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अमित शाह पर विपक्ष का हंगामा क्या सच में आंबेडकर का अपमान हुआ या राजनीतिक  नौटंकी

अमित शाह पर विपक्ष का हंगामा क्या सच में आंबेडकर का अपमान हुआ या राजनीतिक  नौटंकी

संसद के शीतकालीन सत्र में राज्यसभा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने डॉ. भीमराव आंबेडकर के नाम के संदर्भ में एक टिप्पणी की, जिस पर विपक्ष ने भारी हंगामा किया। विपक्ष का आरोप है कि अमित शाह ने बाबा साहब आंबेडकर का अपमान किया है और उन्हें माफी मांगनी चाहिए।
शाह का बयान
शाह ने अपने भाषण में कहा अभी एक फैशन हो गया है: आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर… इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता।
शाह ने यह भी जोड़ा अच्छी बात है, हमें तो आनंद है कि आंबेडकर का नाम लेते हैं। आंबेडकर जी का नाम 100 बार लो, लेकिन आंबेडकर जी के प्रति आपका भाव क्या है, यह बताना चाहता हूं।
उन्होंने ऐतिहासिक संदर्भ में बताया कि डॉ. आंबेडकर ने कांग्रेस की सरकार से इस्तीफा क्यों दिया था।
विपक्ष का हंगामा
विपक्ष का कहना है कि अमित शाह ने आंबेडकर का नाम भगवान से जोड़कर उनकी महानता का अपमान किया। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने अमित शाह से माफी की मांग की।
मोदी का बचाव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर सात पोस्ट कर अमित शाह का बचाव किया। उन्होंने लिखा कि कांग्रेस ने डॉ. आंबेडकर को दो बार चुनाव हरवाया।
डॉ. आंबेडकर को भारतीय राजनीति में पर्याप्त स्थान नहीं दिया।
कांग्रेस केवल नाम लेती है, लेकिन आंबेडकर के विचारों को नहीं अपनाती ।
विपक्ष ने अमित शाह के बयान का विरोध कर अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय के वोटबैंक को साधने की कोशिश की है। बाबा साहब का नाम भारतीय राजनीति में एक भावनात्मक मुद्दा है
शाह का बयान एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में था, जिसमें उन्होंने कांग्रेस की विफलताओं को उजागर करने का प्रयास किया। हालांकि, उनके “भगवान” वाले संदर्भ ने विवाद को जन्म दिया।
मोदी सरकार की रणनीति
मोदी सरकार ने डॉ. आंबेडकर के योगदान को हमेशा जोर-शोर से प्रस्तुत किया है। शाह के बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किए जाने पर प्रधानमंत्री ने आक्रामक तरीके से बचाव किया, ताकि सरकार की आंबेडकर समर्थक छवि को नुकसान न पहुंचे।
ऐसे विवाद पहले भी हुए हैं
भारत के संसदीय इतिहास में ऐसी घटनाएं पहले भी हुई हैं
नेहरू-डॉ. आंबेडकर विवाद (1951)
डॉ. आंबेडकर ने कांग्रेस सरकार की नीतियों से असंतुष्ट होकर इस्तीफा दिया था। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि दलितों और वंचित वर्गों के लिए कांग्रेस का रवैया उदासीन है।
इंदिरा गांधी के समय में विपक्ष ने उनके बयानों को लेकर कई बार हंगामा किया, विशेष रूप से आरक्षण के मुद्दे पर।
2015 असहिष्णुता पर बयानबाजी
संसद में असहिष्णुता के मुद्दे पर विपक्ष ने सुषमा स्वराज और स्मृति ईरानी के बयानों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया।
वोटबैंक की राजनीति
दलित और पिछड़ा वर्ग भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। विपक्ष ने शाह के बयान को इसी संदर्भ में भुनाने की कोशिश की।
आगामी लोकसभा चुनावों से पहले विपक्ष दलित समाज को अपने पक्ष में लाने के लिए इस मुद्दे को बढ़ा रहा है।
यह घटना भारतीय राजनीति में विचारधारा और वोटबैंक की राजनीति का स्पष्ट उदाहरण है।

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