तुम्हारी आंखों पर हर दिन एक नई ऐनक चढ़ जाती है।
कभी समाज की, कभी पूर्वाग्रहों की,
कभी दूसरों के कहे-सुने शब्दों की।
उस ऐनक के पीछे से तुम मुझे देखते हो—
लेकिन क्या सच में देखते हो?
क्या तुमने कभी बिना उस ऐनक के मेरी ओर देखा है?
बिना किसी धारणा के,
बिना किसी पूर्वाग्रह के,
सिर्फ मुझे,
जैसा मैं हूं, वैसे?
तुम्हारी ऐनक तुम्हें मेरे ऐब दिखाती है,
मेरी गलतियां,
मेरी कमजोरियां।
लेकिन क्या तुम मेरे भीतर छिपी
संघर्षों की कहानियां,
आशाओं की रोशनी,
और उन सपनों को देख पाते हो,
जो मेरे भीतर अब भी जिंदा हैं?
तुम्हारी धारणा मुझे सीमाओं में बांधती है।
तुम्हारा नजरिया मुझे एक दायरे में कैद कर देता है।
लेकिन मैं इससे कहीं बड़ा हूं,
मेरे भीतर एक पूरी दुनिया है,
जिसे तुम नहीं देख सकते
जब तक वह ऐनक तुम्हारी आंखों पर है।
क्या तुम कभी उस ऐनक को उतारोगे?
क्या तुम मुझे मेरे अस्तित्व के लिए देखोगे,
न कि अपनी कल्पनाओं के लिए?
हर व्यक्ति की कहानी उसकी आंखों में छिपी होती है।
मेरी आंखों में झांक कर देखो—
क्या तुम मेरी सच्चाई से परिचित हो सकते हो
या फिर उस ऐनक के पीछे से
सिर्फ एक धुंधली तस्वीर ही देखोगे?
समय आ गया है,
कि तुम उस ऐनक को उतार फेंको।
देखो मुझे, जैसा मैं हूं।
समझो मुझे, मेरी वास्तविकता में।
क्योंकि जब तक वह ऐनक है,
तब तक तुम केवल एक परछाई देखोगे,
और मैं…
सिर्फ तुम्हारे पूर्वाग्रहों का एक प्रतिबिंब बनकर रह जाऊंगा।
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Kailash Pandey
Anuppur (M.P.)
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