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कुंभ नगरी प्रयागराज सूर्यास्त में नहाई तीर्थ नगरी का अलौकिक सौंदर्य

कुंभ नगरी प्रयागराज सूर्यास्त में नहाई तीर्थ नगरी का अलौकिक सौंदर्य

कुंभ नगरी प्रयागराज धर्म, आस्था और प्रकृति का अद्भुत संगम
प्रयागराज की कुंभ नगरी में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर आयोजित महाकुंभ मेला, सनातन संस्कृति, धर्म और आस्था का महासमागम है। यह विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जो भारतीय परंपरा और सनातनी जीवन की गहराई को दर्शाता है। हर बारह वर्षों में आयोजित होने वाला कुंभ मेला न केवल तीर्थयात्रियों और साधु-संतों का केंद्र होता है, बल्कि यह प्रकृति के सौंदर्य, आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है।
गंगा की निर्मल धारा, यमुना की कलकल बहती लहरें और सरस्वती की अदृश्य उपस्थिति इस कुंभ मेले को अलौकिक बनाती हैं। यहाँ डूबते सूर्य की किरणों के साथ तटों पर जलते दीयों की रोशनी और शंख-ध्वनि का अद्वितीय समागम किसी भी व्यक्ति को आत्मिक शांति और परमानंद का अनुभव कराता है।
प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, भारत के सबसे प्राचीन और पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। यह पवित्र नगरी गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर स्थित है। प्रयाग का अर्थ है “यज्ञों का स्थान,” और यह युगों से सनातन धर्म का केंद्र रहा है। यहाँ की भूमि वेदों और पुराणों में वर्णित है, जहाँ देवताओं और ऋषि-मुनियों ने तपस्या की है।
धर्म और आस्था का संगम
कुंभ मेला, धर्म और आस्था का जीवंत प्रतीक है। इसे देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन की कथा से जोड़ा जाता है, जहाँ अमृत कलश से अमृत की बूंदें चार स्थानों पर गिरीं – हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज। प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन इस पौराणिक घटना की स्मृति में होता है।
कुंभ मेले में आने वाले साधु-संत, नागा साधु और आम श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाकर अपने पापों से मुक्ति की कामना करते हैं। यहाँ के अखाड़ों में संतों के प्रवचन और यज्ञ का आयोजन होता है, जो धर्म और ज्ञान की ज्योति को प्रज्वलित करते हैं।
प्रकृति का अद्भुत सौंदर्य
गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर बसा प्रयागराज प्राकृतिक सौंदर्य का अद्वितीय उदाहरण है। डूबते सूर्य की किरणें जब गंगा की लहरों पर पड़ती हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है मानो सोने की चादर बिछी हो। यमुना की शांत धारा और सरस्वती की अदृश्य शक्ति इस स्थान को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देती हैं।
संध्या समय गंगा आरती का दृश्य मन मोह लेता है। गंगा किनारे दीपों की अविरल पंक्ति, मंदिरों से आती घंटियों की आवाज़ और मंत्रोच्चार एक अलौकिक वातावरण का निर्माण करते हैं। चारों ओर हरियाली, पक्षियों की चहचहाहट और निर्मल जल की शीतलता पर्यटकों और श्रद्धालुओं को प्रकृति की गोद में आत्मीयता का अनुभव कराती है।
गंगा, यमुना और सरस्वती का महत्व
गंगा नदी को मोक्षदायिनी माना जाता है। यमुना प्रेम और भक्ति की प्रतीक है, जबकि सरस्वती ज्ञान और विद्या की देवी के रूप में पूजनीय है। संगम स्थल पर इन तीनों नदियों का मिलन, धर्म और प्रकृति का आदर्श समन्वय दर्शाता है।
गंगा  गंगा के जल को पवित्र और पापनाशक माना जाता है। सनातन धर्म में इसे मां का स्थान दिया गया है।
यमुना यमुना का जल भक्तों को प्रेम और समर्पण की भावना प्रदान करता है।
सरस्वती सरस्वती का अदृश्य प्रवाह आध्यात्मिक ज्ञान और मानसिक शांति का प्रतीक है।
अद्भुत सूर्यास्त का अलौकिक दृश्य
प्रयागराज में कुंभ मेले के दौरान सूर्यास्त का दृश्य अद्वितीय होता है। डूबता हुआ सूर्य जब अपने सुनहरे प्रकाश से संगम के जल को रंग देता है, तो वह क्षण देखने योग्य होता है। तटों पर जलते दीयों की रौशनी और भक्तों की श्रद्धा से भरे गीत-भजन माहौल को और भी दिव्य बना देते हैं।
सूर्य की डूबती किरणों के साथ-साथ साधु-संतों की ध्यान-साधना और आरती की गूंज से ऐसा लगता है मानो स्वर्ग पृथ्वी पर उतर आया हो। यह दृश्य हर व्यक्ति के मन में श्रद्धा, भक्ति और सौंदर्य का अद्भुत मिश्रण पैदा करता है।
साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर
प्रयागराज न केवल धार्मिक और प्राकृतिक रूप से समृद्ध है, बल्कि यह साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर का केंद्र भी है। महाकवि तुलसीदास, सूरदास और अकबर के नवरत्नों में से एक अब्दुल रहीम खान-ए-खाना का संबंध इस नगर से है।
कुंभ नगरी प्रयागराज, धर्म, आस्था और प्रकृति का संगम है। यहाँ के कुंभ मेले में डूबते सूर्य और गंगा की लहरों का दृश्य न केवल आत्मा को तृप्त करता है, बल्कि जीवन के गहरे अर्थों को समझने का अवसर भी प्रदान करता है। यह स्थान सनातन संस्कृति की जड़ों को मजबूती देता है और हमें प्रकृति, धर्म और अध्यात्म के महत्व की शिक्षा देता है।

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