
भोपाल। सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्यों में बढ़ती ‘मुफ्तखोरी संस्कृति’ पर चिंता जताने के बाद इस विषय पर बहस तेज हो गई है। मध्य प्रदेश भी इससे अछूता नहीं है। राज्य में ‘लाड़ली बहना योजना’ जैसी योजनाओं पर खर्च होने वाले भारी भरकम बजट ने विकास कार्यों की गति को प्रभावित कर दिया है। वर्तमान में इस योजना के तहत महिलाओं को 1250 रुपये प्रति माह दिए जा रहे हैं, लेकिन सरकार इसे बढ़ाकर 2500 से 3000 रुपये करने की योजना बना रही है। यदि ऐसा होता है, तो अकेले इस योजना पर सालाना 40,000 करोड़ रुपये का खर्च आएगा, जिससे राज्य की वित्तीय स्थिति पर अतिरिक्त दबाव बढ़ेगा।
राज्य पर बढ़ता कर्ज: चार लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा पार करने की आशंका
मध्य प्रदेश सरकार एक ओर आगामी वित्तीय वर्ष के लिए बजट तैयार कर रही है, तो दूसरी ओर वित्तीय प्रबंधन की चुनौती और गंभीर होती जा रही है। अनुमान लगाया जा रहा है कि 2025-26 के बजट का आकार चार लाख करोड़ रुपये से अधिक हो सकता है। महिला एवं बाल विकास विभाग के लिए लगभग 27 हजार करोड़ रुपये का बजट प्रस्तावित है, जिसमें ‘लाड़ली बहना योजना’ और 450 रुपये में रसोई गैस उपलब्ध कराने जैसी योजनाओं के लिए राशि शामिल होगी। मौजूदा समय में ‘लाड़ली बहना योजना’ पर ही सरकार हर साल लगभग 18 हजार करोड़ रुपये खर्च कर रही है।
‘मुफ्त राशन’ और ‘बिजली सब्सिडी’ से बढ़ रहा वित्तीय बोझ
इसके अलावा, राज्य में बिजली बिल सब्सिडी के लिए 25 हजार करोड़ रुपये से अधिक का प्रावधान किया गया है। वहीं, मुफ्त राशन वितरण योजना का खर्च अलग है। इसके अलावा, स्कूटी, लैपटॉप, साड़ी, जूते और कन्यादान जैसी योजनाएं भी सरकार के वित्तीय प्रबंधन को लगातार प्रभावित कर रही हैं।
बढ़ते कर्ज का भार आने वाली पीढ़ियों पर
सरकार द्वारा मुफ्त योजनाओं को जारी रखने के लिए लगातार लिया जा रहा कर्ज भविष्य की पीढ़ियों के लिए गंभीर वित्तीय बोझ बनता जा रहा है। राज्य के बजट का एक बड़ा हिस्सा अब कर्ज पर ब्याज चुकाने में खर्च हो रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि अर्थव्यवस्था में उत्पादन और रोजगार सृजन की बजाय ‘मुफ्तखोरी योजनाओं’ को अधिक प्राथमिकता दी जा रही है, जिससे दीर्घकालिक वित्तीय संकट खड़ा हो सकता है।
विकास कार्यों पर घटता बजट: रुके पड़े सीएम राइज स्कूल और अधोसंरचना परियोजनाएं
बजट का असंतुलित वितरण विकास योजनाओं पर असर डाल रहा है। प्रदेश में सीएम राइज स्कूलों का निर्माण कार्य बजट की कमी के कारण रुक गया है। पूंजीगत व्यय मात्र 70 हजार करोड़ रुपये में सिमट गया है, जबकि अधिकांश बजट वेतन और भत्तों पर खर्च किया जा रहा है। यदि यही स्थिति बनी रही, तो आने वाले वर्षों में राज्य को बुनियादी ढांचे और औद्योगिक विकास के लिए गंभीर वित्तीय संकट का सामना करना पड़ सकता है।
(रिपोर्ट: विशेष संवाददाता, भोपाल)
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