
नई दिल्ली
भारत सरकार द्वारा सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty, 1960) को आंशिक रूप से स्थगित करने या पुनः समीक्षा की दिशा में कदम उठाने का निर्णय अब एक निर्णायक रणनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है, जो सीधे-सीधे पाकिस्तान की जल-आधारित जीवन प्रणाली पर प्रभाव डाल सकता है। यह निर्णय, पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में लिया गया एक ऐसा प्रतिकार है, जो कूटनीतिक युद्ध से कम नहीं है।
क्या है सिंधु जल संधि और क्यों है यह अहम?
सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई थी। इसके तहत 6 नदियों को दो भागों में विभाजित किया गया—
पश्चिमी नदियाँ: सिंधु, झेलम, और चनाब – इनका जल लगभग पूरी तरह पाकिस्तान को सौंपा गया।
पूर्वी नदियाँ: रावी, सतलज, और व्यास – भारत को पूर्ण अधिकार दिए गए।
इस संधि को अब तक दुनिया की सबसे स्थिर और दीर्घकालिक जल संधि माना जाता है, जो तीन युद्धों (1965, 1971, 1999) के बावजूद यथावत बनी रही।
भारत के पास क्या हैं विकल्प?
भारत को अपनी ज़मीन से होकर बहने वाली पश्चिमी नदियों पर “नॉन-कंजम्पटिव यूज” यानी सीमित जलविद्युत परियोजनाएं लगाने का अधिकार है, बशर्ते इससे पाकिस्तान को नुकसान न हो। फिलहाल भारत के पास कुछ महत्वपूर्ण परियोजनाएं हैं:
झेलम पर किशनगंगा और उड़ी बांध चनाब पर बगलीहार और सलाल परियोजना
लेकिन यदि भारत इन नदियों की जलधारा को बड़े बाँधों, जलाशयों और दिशा परिवर्तक संरचनाओं द्वारा नियंत्रित करता है, तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था, खाद्य सुरक्षा और जीवन प्रणाली पर जबरदस्त प्रभाव पड़ेगा।
पाकिस्तान पर क्या पड़ेगा प्रभाव?
कृषि पर भीषण असर
पाकिस्तान की लगभग 80% कृषि सिंचाई आधारित है, और यह पूरी तरह सिंधु, झेलम और चनाब पर निर्भर है। यदि इन नदियों की जलधारा बाधित होती है, तो धान, गेहूँ, गन्ना, कपास जैसे फसलें व्यापक रूप से प्रभावित होंगी।
नहर तंत्र ध्वस्त होगा
पाकिस्तान का सिंधु बैराज सिस्टम – जो पंजाब और सिंध प्रांतों को पानी देता है – ठप हो सकता है।
शहरी जल संकट
लाहौर, फैसलाबाद, कराची, रावलपिंडी जैसे प्रमुख शहरों में पीने के पानी की कमी उत्पन्न होगी।
उद्योग ठप पड़ेंगे
टेक्सटाइल, खाद्य प्रसंस्करण, कागज, थर्मल पावर जैसे क्षेत्र जल पर अत्यधिक निर्भर हैं, जिन्हें जबरदस्त झटका लगेगा।
आर्थिक गिरावट और महंगाई
जब कृषि उत्पादन ठप होगा, तो भुखमरी, बेरोज़गारी और महंगाई की दरें आसमान छुएंगी।
संभावित विद्रोह और अस्थिरता
जल संकट के कारण पाकिस्तान के अंदर ही प्रांतीय असंतोष, जल विवाद, और सिविल अनरेस्ट की संभावना बढ़ जाएगी।
पाकिस्तान की संभावित प्रतिक्रिया और अंतरराष्ट्रीय दबाव
पाकिस्तान इस कदम को ‘Water War’ घोषित कर सकता है और भारत को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में मुद्दा उठा सकता है।
क्या भारत पूरी तरह पानी रोक सकता है?
तकनीकी रूप से नहीं, क्योंकि भारत संधि में अब भी बाध्य है जब तक वह औपचारिक रूप से इसे निरस्त नहीं करता। लेकिन भारत तीन प्रमुख रणनीतियाँ अपना सकता है
पश्चिमी नदियों के पानी को अपने उपयोग के लिए मोड़ना (जैसे—रावी-उझ नदी पर जलाशय बनाना)।
जल विद्युत परियोजनाओं को तेज़ी से क्रियान्वित करना, जिससे डाउनस्ट्रीम फ्लो घटे।
जल रोकने के लिए बांध व जलाशय निर्माण को प्राथमिकता देना।
भारत को क्या करना चाहिए?
राजनयिक तैयारी अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्पष्ट रूप से बताना कि यह निर्णय रक्षा और आत्मनिर्भरता के सिद्धांत पर आधारित है।
विकल्पों का अध्ययन तकनीकी रूप से किस सीमा तक जल को रोका जा सकता है, इसका आकलन।
जल संरक्षण मिशन नदियों के जल के हर कतरे का विवेकपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करना।
सिंधु जल संधि का पुनर्विचार या स्थगन एक ऐतिहासिक निर्णय है, जो केवल एक प्राकृतिक संसाधन नहीं, बल्कि रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। पाकिस्तान की समस्त जीवन प्रणाली – खेती, उद्योग, समाज, और राजनीति – जल पर आश्रित है।
यदि भारत इस दिशा में पूरी गंभीरता और तकनीकी क्षमता के साथ आगे बढ़ता है, तो यह पारंपरिक युद्ध के बिना पाकिस्तान की कमर तोड़ने वाला कदम साबित होगा
यह निर्णय अब पटाखों से भी ज्यादा गूंज वाला है – और इसकी अनुगूंज बहुत दूर तक सुनाई देगी।



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