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आदिवासी धर्मांतरण और आरक्षण क्या सरकार ईसाई बने आदिवासियों से छीन सकती है सरकारी नौकरियां?

आदिवासी धर्मांतरण और आरक्षण क्या सरकार ईसाई बने आदिवासियों से छीन सकती है सरकारी नौकरियां?



भारत के आदिवासी समुदायों का देश की सांस्कृतिक विविधता में महत्वपूर्ण योगदान है। हालांकि, समय-समय पर इन समुदायों के बीच धर्मांतरण के मुद्दे सामने आते रहे हैं, जो सामाजिक, सांस्कृतिक और कानूनी दृष्टिकोण से जटिल हैं। विशेष रूप से, मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले के कोतमा क्षेत्र में हाल ही में धर्मांतरण की गतिविधियों की रिपोर्टें आई हैं। इस संदर्भ में, एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है: जो आदिवासी ईसाई धर्म अपना चुके हैं और आरक्षण के तहत शासकीय नौकरियों में कार्यरत हैं, क्या सरकार उनके लिए आरक्षण वापस ले सकती है? यह प्रश्न न केवल कानूनी और संवैधानिक पहलुओं से जुड़ा है, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता के सिद्धांतों से भी संबंधित है।

धर्मांतरण और आरक्षण: कानूनी परिप्रेक्ष्य
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूचियों का प्रावधान है। अनुच्छेद 341 के अनुसार, राष्ट्रपति एक अधिसूचना द्वारा अनुसूचित जातियों की सूची निर्धारित करते हैं, जबकि अनुच्छेद 342 में अनुसूचित जनजातियों के लिए यही प्रक्रिया अपनाई जाती है। इन सूचियों में शामिल समुदायों को शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में आरक्षण का लाभ मिलता है।
धर्मांतरण के संदर्भ में, अनुसूचित जाति के लिए स्थिति स्पष्ट है। 1950 के राष्ट्रपति आदेश के अनुसार, केवल हिंदू, बौद्ध और सिख धर्म के अनुयायी ही अनुसूचित जाति के आरक्षण का लाभ उठा सकते हैं। इसका अर्थ है कि यदि कोई अनुसूचित जाति का व्यक्ति ईसाई या मुस्लिम धर्म अपनाता है, तो वह आरक्षण के लाभ से वंचित हो सकता है।
हालांकि, अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) के मामले में स्थिति भिन्न है। अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिए आरक्षण का लाभ उनके धर्म के आधार पर सीमित नहीं है। अर्थात, यदि कोई आदिवासी व्यक्ति ईसाई या मुस्लिम धर्म अपनाता है, तो भी वह अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के लाभ का पात्र रहता है। केंद्रीय मंत्री जुएल उरांव ने स्पष्ट किया है कि केंद्र सरकार अनुसूचित जनजाति में आने वाले धर्मांतरित हिंदुओं, ईसाइयों तथा मुसलमानों को अनुसूचित जनजाति के तहत मिलने वाली सुविधा को रोकने पर विचार नहीं कर रही है।
अनूपपुर जिले में धर्मांतरण की स्थिति
मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले के कोतमा क्षेत्र में हाल ही में धर्मांतरण की गतिविधियों की रिपोर्टें सामने आई हैं। मार्च 2023 में, कोतमा जनपद पंचायत के उपाध्यक्ष और भाजपा नेता अभिषेक सिंह ने आरोप लगाया कि क्षेत्र में बाहरी लोग आदिवासी परिवारों का धर्मांतरण कराने का प्रयास कर रहे हैं। इस मामले में पुलिस ने दो लोगों के खिलाफ जबरन धर्मांतरण का मामला दर्ज किया था।
धर्मांतरण के ऐसे मामलों में, यह देखा गया है कि कुछ संगठन आदिवासी समुदायों को आर्थिक, शैक्षिक या चिकित्सा सहायता के माध्यम से आकर्षित करते हैं, जिससे वे धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित होते हैं। हालांकि, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि धर्मांतरण स्वैच्छिक हो और किसी भी प्रकार के बल, धोखाधड़ी या प्रलोभन के बिना हो।

आरक्षण की वापसी संभावनाएं और चुनौतियां
जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, वर्तमान कानूनी ढांचे के तहत, धर्मांतरण के बावजूद अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को आरक्षण के लाभ मिलते रहते हैं। यदि सरकार धर्मांतरण करने वाले आदिवासियों से आरक्षण का लाभ वापस लेने का निर्णय लेती है, तो इसके लिए संविधान में संशोधन आवश्यक होगा। संविधान संशोधन एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है।
इसके अतिरिक्त, ऐसे किसी भी कदम के सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव भी होंगे। धर्मांतरण करने वाले आदिवासी तर्क दे सकते हैं कि वे अभी भी सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं और आरक्षण के लाभ के पात्र हैं। इसके विपरीत, कुछ समूहों का मानना है कि धर्मांतरण के बाद, व्यक्ति की सामाजिक स्थिति में बदलाव आता है, जिससे आरक्षण के लाभ की आवश्यकता नहीं रह जाती।
धर्मांतरण और आरक्षण का मुद्दा भारत में अत्यंत संवेदनशील और जटिल है। विशेष रूप से, आदिवासी समुदायों के संदर्भ में, यह प्रश्न उठता है कि धर्मांतरण के बाद भी क्या उन्हें आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। वर्तमान कानूनी ढांचे के तहत, धर्मांतरण करने वाले आदिवासी आरक्षण के लाभ के पात्र हैं। हालांकि, यदि सरकार इस नीति में बदलाव करना चाहती है, तो उसे संवैधानिक संशोधन और व्यापक सामाजिक संवाद की आवश्यकता होगी।

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One response to “आदिवासी धर्मांतरण और आरक्षण क्या सरकार ईसाई बने आदिवासियों से छीन सकती है सरकारी नौकरियां?

  1. रमेश विश्वहार Avatar
    रमेश विश्वहार

    प्रणाम भैया ।
    सारगर्भित आलेख और चिंतनपरक है भैया
    आजादी के 1700 के पूर्व इस्लामीकरण का दंश और 1700 के पश्चात अब तक इसाईकरण का द
    दंश भारतीय संस्कृति झेल रही है । विडंबना है सर ।
    छोटा नागपुर का पठार (झारखंड, उत्तर छत्तीसगढ़ और पश्चिमी उड़ीसा) इससे ज्यादा प्रभावित हुआ है ।

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