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तीन बच्चों के पिता ने रचाई शादी, पांच बच्चों की मां बनी   जीवनसंगिनी!”

तीन बच्चों के पिता ने रचाई शादी, पांच बच्चों की मां बनी   जीवनसंगिनी!”

सहरसा की अनोखी प्रेम कहानी तीन बच्चों के पिता और पांच बच्चों की मां का निर्णय, जिसने सबको चौंका दिया!
प्रेम, संघर्ष और समाज के बंधनों की अनोखी कहानी
क्या प्यार सच में किसी बंधन को नहीं मानता? क्या समाज की दीवारें सच्चे प्रेम को रोक सकती हैं? बिहार के सहरसा में एक ऐसी कहानी सामने आई, जो फिल्मों से भी ज्यादा रोमांचक और भावनात्मक है। तीन बच्चों के पिता ने पांच बच्चों की मां से शादी कर सबको चौंका दिया। यह सिर्फ एक शादी नहीं, बल्कि समाज की परंपराओं और मान्यताओं को चुनौती देने वाली एक दिलचस्प घटना है।
गांव की गलियों में जन्मी एक अनोखी दास्तान
सहरसा का एक छोटा-सा गांव, जहां हर कोई एक-दूसरे को जानता है। संकरी गलियों में बसी इस बस्ती में सुबह की चाय के साथ ही शुरू होती हैं चर्चाएँ—और इस बार मुद्दा था रामशरण (काल्पनिक नाम) और सीमा (काल्पनिक नाम) की अनोखी शादी।
रामशरण, जो पहले से शादीशुदा और तीन बच्चों का पिता था, और सीमा, जिसका पति इस दुनिया में नहीं था और उसके भी पांच बच्चे थे। समाज ने कभी यह नहीं सोचा था कि इन दोनों का प्यार एक दिन इतना गहरा हो जाएगा कि वे सात फेरे लेने का फैसला कर लेंगे।
प्रेम की दस्तक, जो समाज के डर से छुपी रही
सीमा और रामशरण की पहली मुलाकात गांव के एक मेले में हुई थी। दोनों के बीच सहानुभूति, समझ और दोस्ती का रिश्ता बना। सीमा की जिंदगी अकेलेपन और संघर्ष से भरी थी, वहीं रामशरण भी अपने जीवन में एक साथी की तलाश में था। धीरे-धीरे, उनके बीच का रिश्ता गहराता गया, लेकिन समाज की परंपराएँ उन्हें एक होने से रोक रही थीं।
रामशरण की पहली पत्नी को जब यह पता चला, तो वह सदमे में थी। वह न रामशरण को छोड़ना चाहती थी, न ही यह स्वीकार कर पा रही थी कि उसके पति ने किसी और से प्रेम किया।
कई महीनों की दुविधा और संघर्ष के बाद, रामशरण ने समाज की परवाह न करते हुए सीमा से शादी करने का फैसला किया। गाँव में हलचल मच गई। पंचायत बैठी, लोगों ने ताने मारे, लेकिन प्रेम ने इन सभी सवालों का जवाब खुद दिया।
सीमा ने कहा, “अगर हम एक-दूसरे को समझते हैं, सम्मान देते हैं और हमारे बच्चे भी इस रिश्ते को स्वीकार करते हैं, तो हमें किसी के आशीर्वाद की ज़रूरत नहीं!”
यह बयान सुनकर हर कोई दंग रह गया। रामशरण ने भी अपनी पहली पत्नी को भरोसा दिलाया कि वह उसे और अपने बच्चों को नहीं छोड़ेगा।

समाज की आँखों में आँसू और दिलों में सवाल
शादी की खबर आग की तरह फैली। गाँव की महिलाएँ अलग-अलग राय रखने लगीं—कुछ ने इसे प्रेम की जीत कहा, तो कुछ ने इसे सामाजिक मूल्यों का पतन। पंचायत भी धर्मसंकट में थी—क्या इस शादी को मान्यता दी जाए या इसे गैरकानूनी घोषित किया जाए?
लेकिन सबसे बड़ा आश्चर्य तब हुआ, जब रामशरण की पहली पत्नी ने भी इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया और कहा, “अगर मेरा पति खुश है और मेरे बच्चों को भी देखेगा, तो मुझे कोई शिकायत नहीं!”
यह सुनते ही पूरा गाँव एक क्षण के लिए स्तब्ध रह गया। इस प्रेम कहानी ने न केवल त्याग और समर्पण की मिसाल कायम की, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि रिश्ते सिर्फ समाज की मोहर से नहीं चलते, बल्कि आपसी समझ और प्यार से बनते हैं।
क्या यह बदलाव की शुरुआत है?
रामशरण और सीमा की शादी समाज के नियमों को चुनौती देने वाली थी, लेकिन क्या यह बदलाव की शुरुआत है? क्या अब समाज प्रेम और भावनाओं को पारिवारिक बंधनों से ऊपर रखेगा?

बिहार के सहरसा में यह अनोखी प्रेम कहानी भले ही व्यक्तिगत स्तर पर एक नई शुरुआत हो, लेकिन यह एक सवाल छोड़ जाती है—क्या हम सच्चे प्रेम को समाज के नियमों से आज़ादी दे सकते हैं?
(सहरसा से विशेष रिपोर्ट— एक सच्ची कहानी, जो समाज में बदलाव की शुरुआत है )

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