
नई दिल्ली, 20 मार्च 2025 हाल ही में अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में हुए एक हिंसक प्रदर्शन में भाग लेने के कारण भारतीय छात्रा रंजनी श्रीनिवासन को अमेरिका से वापस लौटना पड़ा। रंजनी अमेरिका में फुलब्राइट स्कॉलरशिप पर पढ़ाई कर रही थीं और कोलंबिया विश्वविद्यालय में अर्बन प्लानिंग में पीएचडी कर रही थीं।
लेकिन इस घटना के बाद जो सबसे बड़ा सवाल उठता है, वह यह है कि अमेरिका में जहां कानून इतने सख्त हैं कि हिंसा और भड़काऊ नारों के लिए विदेशी छात्रों को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया जाता है, वहीं भारत में तथाकथित बुद्धिजीवी, छात्र और राजनीतिक दल खुलेआम राष्ट्रविरोधी नारे लगाते हैं और उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है?
अमेरिका में एक नारेबाजी से करियर खत्म, भारत में हिंसा पर भी इनाम
रंजनी श्रीनिवासन ने कोलंबिया विश्वविद्यालय में हमास समर्थक प्रदर्शनों में हिस्सा लिया, जहां यहूदियों के खिलाफ आपत्तिजनक नारे लगाए गए और विश्वविद्यालय की इमारतों पर कब्जा किया गया। इस घटना के तुरंत बाद अमेरिकी सरकार हरकत में आई और प्रदर्शन में शामिल सभी विदेशी छात्रों पर कड़ी कार्रवाई हुई।

सरकार ने कैसे लिया सख्त एक्शन?
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कोलंबिया विश्वविद्यालय की 50 करोड़ डॉलर (400 मिलियन अमेरिकी डॉलर) की फंडिंग रोक दी।
गृह सुरक्षा विभाग (DHS) ने विदेशी छात्रों के वीजा रद्द कर दिए और उन्हें या तो जेल जाने या स्वेच्छा से देश छोड़ने (Self-Deport) का विकल्प दिया।
रंजनी श्रीनिवासन सहित 40 विदेशी छात्रों ने अमेरिका छोड़ दिया।
दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरते ही रंजनी ने कहा, “भारत में बोलने की जो आज़ादी है, वैसी कहीं नहीं है!”
भारत में क्या होता अगर ऐसा प्रदर्शन होता?
अब भारत की स्थिति देखें। हाल ही में जेएनयू, जामिया, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) और जादवपुर विश्वविद्यालय में ऐसे ही नारेबाजी और हिंसक प्रदर्शनों की घटनाएँ हुईं, लेकिन यहाँ परिणाम इसके उलट रहे।
भारत में कैसी आजादी?
जेएनयू में ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ के नारे लगते हैं, लेकिन सरकार कोई ठोस कार्रवाई नहीं करती।
AMU और जादवपुर विश्वविद्यालय में ‘हिंदुओं को मारो’ जैसे भड़काऊ पोस्टर लगाए जाते हैं, लेकिन वहां की छात्र राजनीति ऐसे तत्वों को बचाने में लग जाती है।
राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेता ऐसे छात्रों का समर्थन कर उन्हें टिकट और उच्च पदों तक पहुंचाते हैं।
दिल्ली में इमरान मसूद खुलेआम कहता है ‘मोदी की बोटी-बोटी कर दूंगा’, लेकिन उसे कांग्रेस टिकट देकर सांसद बना देती है।
यहाँ सरकारें राष्ट्रविरोधी तत्वों को खुली छूट देती हैं, लेकिन अमेरिका जैसे देशों में इन पर तुरंत कार्रवाई होती है और लोगों को देश से बाहर निकाला जाता है।
अमेरिका में प्रदर्शन का मास्टरमाइंड जेल में, भारत में नेतागिरी का मौका
कोलंबिया विश्वविद्यालय में प्रदर्शन का मास्टरमाइंड मोहम्मद खलील था, जिसे अमेरिका सरकार ने गिरफ्तार कर लिया और अब उसे सीरिया डिपोर्ट किया जा रहा है।
उसकी अमेरिकी पत्नी को दो विकल्प दिए गए
1. या तो वह अपने पति से तलाक ले ले।
2. या फिर उसे सीरिया में निर्वासन की सजा भुगतनी होगी।
लेकिन भारत में ठीक इसका उल्टा होता है। यहाँ जो नेता और छात्र राष्ट्रविरोधी हरकतें करते हैं, उन्हें जेल की जगह प्रमोशन मिलता है।
2016 में जेएनयू में ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ का नारा लगाने वाले कन्हैया कुमार को कांग्रेस ने टिकट दे दिया।
वामपंथी छात्रों द्वारा ‘तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’ जैसे जातिवादी नारे लगाने के बावजूद कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई।
क्या भारत को अमेरिका से सीखना चाहिए?
अमेरिका में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी भी हिंसा या नफरत फैलाने वाली गतिविधि की इजाजत नहीं दी जाती। वहाँ जो छात्र इस तरह की गतिविधियों में शामिल होते हैं, उनका वीजा रद्द कर दिया जाता है, फंडिंग रोक दी जाती है और उन्हें देश छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है।

लेकिन भारत में हालात इसके बिल्कुल विपरीत हैं।
यहाँ सरकारें वोट बैंक के डर से राष्ट्रविरोधी तत्वों पर कार्रवाई करने से बचती हैं।
यहाँ अपराधियों को जेल में डालने के बजाय राजनीतिक दल उन्हें टिकट देकर विधायक, सांसद बना देते हैं।
यहाँ विश्वविद्यालयों में हिंदू-विरोधी नारे लगाने वाले छात्रों को आगे बढ़ने के मौके दिए जाते हैं।
अगर भारत को अपनी आंतरिक सुरक्षा और सामाजिक सौहार्द बनाए रखना है, तो उसे अमेरिका की तरह सख्त कार्रवाई करनी होगी।
भारत में बोलने की आज़ादी या अराजकता?
रंजनी श्रीनिवासन और कोलंबिया विश्वविद्यालय की घटना यह दिखाती है कि दुनिया के विकसित देशों में कानून का शासन है, जबकि भारत में अभिव्यक्ति की आज़ादी का दुरुपयोग किया जाता है।
यदि भारत को सुदृढ़ और संगठित राष्ट्र बनाना है, तो उसे विभाजनकारी और हिंसक मानसिकता के खिलाफ कठोर कदम उठाने होंगे।
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