ऐसे ही एक ऐतिहासिक क्षण का गवाह बना इंदौर के समीप स्थित नैनोद ग्राम पंचायत, जहां 12 अप्रैल 2025, शनिवार को अखिल भारतीय पंचायत परिषद के 67वें स्थापना दिवस का भव्य आयोजन संपन्न हुआ। इस आयोजन में सरपंचों का जोश, पदाधिकारियों की नीति दृष्टि और पंचायतों के भविष्य को लेकर गूंजती आवाजें, सब कुछ ऐसा था मानो कक्का की चौपाल किसी महाकुंभ में बदल गई हो।

चौपाल की रौनक और  स्वागत 

नैनोद ग्राम की सड़कें उस सुबह कुछ खास थीं। हर कोने पर हर्षोल्लास की झलक दिख रही थी। ड्रीम वर्ल्ड रिसॉर्ट के बाहर तिरंगे और पंचायत परिषद के झंडे लहराते हुए मानो ग्राम स्वराज्य का जयघोष कर रहे थे।
सरपंच सुरेंद्र सोलंकी ने जब अपने साथियों के साथ राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक जादौन और प्रदेश अध्यक्ष अशोक सिंह सेंगर का स्वागत किया, तो कुमकुम तिलक, पुष्पमालाएं और ढोल नगाड़ों की थाप से माहौल गूंज उठा। नीतू निलेश जैन के हाथों से सजे हुए थाल में रखे चावल के अक्षत और दीपक की ज्योति ने मानों लोकतंत्र की इस दीपशिखा को और प्रज्वलित कर दिया।
सभा का उद्घाटन – इतिहास से भविष्य की ओर
मंच पर जैसे ही राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक जादौन खड़े हुए, पूरा पंडाल तालियों से गूंज उठा। उनके भाषण में गौरवशाली इतिहास और वर्तमान की ज़िम्मेदारी का अद्भुत संतुलन था। उन्होंने कहा

यह परिषद देश का सबसे पुराना पंचायत संगठन है, जो आज भी न केवल सरपंचों की आवाज बनकर खड़ा है, बल्कि शासन-प्रशासन को लोकतंत्र की जड़ों से जोड़ने वाला पुल भी है।

प्रदेश अध्यक्ष अशोक सिंह सेंगर ने जब पंचायती राज की ऐतिहासिक भूमिका पर बात की, तो सभा में बैठे हर सरपंच के चेहरे पर आत्मविश्वास की रेखा स्पष्ट झलक रही थी। उन्होंने कहा
आज अगर पंचायतों को विकास की जिम्मेदारी मिली है, तो इसमें परिषद का दशकों का संघर्ष शामिल है।

मुद्दों की बात  सरपंचों की पीड़ा और संगठन की शक्ति

राष्ट्रीय सचिव महेंद्र बुंदेला का वक्तव्य बहुत सीधा था  “दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सोचिए, तभी गांव आगे बढ़ेगा। यह बात सुनकर चौपाल में बैठे कक्का ने पास बैठे किशन सरपंच से कहा – “बुंदेला तो बात की जड़ पर हाथ धर दिए रे!

हेमराज चौहान ने पंचायतों को मिलने वाली दिक्कतों पर ध्यान खींचते हुए कहा

फील्ड में जो समस्याएं आती हैं, उनका समाधान संगठन के जरिए ही संभव है। इसलिए इसे और मजबूत करें।

पुष्पेंद्र देशमुख ने जब बताया कि सरपंचों को मिले 29 अधिकार सरकार पूर्णतः लागू नहीं कर रही, तो वहां एक हलचल सी हुई। सरपंच को अधिकार मिलेंगे, तभी गांव मजबूत होगा, ये स्वर जनसभा से उठने लगे।

महिला शक्ति की पुकार

प्रीति राठौर, महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष, ने मंच पर खड़े होकर जब महिलाओं के आरक्षण और सहभागिता की बात की, तो सभा में बैठी पंचायत सदस्य श्रीमती नीतू जैन की आंखों में चमक आ गई।

महिलाएं अगर पंचायत में आगे आएंगी, तो विकास घर-घर तक पहुंचेगा,” उन्होंने गर्व से कहा।

संवैधानिक अधिकार और संघर्ष

नरेंद्र चौहान दावतपुरा ने जब कहा कि – “संविधान में पंचायती राज नहीं था, उसे स्थापित करने में परिषद की भूमिका ऐतिहासिक रही है,” तो पंडाल में बैठे वरिष्ठ जन भावुक हो उठे।

सीताराम कौरव की बात  “संगठित रहना ही शक्ति है,” एक बार फिर इस पूरे आयोजन का मंत्र बन गई।

आभार और आत्मगौरव की अनुभूति

जब मंच पर कुं. सुरेंद्र सिंह सोलंकी आए और सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया, तो वह केवल शब्द नहीं थे  वह थे परिषद के एक-एक कार्यकर्ता की भावना। उन्होंने कहा

नैनोद आज गौरवान्वित है कि देश का सबसे बड़ा पंचायत संगठन हमारे गांव में अपने स्थापना दिवस को मना रहा है।”

पर्यावरणविद् अशोक मेहता द्वारा अतिथियों को माला पहनाकर सम्मानित करने का दृश्य मानो इस आयोजन में प्रकृति और विकास के समन्वय का प्रतीक बन गया

चौपाल पर चर्चा “कक्का” की अंतिम बात

कार्यक्रम के बाद चौपाल पर बैठे बुजुर्ग “कक्का” बोले

देखो बेटा, जहां सरपंच एकजुट होते हैं, वहां गांव नहीं, देश बनता है। ये जो पंचायत परिषद है ना, ये किसी संस्था का नाम नहीं, ये तो लोकतंत्र की असली आवाज है। जब दिल्ली की कुर्सियों तक गांव की बात पहुंचती है, तब जानो कि परिषद ज़िंदा है।”

अखिल भारतीय पंचायत परिषद का 67वां स्थापना दिवस न केवल एक आयोजन था, बल्कि यह त्रिस्तरीय पंचायती राज की दृढ़ता, सरपंचों की एकता और ग्रामीण भारत की आत्मा का महापर्व था। नैनोद गांव की चौपाल ने इतिहास का वह पन्ना लिखा, जिसमें सरपंचों का संघर्ष, संगठन की शक्ति और लोकतंत्र की आत्मा समाहित थी।

कक्का की चौपाल से यही संदेश निकला – गांव जागा है, अब भारत बदलेगा।

कैलाश पाण्डेय

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