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कोतमा अबोध मासूमों का सहारा बना प्रशासन: संवेदनशीलता की मिसाल

कोतमा अबोध मासूमों का सहारा बना प्रशासन: संवेदनशीलता की मिसाल



“जब हाथ कांपते हैं, तब कोई सहारा बनता है। जब आंखें भर आती हैं, तब कोई आंसू पोंछता है। और जब अनाथ होने का दर्द असहनीय हो जाता है, तब कोई फरिश्ता बनकर आगे आता है।”
मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में होली के रंग फीके पड़ गए थे, जब कोतमा के बंजारा चौराहे पर एक मामूली विवाद के चलते एक निर्दोष पिता को जीवन से हाथ धोना पड़ा। कुछ क्षणों की झड़प, और फिर एक ऐसी त्रासदी जिसने तीन मासूम बच्चों से उनके पिता का साया छीन लिया।
लेकिन जहां दुख अंधेरे की तरह घिर आया था, वहीं एक रोशनी भी जली थी—संवेदनशील प्रशासन की रोशनी।
संवेदनशील नेतृत्व की मिसाल बने कलेक्टर हर्षल पंचोली
जिला प्रशासन के मुखिया कलेक्टर हर्षल पंचोली ने इस हादसे को केवल एक कानूनी केस की तरह नहीं देखा, बल्कि इसे मानवीय दृष्टिकोण से समझा। उन्होंने महसूस किया कि ये तीन अबोध बच्चे अब बेसहारा हो चुके हैं—कौन उन्हें संभालेगा? कौन उनकी शिक्षा का ध्यान रखेगा? कौन उनकी उंगलियों को थामेगा?
इसी सोच के साथ, कलेक्टर पंचोली ने बाल कल्याण समिति अनूपपुर के सहयोग से तीनों बच्चों के लिए प्रत्येक माह चार हजार रुपये की आर्थिक सहायता सुनिश्चित की। यह राशि उन्हें अठारह वर्ष की उम्र तक मिलती रहेगी ताकि वे बिना किसी वित्तीय संकट के अपना भविष्य संवार सकें।
“प्रशासन सिर्फ नियमों और कागज़ों तक सीमित नहीं होता, यह जिम्मेदारी का नाम है। इन बच्चों की जिंदगी को स्थिरता देना हमारी जिम्मेदारी है,”—कलेक्टर हर्षल पंचोली का यह बयान उनके मानवीय दृष्टिकोण को दर्शाता है।

पुलिस अधीक्षक मोती उर्रहमान की तत्परता
जब कोतमा के बंजारा चौराहे पर यह दर्दनाक घटना घटी, तो जिला पुलिस प्रशासन ने भी असाधारण तत्परता दिखाई। अनूपपुर के पुलिस अधीक्षक मोती उर्रहमान ने इस हृदयविदारक घटना को गंभीरता से लिया और अपनी टीम को तुरंत सक्रिय किया।
“न्याय में देरी अन्याय को बढ़ावा देती है। यह केवल कानून व्यवस्था का मामला नहीं था, बल्कि एक परिवार के जीवन-मरण का सवाल था।”
एसपी मोती उर्रहमान के निर्देश पर कोतमा पुलिस  टीम ने महज 48 घंटे के भीतर सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया।
समाज की सकारात्मक पहल: जब दिल आगे आए
इस घटना के बाद, 000miles.com वेबसाइट ने जब इस विषय को उजागर किया, तो समाज के जागरूक नागरिकों ने भी अपनी संवेदनशीलता का परिचय दिया। पाठकों के संदेशों और फोन कॉल्स की बाढ़ आ गई। लोगों ने न केवल इन मासूम बच्चों के भविष्य की चिंता जताई, बल्कि आर्थिक सहायता देने की भी पेशकश की।
“हमारी लेखनी का मकसद केवल खबर देना नहीं, बल्कि इंसानियत जगाना है। और जब समाज खुद मदद के लिए आगे आता है, तो यह पत्रकारिता की सबसे बड़ी सफलता होती है।”—000miles.com आप सभी शुभचिंतकों का  धन्यवाद ज्ञापित करते हैं।
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक इसरार मंसूरी का आश्वासन
“सरकार और प्रशासन केवल आदेश देने के लिए नहीं होते, वे जनता की ढाल बनते हैं।”
अनूपपुर के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक इसरार मंसूरी ने गहरा शोक व्यक्त करते हुए स्पष्ट किया कि प्रशासन बच्चों के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए हर संभव प्रयास करेगा।
“यह केवल इन तीन बच्चों की मदद नहीं है, बल्कि यह एक संदेश है कि कोई भी बेसहारा नहीं रहेगा, जब प्रशासन और समाज दोनों साथ हों।”
बाल कल्याण समिति की तत्परता: बच्चों के भविष्य की नींव
बाल कल्याण समिति अनूपपुर और महिला बाल विकास अधिकारी विनोद परस्ते और उनकी टीम ने यह सुनिश्चित किया कि यह आर्थिक सहायता बिना किसी बाधा के जारी रहे। प्रत्येक माह चार हजार रुपये प्रति बच्चा उनके दादा-दादी के बैंक खाते में DBT (Direct Benefit Transfer) के माध्यम से जमा होंगे।
निधि केवट (आयु 10 वर्ष)
विदि केवट (आयु 8 वर्ष)
अर्मान केवट (आयु 4 वर्ष)
पिता स्वर्गीय धनिराम केवट उर्फ बिक्की
मृत्यु 15/03/2025
मृत्यु का कारण मारपीट के कारण हुई मृत्यु
माता का नाम श्रीमती रामकली केवट
वर्तमान में बच्चों का पालन-पोषण कर रही हैं
दादी बुधवतिया केवट (आयु 70 वर्ष)
दादा पुन्नूलाल केवट (आयु 77 वर्ष)
पता वार्ड नंबर 06, पुरानी बस्ती, कोतमा

“हमें इन बच्चों को केवल सहानुभूति नहीं, बल्कि स्थायी सहायता देनी होगी। वे एक बेहतर कल के हकदार हैं।” कलेक्टर साहब का हमारे पास फोन आया था इन बच्चों की परिवारिष के लिए हमने आदेश का पालन किया
                                        

                                  विनोद परस्ते
                                  बाल सरंक्षण अधिकारी
जब प्रशासन और समाज एक साथ खड़े होते हैं
कोतमा में हुआ यह हादसा केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं था, बल्कि यह समाज के लिए एक कठोर चेतावनी थी।
लेकिन इस त्रासदी के अंधकार में एक रोशनी भी थी—संवेदनशील प्रशासन, सक्रिय पुलिस, जागरूक समाज, और एकजुटता की मिसाल। जब दर्द असहनीय हो जाता है, तब कोई न कोई फरिश्ता बनकर आता है।
और इस बार, वह फरिश्ता प्रशासन बना, जिसने यह संदेश दिया—

कैलाश पाण्डेय

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One response to “कोतमा अबोध मासूमों का सहारा बना प्रशासन: संवेदनशीलता की मिसाल”

  1. रमेश विश्‍वहार, गीतकार, रायपुर Avatar
    रमेश विश्‍वहार, गीतकार, रायपुर

    सच ही कहा है किसी ने – कलमकार यदि सच्‍चे मन से कुछ लिख दे तो ईश्‍वर अपने स्‍वरूप में किसी को भेज देते हैं I माध्‍यम कैलाश पाण्‍डेय जी I
    प्रणाम सर, आपको और आपकी कलम को

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Anuppur
(M.P.)

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