
भारतीय लोकतंत्र में विचारों की लड़ाई सदैव रही है। यह वही देश है जहां एक ओर महात्मा गांधी ने “अहिंसा” और “सत्य” के बल पर ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती दी, तो दूसरी ओर आज़ादी के बाद से लेकर वर्तमान तक विचारधाराओं की भिड़ंत निरंतर जारी रही है।
हाल ही में कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार के बयान – “पीएम मोदी संघी हैं, संघी मतलब आतंकवादी” – ने एक बार फिर इस वैचारिक संघर्ष को सतह पर ला दिया है। पत्रकार मेघा प्रसाद के संयमित और तार्किक प्रश्नों के सामने कन्हैया कुमार का जवाब न केवल राजनीतिक हताशा को दर्शाता है, बल्कि यह भी उठाता है कि क्या आज के नेता गांधी के विचारों को समझते भी हैं?
कन्हैया कुमार का बयान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या घृणा की भाषा?
कन्हैया कुमार एक युवा नेता हैं, जिनसे अपेक्षा थी कि वे तर्कसंगत, विचारशील और यथार्थवादी राजनीति की मिसाल बनेंगे। लेकिन जब कोई नेता
एक पूरे संगठन (आरएसएस) को “आतंकवादी” कहता है,
और गांधी की हत्या को पूरे विचारधारा से जोड़ देता है,
तो यह लोकतंत्र के उस मूल विचार पर हमला है जहां हर विचार को सुना जाना चाहिए, लेकिन अपमान नहीं किया जाना चाहिए।
पत्रकार मेघा प्रसाद का सवाल “संघी मतलब गाली?” बिलकुल वही सवाल है जो आज देश का एक बड़ा वर्ग पूछ रहा है।
गांधी जी का संघ और आरएसएस के प्रति नजरिया क्या था?
गांधी जी ने कभी आरएसएस का नाम लेकर निंदा नहीं की। हालांकि, उन्होंने धार्मिक संकीर्णता के विरुद्ध आवाज उठाई। गांधी का जोर था कि:
हिंदू हो या मुसलमान, सब भारत मां के बच्चे हैं।
अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है।
लेकिन गांधीजी यह भी मानते थे कि राष्ट्र को सनातनी मूल्यों से काटकर नहीं देखा जा सकता। इसलिए वे चाहते थे कि समाज एकता के साथ बढ़े।
आरएसएस को गांधी ने कभी “आतंकवादी संगठन” नहीं कहा, हां, वे कठोर धार्मिक कट्टरता के खिलाफ थे, चाहे वह किसी भी मज़हब की हो।
नाथूराम गोडसे और आरएसएस का संबंध क्या सबूत है?
नाथूराम गोडसे वह व्यक्ति था जिसने गांधी की हत्या की, और यह ऐतिहासिक तथ्य है। लेकिन
सरदार वल्लभभाई पटेल ने खुद संसद में कहा था कि हत्या की साजिश में आरएसएस की सामूहिक भूमिका प्रमाणित नहीं हो सकी।
आरएसएस पर कुछ समय के लिए प्रतिबंध जरूर लगा, लेकिन उसे बाद में क्लीन चिट दी गई।
यदि किसी व्यक्ति विशेष के अपराध के लिए पूरी संस्था को दोषी ठहराया जाए, तो क्या यह न्यायसंगत है?
क्या आरएसएस हिंसक संगठन है?
आरएसएस के लाखों स्वयंसेवक पूरे देश में सेवा कार्य करते हैं

बाढ़, भूकंप और महामारी के समय राहत कार्य
गुरुकुल, संस्कार केंद्र, सेवा बस्तियों में काम
‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के विचार को आगे बढ़ाना
क्या ये काम आतंकवादी संगठन करते हैं?
अगर कुछ लोगों को विचारधारा पसंद नहीं, तो यह अलग मुद्दा है। लेकिन उन्हें “आतंकवादी” कह देना न केवल असंवैधानिक है, बल्कि गांधी के सत्य के रास्ते की भी अवहेलना है।
अगर गांधी आज जीवित होते, तो क्या कहते?
कल्पना कीजिए, अगर गांधी आज होते, तो वे शायद कन्हैया कुमार को एक शांत, करुणा-भरी चिट्ठी लिखते
प्रिय कन्हैया,
तुम युवा हो, उत्साहित हो, और देश के लिए कुछ करना चाहते हो – यह प्रशंसनीय है। परंतु याद रखो, विचारधारा से असहमति के लिए भाषा में विष नहीं होना चाहिए।
मैंने कभी किसी संगठन को गाली नहीं दी, मैंने कभी हिंसा का समर्थन नहीं किया, और मैंने हर व्यक्ति में अच्छाई खोजने की कोशिश की।
जो तुम कर रहे हो – यह राजनीति का नहीं, घृणा का मार्ग है।
यदि तुम मेरे अनुयायी होने का दावा करते हो, तो पहले खुद में सत्य, संयम और सहिष्णुता लाओ।
तुम्हारा –
मोहनदास करमचंद गांधी
राजनीतिक हताशा का समाधान अपशब्द नहीं
कन्हैया कुमार जैसे नेता यदि गांधी के अनुयायी कहलाते हैं, तो उन्हें गांधी जैसा आचरण भी दिखाना होगा। लोकतंत्र विचारों का युद्ध है, लेकिन वह तर्क के शस्त्र से लड़ा जाता है, जुबान के जहर से नहीं।
पत्रकार मेघा प्रसाद का संवाद उदाहरण है कि पत्रकारिता कैसे राजनीति से ऊपर उठकर समाज के विवेक को बचा सकती है।
कन्हैया कुमार का यह कथन – “हां, सारे संघी मूर्ख हैं” – न केवल अशालीन है, बल्कि लोकतांत्रिक चेतना का अपमान भी है। क्या करोड़ों लोगों को केवल उनकी विचारधारा के कारण आप मूर्ख कह सकते हैं?
फिर क्या एक छात्र आंदोलन का हिस्सा रहे कन्हैया कुमार को सभी देशद्रोही कह दें?
भारत सत्य की भूमि है, बदले की नहीं।
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