




नर्मदा महोत्सव में योग-प्रकृति संगम अमरकंटक में हजारों योग साधकों ने सूर्योदय की पहली किरण संग साधना की
अमरकंटक, जहां नर्मदा का दिव्य प्रवाह अपनी गोद में अध्यात्म, प्रकृति और संस्कृति को समाहित करता है, वहीं नर्मदा महोत्सव के शुभारंभ के साथ इस पावन धरा पर योग और प्रकृति प्रेमियों का महासंगम देखने को मिला। हजारों योग साधकों ने उगते सूरज की पहली किरण के साथ ‘उठ जाग मुसाफिर भोर भई, जो जागत है वो पावत है’ की प्रेरणादायी गूंज में योगाभ्यास प्रारंभ किया।
योगाभ्यास स्थल पर एक समान वस्त्र धारण किए हुए सभी साधक, मानो एक आध्यात्मिक लय में बंधे हों, अनुशासन और समर्पण के साथ योग लीडर की कमांड का अनुसरण कर रहे थे। वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ जब सूर्य की सुनहरी किरणें नर्मदा तट की लहरों को चूम रही थीं, तब वहां उपस्थित हर साधक अपने भीतर एक नव ऊर्जा का संचार महसूस कर रहा था। इस दिव्य माहौल में अनूपपुर के कलेक्टर हर्षल पंचोली ने भी सहभागिता की, और अपने अनुशासित योगाभ्यास से प्रकृति प्रेमियों को प्रेरित किया।




अमरकंटक प्रकृति, योग और अध्यात्म का संगम
अमरकंटक का प्राकृतिक सौंदर्य इस आयोजन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू रहा। चारों ओर विस्तृत हरीतिमा, मंद-मंद बहती नर्मदा की शीतल लहरें, पक्षियों के मधुर कलरव और पहाड़ों से टकराती सूर्य की स्वर्णिम किरणें – यह दृश्य किसी स्वप्न लोक से कम नहीं था। योगाभ्यास के दौरान जब साधकों ने विभिन्न मुद्राओं में योगाभ्यास प्राणायाम और सूर्य नमस्कार किया, तो ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वे स्वयं प्रकृति के साथ एकाकार हो रहे हों।



अमरकंटक का वातावरण अपने आप में एक आध्यात्मिक तीर्थ है। यहां की शांतिपूर्ण फिज़ाओं में एक अजब-सी आध्यात्मिक ऊर्जा है, जो योग और ध्यान के अभ्यास को और भी प्रभावी बना देती है। योगाभ्यास के दौरान साधकों ने नर्मदा तट की ओर मुख कर ‘शाश्वत ओंकार’ का उच्चारण किया, जिससे संपूर्ण वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से ओत-प्रोत हो उठा।
योग और प्रकृति वैश्विक मंच पर भारत की अमूल्य धरोहर











योग, जो भारत की सनातन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है, आज वैश्विक मंच पर स्वास्थ्य, मानसिक शांति और आध्यात्मिक विकास के लिए अनिवार्य साधन बन चुका है। अमरकंटक नर्मदा महोत्सव में योग के प्रति जो समर्पण और एकाग्रता देखी गई, वह इस बात का प्रमाण है कि भारत ने विश्व को जो आध्यात्मिक धरोहर दी है, उसकी प्रासंगिकता समय के साथ और भी गहरी होती जा रही है।
योग न केवल शारीरिक व्यायाम है, बल्कि यह मानसिक और आत्मिक शुद्धि का साधन भी है। जब प्रकृति की गोद में, नर्मदा के शांत जलधारों के समक्ष, पहाड़ों की छाँव में और वनों की शीतल छाया में योग का अभ्यास किया जाता है, तो यह साधना और भी प्रभावशाली हो जाती है। इस आयोजन में भाग ले रहे साधकों ने योग को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाने का संकल्प लिया।
स्वास्थ्य, शांति और संतुलन की ओर एक कदम
अमरकंटक नर्मदा महोत्सव केवल एक सांस्कृतिक उत्सव नहीं था, बल्कि यह स्वास्थ्य, शांति और संतुलित जीवनशैली की दिशा में एक सार्थक प्रयास भी था। आज के तनावपूर्ण जीवन में योग और प्रकृति से जुड़ाव हमें मानसिक और शारीरिक रूप से संतुलित रखता है।

कलेक्टर हर्षल पंचोली ने अपने संदेश में कहा,
“योग केवल शरीर को स्वस्थ रखने की क्रिया नहीं, बल्कि यह हमारे मस्तिष्क और आत्मा को भी जागृत करता है। अमरकंटक की दिव्यता में किया गया योग जीवनभर याद रखने योग्य अनुभव है। हम सभी को इसे अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए।”
नर्मदा तट पर अद्भुत ऊर्जा का संचार
इस आयोजन में हजारों योग साधकों ने भाग लिया, जो केवल भारत के विभिन्न राज्यों से ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी आए थे। प्रकृति प्रेमियों के लिए यह महोत्सव किसी तीर्थ यात्रा से कम नहीं था। जब सूरज की पहली किरणें नर्मदा के जल पर पड़ीं और योगियों ने अपनी साधना प्रारंभ की, तो ऐसा लगा मानो प्रकृति उनके साथ ध्यानमग्न हो गई हो।
नर्मदा महोत्सव का यह योगाभ्यास साक्षी बना उस दिव्य ऊर्जा का, जो नर्मदा के प्रवाह, अमरकंटक की शांति और योग साधकों के समर्पण में समाहित थी। जैसे-जैसे सूर्य ऊँचाई पर बढ़ता गया, वैसे-वैसे साधकों के भीतर भी आत्मिक ऊर्जा का संचार होता गया।





अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमरकंटक योग महोत्सव की पहचान
इस कार्यक्रम का उद्देश्य केवल एक दिन का योग शिविर नहीं है बल्कि यह एक वैश्विक संदेश है कि योग और प्रकृति के संगम से संपूर्ण मानवता लाभान्वित हो सकती है। अमरकंटक जैसे आध्यात्मिक स्थलों पर योग साधना का विशेष महत्व है, और यही कारण है कि इसे अंतरराष्ट्रीय योग स्थलों की सूची में शामिल करने का प्रस्ताव रखा जाय।
इस महोत्सव ने यह सिद्ध कर दिया कि यदि हम प्रकृति की शरण में जाएँ और योग को अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाएँ, तो न केवल हमारा स्वास्थ्य उत्तम रहेगा, बल्कि हमारा मानसिक और आत्मिक संतुलन भी स्थापित रहेगा।














समापन प्रकृति के सान्निध्य में निरोग जीवन की ओर
अमरकंटक की धरा में, नर्मदा के शीतल जल के समीप, मंत्रोच्चारण के मधुर स्वर में, और उगते सूरज की दिव्य आभा के साथ योग का यह महासंगम न केवल इस महोत्सव के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज होगा, बल्कि हर उस साधक के मन में भी हमेशा जीवित रहेगा, जिसने इस अद्वितीय अनुभव को आत्मसात किया।
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