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मकर संक्रांति भारत से लेकर नेपाल, थाईलैंड, म्यांमार, श्रीलंका और पाकिस्तान तक मनाया जाने वाला सनातन संस्कृति  पर्व

मकर संक्रांति भारत से लेकर नेपाल, थाईलैंड, म्यांमार, श्रीलंका और पाकिस्तान तक मनाया जाने वाला सनातन संस्कृति  पर्व

मकर संक्रांति सनातन संस्कृति का पर्व, वैज्ञानिक, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक महत्व ।
मकर संक्रांति हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है, जिसे कृषि और प्रकृति से जुड़ी परंपराओं के साथ मनाया जाता है। इस त्योहार का संबंध सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने से है। यह पर्व न केवल भारत में बल्कि कई अन्य देशों में भी अलग-अलग नामों और तरीकों से मनाया जाता है। इसकी खासियत है तिल के लड्डू, दही-चूड़ा, खिचड़ी और अन्य पारंपरिक व्यंजन, जो इसके स्वास्थ्य और आध्यात्मिक महत्व को और बढ़ाते हैं।
मकर संक्रांति का महत्व और इतिहास
मकर संक्रांति का मुख्य आधार खगोलीय घटना है। सूर्य हर वर्ष 14 जनवरी (या 15 जनवरी) को मकर राशि में प्रवेश करता है, जिससे दिन लंबे और रातें छोटी होने लगती हैं। इसे उत्तरायण के आरंभ का संकेत माना जाता है। उत्तरायण को धार्मिक ग्रंथों में देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा गया है।
यह पर्व वैदिक काल से मनाया जा रहा है। पुराणों में इस पर्व का उल्लेख मिलता है, जिसमें सूर्य देव को समर्पित अनुष्ठानों का वर्णन किया गया है। महाभारत काल में भी इसका महत्व था। भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने तक अपने प्राण त्यागने की प्रतीक्षा की थी।
मकर संक्रांति भारत के अलावा अन्य देशों में
मकर संक्रांति केवल भारत में ही नहीं, बल्कि अन्य देशों में भी मनाई जाती है।
नेपाल इसे ‘माघे संक्रांति’ कहते हैं। लोग इस दिन तिल, गुड़ और चावल से बने व्यंजन खाते हैं।
थाईलैंड यहां इसे ‘सोंक्रान’ कहते हैं। यह जल महोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
म्यांमारइसे ‘थिंगयान’ के नाम से मनाते हैं।
श्रीलंका इसे ‘पोंगल’ के रूप में दक्षिण भारतीय तमिल समुदाय में मनाया जाता है।
पाकिस्तान यहां इसे ‘लोहड़ी’ के रूप में मनाया जाता है।
मकर संक्रांति के व्यंजन और उनके महत्व
खिचड़ी तिल, चावल और दाल का मेल है, जो संतुलित आहार का प्रतीक है। यह पचने में आसान और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। इसे तामसिक भोजन से परे, सात्विक भोजन के रूप में देखा जाता है।
तिल और गुड़ सर्दियों में शरीर को गर्म रखते हैं और ऊर्जा प्रदान करते हैं। आयुर्वेद में तिल को शक्ति और स्वास्थ्य के लिए उत्तम बताया गया है।
चूड़ा (पोहा) और दही को सर्दियों में पाचन के लिए लाभकारी माना गया है। दही में मौजूद प्रोबायोटिक्स आंतों को स्वस्थ रखते है ।
गुड़ सर्दियों में आवश्यक ऊर्जा देता है और खून साफ करने में मदद करता है।
वैज्ञानिक और स्वास्थ्य लाभ
मकर संक्रांति का समय सर्दियों के अंत और वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है। इस दौरान शरीर को अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता होती है। तिल और गुड़ से बनी मिठाइयों का सेवन शरीर को गर्म रखने और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करता है। इसके अलावा, उत्तरायण के दौरान सूर्य से मिलने वाली ऊर्जा से शरीर को विटामिन डी प्राप्त होता है, जो हड्डियों के लिए लाभकारी है।
आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व
सूर्य उपासना
मकर संक्रांति सूर्य देव को समर्पित पर्व है। इस दिन सूर्य को अर्घ्य देकर जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि की कामना की जाती है।
दान और पुण्य
इस दिन तिल, गुड़, कपड़े, और अनाज का दान करने का विशेष महत्व है। इसे कर्म योग का प्रतीक माना जाता है।
गंगा स्नान
गंगा और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने से पापों का क्षय और आत्मा की शुद्धि होती है।
धार्मिक ग्रंथों में मकर संक्रांति
भगवद गीता श्रीकृष्ण ने गीता में उत्तरायण को शुभ समय बताया है।
महाभारत भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु के लिए उत्तरायण का इंतजार किया, जो इसे विशेष बनाता है।
पुराण सूर्य को समर्पित कई कथा-प्रसंगों में मकर संक्रांति का उल्लेख मिलता है।
मकर संक्रांति भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की महानता का प्रतीक है। यह पर्व न केवल कृषि प्रधान समाज की परंपराओं को बल देता है, बल्कि मानवीय मूल्य, दान-पुण्य और प्रकृति के साथ सामंजस्य का संदेश भी देता है।
मकर संक्रांति का महत्व केवल धार्मिक या आध्यात्मिक नहीं है, बल्कि इसका वैज्ञानिक और स्वास्थ्य लाभ भी व्यापक है। यह पर्व जीवन के हर पहलू—शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक—को समृद्ध करता है। इसके व्यंजन, परंपराएं, और दान-पुण्य की प्रथा इसे एक अद्वितीय और विश्व स्तरीय पर्व बनाती हैं। सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति में इसे उत्सव और आस्था के रूप में मनाना हमारे समाज की गहरी जड़ों और परंपराओं का प्रतीक है।

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