
पाकिस्तान द्वारा भारतीय उड़ानों के लिए एयरस्पेस बंद करना एक गंभीर कूटनीतिक और लॉजिस्टिक निर्णय है, लेकिन भारत के पास इसके विकल्प मौजूद हैं। आइए इसे विस्तार से समझते हैं
पाकिस्तान द्वारा एयरस्पेस बंद करने का सीधा अर्थ
पाकिस्तान के ऊपर से जाने वाली सभी भारतीय फ्लाइट्स को वैकल्पिक रूट लेना होगा।
इससे विशेषकर यूरोप, अमेरिका और मध्य एशिया जाने वाली उड़ानों पर असर पड़ेगा।
उड़ानों का फ्लाइट टाइम बढ़ेगा, जिससे ईंधन की खपत, ऑपरेशन कॉस्ट, और टिकट की कीमतें बढ़ सकती हैं।
भारत के पास क्या विकल्प हैं? ईरान-अरब मार्ग से उड़ानें मोड़ना
भारत पश्चिम की ओर जाने के लिए ईरान, ओमान, यूएई जैसे देशों के एयरस्पेस का प्रयोग कर सकता है।
यह मार्ग पहले भी बालाकोट स्ट्राइक के बाद प्रयोग में लाया गया था।
चीन-मंगोलिया-रूस मार्ग
उत्तर-पूर्व दिशा में होकर उड़ानें मंगोलिया और रूस के एयरस्पेस से यूरोप जा सकती हैं।
यह मार्ग थोड़ा लंबा और महंगा है, लेकिन वैकल्पिक रूप से प्रयोग हो सकता है। बांग्लादेश-थाईलैंड-एशिया मार्ग
कुछ फ्लाइट्स दक्षिण-पूर्व एशिया होकर यूरोप जाने की योजना बना सकती हैं, हालांकि यह ज्यादा लंबा रास्ता होगा।
कितना नुकसान होगा भारत को?
एयर इंडिया, इंडिगो, विस्तारा जैसी इंटरनेशनल एयरलाइंस को हर दिन 15-22 लाख रुपये प्रति फ्लाइट का अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ सकता है।
लंबी दूरी और ज्यादा ईंधन खर्च के चलते मालवाहक फ्लाइट्स पर भी असर पड़ेगा।यात्रियों को प्रभाव
यात्रा का समय 1 से 2 घंटे तक बढ़ सकता है।
टिकट की कीमतों में 10% से 20% तक इजाफा हो सकता है।

कूटनीतिक असर भारत इस निर्णय को ICAO (International Civil Aviation Organization) के समक्ष उठा सकता है, क्योंकि यह नागरिक उड्डयन के अंतरराष्ट्रीय नियमों के विरुद्ध है, खासकर अगर इससे नागरिकों की सुरक्षा या आपात सेवाएं बाधित होती हैं।
भारत ने पहले कैसे किया था सामना? (संदर्भ: 2019)
बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान ने 5 महीने तक एयरस्पेस बंद रखा था।
भारत ने ईरान और अरब देशों के रास्ते का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया।
पाकिस्तान की एयरस्पेस से गुजरने वाली लगभग 300+ इंटरनेशनल उड़ानें भारत, अफगानिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और अन्य देशों से आती-जाती हैं।
एयरस्पेस शुल्क के रूप में पाकिस्तान को दैनिक 10-12 लाख रुपये की आमदनी होती थी, जो अब बंद हो जाएगी।
विदेशी एयरलाइंस पाकिस्तान को बायपास करने लगती हैं जिससे पाकिस्तान की छवि और राजस्व दोनों को नुकसान होता है।
भारत के पास वैकल्पिक मार्ग हैं, लेकिन परिचालन लागत और समय में वृद्धि होगी।
पाकिस्तान का निर्णय अल्पकालिक कूटनीतिक कदम है, पर दीर्घकाल में यह स्वयं पाकिस्तान को ही अधिक आर्थिक और रणनीतिक नुकसान पहुँचा सकता है।
भारत इस मुद्दे को वैश्विक मंचों पर उठा सकता है और एयरलाइंस को निर्देशित कर सकता है कि वो वैकल्पिक मार्गों के साथ उड़ानें संचालित करें।पाकिस्तान द्वारा भारत के साथ सभी व्यापारिक संबंध बंद करना न केवल एक कूटनीतिक प्रतिक्रिया है, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी गंभीर असर डालने वाला कदम है। हालांकि यह कदम प्रतीकात्मक रूप से दिखता है, लेकिन इसके वास्तविक प्रभाव को समझने के लिए हमें भारत-पाक व्यापार की वास्तविकता, आयात-निर्यात आँकड़े, और दोनों देशों की आर्थिक संरचना को देखना होगा।

भारत-पाकिस्तान व्यापार का मौजूदा परिदृश्य (2024-25 तक) पाकिस्तान को कितना नुकसान होगा?
भारत से आयातित दवाइयों और सस्ती वस्तुओं पर निर्भरता: पाकिस्तान में 30% से ज्यादा जनता भारतीय जेनेरिक दवाओं पर निर्भर है। इन पर प्रतिबंध लगने से स्वास्थ्य सेवाओं पर सीधा असर पड़ेगा।
मूल्य वृद्धि भारत से आने वाले कृषि उत्पाद जैसे प्याज, टमाटर, चीनी, चाय पाकिस्तान में सस्ते थे। अब इन्हें महंगे विकल्पों जैसे ईरान, अफगानिस्तान या चीन से लाना होगा, जिससे कीमतें 25%-50% तक बढ़ सकती हैं।
लॉजिस्टिक लागत में वृद्धि भारत-पाक भूमि मार्ग (वाघा) सबसे सस्ता था। बंद होने पर समुद्री या लंबा भूमि मार्ग चुनना पड़ेगा।
औद्योगिक उत्पादन पर असर भारत से आने वाला रासायनिक कच्चा माल और प्लास्टिक पाकिस्तान के फैब्रिकेशन सेक्टर के लिए अनिवार्य है। इनकी कमी से पाक उद्योग को झटका लगेगा। भारत को कितना नुकसान होगा
भारत के कुल निर्यात में पाकिस्तान का हिस्सा 0.5% से भी कम है।
भारत अन्य विकल्पों जैसे बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, अफ्रीका को ये उत्पाद निर्यात कर सकता है।
राजनीतिक रूप से भारत को लाभ ही मिलेगा, क्योंकि यह कूटनीतिक दबाव बनाने का अवसर होगा।
चाय और दवाइयों के कारोबारियों को आंशिक असर
भारत के असम, पश्चिम बंगाल और गुजरात के व्यापारियों को अल्पकालिक लॉस हो सकता है, लेकिन सरकार इन्हें अन्य बाजारों से जोड़ सकती है।
दोनों देशों पर कितना प्रभाव पड़ेगा वैश्विक नज़रिया
WTO और SAFTA समझौते के अंतर्गत भारत और पाकिस्तान व्यापार करने के लिए बाध्य नहीं हैं, लेकिन इससे दक्षिण एशिया में आर्थिक सहयोग की संभावना और घटेगी।
चीन और तुर्की पाकिस्तान को कुछ राहत देने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन वे भारतीय उत्पादों के मुकाबले महंगे हैं।
भारत के लिए यह निर्णय लगभग प्रतीकात्मक है, जबकि पाकिस्तान के लिए यह आर्थिक आत्मघाती कदम है।
भारत के पास विकल्प, बाज़ार और उत्पादन क्षमता है, जबकि पाकिस्तान घरेलू स्तर पर जनता के गुस्से और महंगाई से घिरेगा।

यह कदम पाकिस्तान को राजनीतिक रूप से संतुष्टि दे सकता है, पर आर्थिक रूप से कंगाल करने वाला है।
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