
मध्य प्रदेश के रीवा जिले का गड़रा गांव, जो कभी अपनी शांत दिनचर्या और कृषि प्रधान जीवनशैली के लिए जाना जाता था, आज मौत की नमी से भीग चुका था। गाँव में पसरे सन्नाटे को चीरते हुए पुलिस और प्रशासन का काफिला धीरे-धीरे बढ़ रहा था।
डीजीपी कैलाश मकवाना, डीआईजी रीवा, आईजी साकेत प्रकाश पांडे, एसपी रसना ठाकुर, उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला, और अन्य उच्चाधिकारी गांव में दाखिल हुए, लेकिन वहां उन्हें स्वागत में फूल नहीं मिले, बल्कि टूटी हुई दीवारें, जले हुए मकान, और दहशत से कांपती हुई आँखें मिलीं।
“क्या सच में यह मध्य प्रदेश का गांव है?” डीआईजी ने खुद से बुदबुदाया।
हर तरफ एक ही सवाल गूंज रहा था— गड़रा इतना हिंसक

कैसे हो गया? मौत की ओर बढ़ते कदम
16 मार्च की शाम थी। हल्की ठंडी हवा खेतों के बीच से बह रही थी, लेकिन गड़रा गांव के भीतर किसी और ही तूफान की तैयारी हो रही थी।
साहिल (शनि दुबेदी / एक 25 वर्षीय ब्राह्मण युवक, गांव का जाना-पहचाना चेहरा था। पढ़ा-लिखा था, और जाति-पाति की सीमाओं से ऊपर उठकर गांव के सभी लोगों की मदद करता था। लेकिन शायद इसी वजह से कुछ लोगों की आँखों में चुभने लगा था। जब साहिल शनि दुबेदी अपने घर के बाहर खड़ा था, तभी कुछ साए उसकी ओर बढ़े।”बिजली काट दो!”
किसी ने यह आदेश दिया और पूरे गांव की रोशनी बुझा दी गई।
गड़रा अंधेरे में डूब गया। लेकिन यह कोई दुर्घटना नहीं थी, यह सोची-समझी चाल थी।
साहिल शनि दुबेदी ने जैसे ही महसूस किया कि कोई खतरा है, उसने भागने की कोशिश की। लेकिन तभी पहला पत्थर उसकी पीठ पर लगा।दूसरा पत्थर उसके सिर पर।और फिर भीड़ ने हमला बोल दिया।
लाठियां, धारदार हथियार, लोहे की रॉड—जो भी हाथ में आया, उससे उस पर वार किया गया।
“मत मारो!” उसकी कमजोर आवाज हवा में घुल गई।
लेकिन भीड़ को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा।
जब तक उसका शरीर निर्जीव नहीं हो गया, तब तक हमले जारी रहे।
पुलिस का आगमन और अंधेरे में फंसी वर्दी
घटना की सूचना मिलते ही पुलिस दल मौके पर पहुंचा।
सब-इंस्पेक्टर राम चरण गौतम के नेतृत्व में SAF की एक टुकड़ी गांव में दाखिल हुई। उनके साथ तहसीलदार, SDOP मैडम और अन्य पुलिसकर्मी भी थे।
लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनका इंतजार करने वाली भीड़ केवल गुस्साई नहीं, बल्कि खूनी बन चुकी थी।
जैसे ही पुलिस ने गांव में प्रवेश किया, छतों से, झाड़ियों से और गलियों से उन पर पत्थर बरसने लगे।
“पीछे हटो!” किसी पुलिसकर्मी ने चिल्लाया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

सब-इंस्पेक्टर राम चरण गौतम के सिर पर लोहे की रॉड से हमला हुआ, और वह लहूलुहान होकर गिर पड़े।
तहसीलदार को भीड़ ने घसीट लिया, और लाठियों से पीट-पीटकर उनके हाथ-पैर तोड़ दिए।
SDOP मैडम और अन्य पुलिसकर्मियों को एक घर में खींचकर बंद कर दिया गया, और उन पर लगातार हमले किए गए।
गांव, जो एक समय शांतिपूर्ण था, अब नरक में बदल चुका था। षड्यंत्र का पर्दाफाश
जब अतिरिक्त पुलिस बल ने गांव को अपने नियंत्रण में लिया, तब असली कहानी सामने आई।
गड़रा की हिंसा केवल व्यक्तिगत दुश्मनी का परिणाम नहीं थी। यह एक सुनियोजित षड्यंत्र था। जो हर गली मोहल्ले गांव शहर में रचा जा रहा है।
गांव में महीनों से जातीय और धार्मिक भेदभाव की चिंगारी सुलगाई जा रही थी। बाहरी तत्वों ने गांववालों के कानों में ज़हर घोल दिया था—
“वे तुम्हारे अधिकार छीन रहे हैं।”
“पुलिस तुम्हारे खिलाफ है।”
“अगर तुम नहीं उठे, तो कल तुम्हें उठा दिया जाएगा!”
यह झूठी अफवाहें धीरे-धीरे नफरत में बदल गईं, और फिर एक दिन वह नफरत हिंसा बन गई।लेकिन सवाल यह था—
“कौन था इस हिंसा का असली सूत्रधार?” प्रशासन का कड़ा संदेश
जब उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला ने गांववालों से बात की, तो उनकी आवाज में सख्ती थी—
“क्या यह तुम्हारी संस्कृति है? जहां पुलिस पर हमला किया जाता है, जहां अपने ही गांव के निर्दोष मारे जाते हैं?”
डीजीपी कैलाश मकवाना ने साफ शब्दों में कहा—

“हर दोषी को सजा मिलेगी। यह कोई दंगा नहीं था, यह एक संगठित साजिश थी, और जो इसके पीछे हैं, उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा।” कार्यवाही के साथ कलेक्टर पुलिस अधीक्षक का ट्रांसफर कर दिया गया और फिरआरोपियों की गिरफ्तारी शुरू हुई।
अब तक 29 लोगों को हिरासत में लिया जा चुका था। जांच में और भी नाम सामने आ रहे थे।
गांव में शांति तो लौटी, लेकिन सच्चाई यह थी कि गड़रा अब भी टूटा हुआ है। गड़रा, एक चेतावनी
गड़रा अब केवल एक गांव नहीं रहा। यह एक प्रतीक बन गया—
“जब लोग अपनी आँखों से नहीं देखते, अपने कानों से नहीं सुनते, और अपनी समझ से नहीं सोचते, तब वे भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं।”
गड़रा के खंडहर, जली हुई गलियां, और सहमी हुई आँखें इस बात की गवाह हैं कि नफरत का परिणाम केवल विनाश होता है।
अब सबसे बड़ा सवाल यह है—
क्या गड़रा फिर से उठेगा? या यह केवल एक शुरुआत है, उन तमाम षड्यंत्रों की, जो समाज को तोड़ने के लिए रचे जा रहे हैं?
“क्योंकि जब लोग सच को नहीं पहचानते, तो अंधेरा उतरता है।”
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