“पाकिस्तान की अंदरूनी अस्थिरता को रणनीतिक अवसर में बदलते हुए, भारत ने कूटनीति, सुरक्षा और वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाने की योजना बनाई है।”
“बलूचिस्तान से सिंध तक उठती विद्रोह की लहरें, और भारत की सधी हुई रणनीति—क्या टूटते पाकिस्तान के साथ नया दक्षिण एशिया आकार ले रहा है? पढ़िए भारत की चाणक्य नीति का विश्लेषण!”
पाकिस्तान में बढ़ती अस्थिरता बलूचिस्तान और सिंध में अलगाववादी आंदोलनों के बीच भारत की रणनीति पर वैश्विक दृष्टिकोण
दक्षिण एशिया की राजनीति इस समय एक उबाल पर है। पाकिस्तान, जो कभी अमेरिका और चीन की रणनीतिक साझेदारियों से खुद को एक मजबूत इस्लामी शक्ति के रूप में प्रस्तुत करता था, आज अपने ही घर में टूटने की कगार पर खड़ा है। बलूचिस्तान और सिंध जैसे प्रांत जहाँ आज़ादी के नारों से गूंज रहे हैं, वहीं भारत की ओर से एक सधी हुई लेकिन स्पष्ट रणनीति इस अस्थिरता को एक ऐतिहासिक अवसर में बदलने की तैयारी कर रही है। अगर ये प्रांत पाकिस्तान से अलग होते हैं और पीओके भारत में मिलता है, तो यह केवल क्षेत्रीय नहीं, बल्कि वैश्विक भू-राजनीति का नक्शा बदलने वाला परिदृश्य होगा।
भारत की रणनीति और नजरिया
पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK)
2016 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से बलूचिस्तान और पीओके का नाम लिया, तो दुनिया को पहली बार भारत की बदली हुई नीति की झलक मिली।
PoK भारत का कानूनी हिस्सा है, जिस पर पाकिस्तान ने 1947-48 के युद्ध के दौरान जबरन कब्ज़ा कर लिया था।
भारत ने अब PoK को केवल विवादित क्षेत्र नहीं, बल्कि अपने खोए हुए भू-भाग की तरह देखना शुरू किया है, और इसे वापस लेने की आवाज़ें संसद से लेकर जनसभा तक बुलंद हो रही हैं।
बलूचिस्तान में अलगाववादी ज्वाला
यहां की गूंज अब सिर्फ पहाड़ियों तक सीमित नहीं रही। बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) द्वारा चीनी अभियंताओं और पाकिस्तानी सुरक्षाबलों पर हमले वैश्विक समाचार बन चुके हैं।
बलूचिस्तान का महत्व केवल खनिज संसाधनों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह CPEC जैसी बहु-अरब डॉलर की परियोजनाओं का भी केंद्र है।
भारत पर पाकिस्तान द्वारा विद्रोह को हवा देने के आरोप लगाए जाते हैं, परंतु भारत इसे वहाँ के लोगों की “स्वाभाविक आकांक्षा” कहता है।
सिंध में गुप्तरूप से बढ़ी बेचैनी
कराची जैसे औद्योगिक केंद्र सिंध की आत्मा हैं। सिंधुदेश आंदोलन धीरे-धीरे जोर पकड़ रहा है, और सोशल मीडिया के माध्यम से वैश्विक मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहा है।
कराची पाकिस्तान का आर्थिक दिल है—अगर यह अलग होता है तो पाकिस्तान को ऑक्सीजन नहीं मिल पाएगी।
सिंध की जनता अब पंजाबी वर्चस्व और फौजी शासन से तंग आ चुकी है।
वैश्विक प्रतिक्रिया और भू-राजनीतिक विश्लेषण
भारत-पाक संबंधों में निर्णायक मोड़
एक ओर भारत आतंकी हमलों का सीधे जवाब दे रहा है, दूसरी ओर पाकिस्तानी पासपोर्ट धारकों पर प्रतिबंध, वीजा निलंबन और राजनयिक कठोरता यह दर्शाती है कि भारत अब पुराने रवैये में नहीं है।
जल युद्ध की दस्तक
भारत ने सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार की बात कही है, जिसे पाकिस्तान “जल-युद्ध” के रूप में देख रहा है। यदि यह संधि रद्द होती है, तो पाकिस्तान की कृषि प्रणाली बुरी तरह चरमरा जाएगी।
परमाणु हथियार दोस्त या दानव?
दुनिया चिंतित है कि अगर पाकिस्तान बिखरता है तो उसके परमाणु हथियार आतंकियों के हाथ न लग जाएं। अमेरिका, इज़राइल और भारत सतर्क हैं।
विभाजन की स्थिति में पाकिस्तान का स्वरूप
आँकड़ों में टूटता पाकिस्तान अर्थव्यवस्था का पतन
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पहले ही IMF की बैसाखियों पर चल रही है। सिंध और बलूचिस्तान अलग होने पर वह दिवालिया घोषित हो सकता है।
डॉलर के मुकाबले पाक रूपया अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुँच चुका है, और कराची के बिना पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था मृतप्राय हो जाएगी।
कट्टरपंथियों का संभावित राज
बचा पाकिस्तान (पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा) धार्मिक उग्रवादियों का गढ़ बन सकता है।
TTP, लश्कर और अलकायदा जैसे संगठनों को नई जमीन मिल सकती है।
गिलगित-बाल्टिस्तान और PoK मिलने से भारत को मध्य एशिया और अफगानिस्तान तक सीधी पहुंच मिलती है।
भारत की सीमाएं सुरक्षित होंगी, और CPEC जैसे परियोजनाओं पर चीन की निर्भरता भी भारत नियंत्रित कर सकता है।
भारत वैश्विक मंच पर एक निर्णायक शक्ति के रूप में उभरेगा, और UNSC स्थायी सदस्यता की राह और स्पष्ट हो सकती है।
यह परिदृश्य आज काल्पनिक लग सकता है, लेकिन पाकिस्तान की जमीनी हकीकत हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि घटनाएं घट रही हैं और वर्तमान स्थिति इसे और अधिक संभाव्य बना रही है।
भारत को इस मौके पर न सिर्फ कूटनीतिक दक्षता दिखानी होगी, बल्कि वैश्विक नैतिकता का भी पालन करना होगा। अगर यह रणनीति सफल होती है, तो 21वीं सदी के इतिहास में भारत की यह जीत ‘आधुनिक चाणक्य नीति’ का सबसे श्रेष्ठ उदाहरण मानी जाएगी।
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