
अनूपपुर जिले में सरकारी ज़मीनों पर अतिक्रमण कोई नई बात नहीं है, लेकिन जब रसूखदार लोग प्रशासन की आंखों में धूल झोंककर शासकीय भूमि पर कब्ज़ा जमाने लगें और अफसर केवल फाइलों में आदेश पारित कर हाथ झाड़ लें, तो समझ लेना चाहिए कि कानून केवल गरीबों के लिए ही सख्त है!
ताजा मामला ग्राम पंचायत फुनगा के चमन चौक का है, जहां अखिलेश गौतम (निवासी धनगवा) ने सरकारी भूमि पर कब्जा कर सेप्टिक टैंक का निर्माण शुरू कर दिया है। नायब तहसीलदार फुनगा ने 25 मार्च 2025 को इसे रोकने के लिए स्थगन आदेश जारी किया, लेकिन निर्माण कार्य धड़ल्ले से जारी है। शायद प्रशासन को इस पर कोई आपत्ति नहीं है या फिर ‘ऊपर’ से कोई ‘संरक्षण’ मिल रहा है!
कब्जाधारियों के आगे प्रशासन नतमस्तक!
मामला खसरा नंबर 441/1/2/1 की 111.967 वर्गफीट सरकारी ज़मीन का है, जिस पर अवैध निर्माण किया जा रहा है। मजेदार बात यह है कि यह कोई पहली बार नहीं हुआ है—2019 में भी इस अवैध निर्माण को रोकने के आदेश दिए गए थे, लेकिन दबंगई इतनी कि कानून को ठेंगा दिखाकर निर्माण कार्य जारी रखा गया।
अब सवाल उठता है कि जब 2019 में ही प्रशासन ने कार्रवाई की होती, तो क्या आज यह कब्जा कायम होता? लेकिन अफसरशाही ने तब भी कागजों में आदेश पास करके फाइलें बंद कर दीं और आज फिर वही इतिहास दोहराया जा रहा है।

फर्जी पट्टाधारी, कब्जाधारी और निष्क्रिय प्रशासन – किसका खेल?
गौर करने वाली बात यह है कि अनूपपुर में सरकारी ज़मीन पर कब्जा कोई अनोखी घटना नहीं है—हर गली, हर चौक पर कोई न कोई ‘फर्जी पट्टाधारी’ बैठा है, जो शासकीय भूमि को अपनी निजी संपत्ति समझता है। सवाल यह है कि क्या यह कब्ज़े यूं ही हो जाते हैं, या फिर इसमें ‘ऊपर’ तक का खेल शामिल है?
जब कोई गरीब अपनी रोज़ी-रोटी के लिए फुटपाथ पर दुकान लगाता है, तो प्रशासन मिनटों में कार्रवाई कर देता है। लेकिन जब कोई रसूखदार सरकारी भूमि पर कब्जा करता है, तो फाइलें दबी रह जाती हैं और बुलडोज़र भी ‘नींद में’ चला जाता है!
कब जागेगा प्रशासन, या फिर ‘विशेष’ संरक्षण जारी रहेगा?
अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस मामले में कार्रवाई करता है या फिर इसे भी ‘दबा’ दिया जाएगा? अगर कोई गरीब होता, तो शायद अब तक उसकी झोपड़ी उखाड़ दी जाती, लेकिन जब बात रसूखदारों की हो, तो क्या प्रशासन ‘न्याय’ करेगा?
जनता देख रही है, सवाल पूछ रही है और अब जवाब मांगा जा रहा है! क्या सरकारी भूमि पर दबंगों का अवैध कब्जा ऐसे ही चलता रहेगा, या फिर बुलडोज़र चलेगा? यह एक मामले की बात नहीं—पूरा सिस्टम ही कब्जाधारियों के लिए ‘सुविधाजनक’ बन गया है!



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