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दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 क्या बीजेपी ‘आप’ से छीन लेगी सत्ता?

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 क्या बीजेपी ‘आप’ से छीन लेगी सत्ता?


दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी (आप) ने 2013 में अपनी स्थापना के बाद से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पार्टी ने 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में भारी बहुमत से जीत हासिल की, जिससे उसकी पकड़ मजबूत हुई। हालांकि, 2025 के आगामी चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की बढ़ती सक्रियता और प्रचार अभियानों के चलते यह सवाल उठ रहा है कि क्या बीजेपी इस बार ‘आप’ से सत्ता छीनने में सफल होगी।दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के लिए मतदान 5 फरवरी को निर्धारित है, और परिणाम 8 फरवरी को घोषित किए जाएंगे। मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी (AAP), भारतीय जनता पार्टी (BJP), और कांग्रेस के बीच है।चुनाव प्रचार के दौरान, BJP ने AAP के खिलाफ आक्रामक अभियान चलाया है आके पुरम की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने AAP पर तीखा हमला किया।महिला और मुस्लिम मतदाताओं का रुख इस चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।चुनाव परिणाम 8 फरवरी को घोषित किए जाएंगे, जिसके बाद ही स्पष्ट होगा कि कौन सी पार्टी सत्ता में आएगी।चुनावी समीकरण और संभावनाएं
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, दिल्ली के मतदाताओं के बीच ‘आप’ की लोकप्रियता उसकी शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं में किए गए कार्यों के कारण बनी हुई है। वहीं, बीजेपी अपने राष्ट्रीय नेतृत्व और केंद्र सरकार की नीतियों के आधार पर मतदाताओं को आकर्षित करने का प्रयास कर रही है। चुनाव परिणाम कई कारकों पर निर्भर करेंगे, जिनमें मतदाताओं की वर्तमान सरकार के प्रति संतुष्टि, विपक्ष की रणनीति, और स्थानीय मुद्दे शामिल हैं।

आप’ की संभावित हार के निहितार्थ
यदि इस चुनाव में ‘आप’ सत्ता से बाहर हो जाती है, तो यह पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण झटका होगा। हालांकि, यह कहना कि इससे ‘आप’ विलुप्त हो जाएगी, अतिशयोक्ति होगी। भारतीय राजनीति में कई दल चुनावी हार के बाद भी पुनर्गठन और रणनीति में बदलाव के माध्यम से वापसी करने में सफल रहे हैं।
विलुप्त हो चुके भारतीय राजनीतिक दल एक ऐतिहासिक दृष्टि
भारतीय राजनीति में कई ऐसे दल रहे हैं जो समय के साथ विलुप्त हो गए या उनकी प्रासंगिकता कम हो गई। इनमें से कुछ प्रमुख दल और उनके नेता जिन्हें समय के प्रवाह ने अपने साथ प्रवाहित कर ले गया ।
1. स्वतंत्र पार्टी (1959-1974)
संस्थापक सी. राजगोपालाचारी
1959 में कांग्रेस के भीतर समाजवादी नीतियों के विरोध में स्थापित, स्वतंत्र पार्टी ने 1960 के दशक में प्रमुख विपक्षी दल के रूप में भूमिका निभाई। हालांकि, 1974 तक पार्टी की प्रासंगिकता कम हो गई और यह अंततः विलुप्त हो गई।
2. भारतीय क्रांति दल (1967-1977)
संस्थापक चौधरी चरण सिंह
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के वर्चस्व को चुनौती देने के लिए स्थापित, इस दल ने राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाद में, यह अन्य दलों के साथ विलय होकर जनता पार्टी का हिस्सा बन गया।
3. जनता पार्टी (1977-1980)
प्रमुख नेता मोरारजी देसाई, जयप्रकाश नारायण
1977 में आपातकाल के विरोध में कई दलों के विलय से बनी जनता पार्टी ने केंद्र में सरकार बनाई। आंतरिक कलह और विभाजन के कारण 1980 में यह कमजोर हो गई और इसके घटक दल अलग हो गए।
4. समता पार्टी (1994-2003)
संस्थापक जॉर्ज फर्नांडीस, नीतीश कुमार
1994 में जनता दल से अलग होकर बनी इस पार्टी ने बिहार की राजनीति में प्रभाव डाला। 2003 में, यह जनता दल (यूनाइटेड) में विलय हो गई।
5. लोकदल (1974-1988)
संस्थापक चौधरी चरण सिंह
किसान हितों को प्रमुखता देने वाली इस पार्टी ने उत्तर भारत में प्रभाव स्थापित किया। बाद में, यह जनता दल में विलय हो गई।
6. अखिल भारतीय फारवर्ड ब्लॉक (1939-1947)
संस्थापक सुभाष चंद्र बोस
कांग्रेस के भीतर असंतोष के चलते बनी इस पार्टी का उद्देश्य था भारत की पूर्ण स्वतंत्रता। स्वतंत्रता के बाद, इसकी प्रासंगिकता कम हो गई।
7. हिन्दू महासभा (1915-1948)
प्रमुख नेता विनायक दामोदर सावरकर हिंदू हितों की रक्षा के लिए बनी इस पार्टी का स्वतंत्रता पूर्व महत्वपूर्ण प्रभाव था, लेकिन स्वतंत्रता के बाद इसकी भूमिका सीमित हो गई।
8. प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (1952-1972)
प्रमुख नेता जयप्रकाश नारायण समाजवादी विचारधारा पर आधारित इस पार्टी ने 1950 के दशक में प्रभाव डाला, लेकिन बाद में अन्य दलों में विलय हो गई।
9. कांग्रेस (ओ) (1969-1977)
प्रमुख नेता कामराज, मोरारजी देसाई
कांग्रेस के विभाजन के बाद बनी इस पार्टी का उद्देश्य इंदिरा गांधी की नीतियों का विरोध करना था। 1977 में यह जनता पार्टी में विलय हो गई।
10. राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (1989-1991)
संस्थापक हेमवती नंदन बहुगुणा कांग्रेस से अलग होकर बनी इस पार्टी का उत्तर प्रदेश में प्रभाव था, लेकिन 1991 के बाद इसकी प्रासंगिकता कम हो गई।
दक्षिण और पूर्वी भारत की राजनीति में समय-समय पर कई दल उभरे और फिर विलुप्त हो गए या अन्य दलों में विलय हो गए। इनमें से कुछ प्रमुख दल और उनके नेताओं की स्थिति
दक्षिण भारत द्रविड़ कड़गम (DK)
संस्थापक ई. वी. रामास्वामी ‘पेरियार’
द्रविड़ कड़गम की स्थापना 1944 में पेरियार द्वारा की गई थी। यह दल द्रविड़ पहचान और आत्मसम्मान आंदोलन का प्रतिनिधित्व करता था। बाद में, इसके नेताओं के बीच मतभेदों के कारण, 1949 में सी. एन. अन्नादुरई ने इससे अलग होकर द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) की स्थापना की, जिससे DK की राजनीतिक प्रासंगिकता कम हो गई।
अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (ADMK)
संस्थापक एम. जी. रामचंद्रन (MGR)1972 में DMK से अलग होकर MGR ने ADMK की स्थापना की। उनके निधन के बाद, पार्टी में विभाजन हुआ और जयललिता के नेतृत्व में AIADMK (अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) का गठन हुआ। मूल ADMK धीरे-धीरे विलुप्त हो गई।
तेलुगु देशम पार्टी (एनटीआर गुट)संस्थापक एन. टी. रामाराव (NTR)
तेलुगु देशम पार्टी (TDP) की स्थापना 1982 में NTR ने की थी। उनके निधन के बाद, पार्टी में विभाजन हुआ और उनके बेटे एन. हरिकृष्णा ने एक अलग गुट बनाया, जो बाद में मुख्य TDP में विलय हो गया।
गणतंत्र परिषद (RC)संस्थापक बिनोय घोष 1950 के दशक में पश्चिम बंगाल में सक्रिय यह दल समाजवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता था। बाद में, इसके कई नेता भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) में शामिल हो गए, जिससे RC की प्रासंगिकता समाप्त हो गई।
उत्कल कांग्रेस संस्थापक बीजू पटनायक
1969 में ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक ने कांग्रेस से अलग होकर उत्कल कांग्रेस की स्थापना की। बाद में, यह दल जनता पार्टी में विलय हो गया।
संस्थापक जयपाल सिंह मुंडा झारखंड पार्टी
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस) से समय-समय पर कई नेताओं ने असहमति या वैचारिक मतभेदों के कारण अलग होकर नए राजनीतिक दलों की स्थापना की है। इनमें से कुछ प्रमुख विभाजन और उनके संस्थापाक स्वतंत्र पार्टी (1959)
संस्थापक सी. राजगोपालाचारी कांग्रेस की समाजवादी नीतियों से असहमति के कारण, सी. राजगोपालाचारी ने 1959 में स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की। यह पार्टी व्यक्तिगत स्वतंत्रता, बाजार अर्थव्यवस्था, और सरकार के न्यूनतम हस्तक्षेप की वकालत करती थी। भारतीय क्रांति दल (1967) संस्थापक चौधरी चरण सिंह
कांग्रेस के भीतर बढ़ते असंतोष के चलते, चौधरी चरण सिंह ने 1967 में भारतीय क्रांति दल की स्थापना की। यह पार्टी मुख्यतः किसानों के अधिकारों और ग्रामीण विकास पर केंद्रित थी।
कांग्रेस (ओ) (1969) प्रमुख नेता मोरारजी देसाई
1969 में कांग्रेस का विभाजन हुआ, जिसमें मोरारजी देसाई के नेतृत्व में एक धड़ा कांग्रेस (ओ) (ओर्गेनाइजेशन) के नाम से जाना गया। यह विभाजन मुख्यतः इंदिरा गांधी की नीतियों के विरोध के कारण हुआ था।
तेलुगु देशम पार्टी (1982)
संस्थापक एन. टी. रामाराव (एनटीआर)
आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के वर्चस्व को चुनौती देने के लिए, फिल्म अभिनेता एनटीआर ने 1982 में तेलुगु देशम पार्टी की स्थापना की। पार्टी का उद्देश्य तेलुगु लोगों के आत्मसम्मान और राज्य के विकास को बढ़ावा देना था।
त्रिणमूल कांग्रेस (1998) संस्थापक ममता बनर्जी
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के साथ मतभेदों के कारण, ममता बनर्जी ने 1998 में अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की। पार्टी ने राज्य में वामपंथी दलों के खिलाफ संघर्ष किया और बाद में सत्ता में आई।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (1999)
संस्थापक शरद पवार, पी. ए. संगमा, तारिक अनवर
सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर असहमति के चलते, इन नेताओं ने 1999 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की स्थापना की। पार्टी ने महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में महत्वपूर्ण प्रभाव स्थापित किया।
वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (2011)
संस्थापक वाई. एस. जगनमोहन रेड्डी आंध्र प्रदेश में कांग्रेस नेतृत्व से मतभेदों के कारण, जगनमोहन रेड्डी ने 2011 में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी की स्थापना की। पार्टी ने राज्य में तेजी से लोकप्रियता हासिल की और सत्ता में आई।आदिवासी अधिकारों के लिए संघर्षरत इस पार्टी ने झारखंड राज्य की मांग को प्रमुखता दी। 1970 के दशक में, इसके कई नेता कांग्रेस में शामिल हो गए, जिससे पार्टी की स्वतंत्र पहचान कमजोर हो गई।
इन दलों के विलुप्त होने के पीछे आंतरिक कलह, नेतृत्व की कमी, और बड़े दलों में विलय जैसे कारण प्रमुख रहे हैं। भारतीय राजनीति में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जहां क्षेत्रीय दल उभरे, प्रभावी रहे, और फिर समय के साथ विलुप्त हो गए या अन्य दलों में समाहित हो गए।

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