
ढाका, बांग्लादेश
पिछले कुछ वर्षों में, बांग्लादेश में हिंदू महिलाओं और बच्चों की दुर्दशा एक बढ़ता हुआ मानवीय संकट बन गई है, जो धार्मिक असहिष्णुता और सामाजिक अस्थिरता से उत्पन्न हुआ है। हिंसक हमलों से लेकर यौन हिंसा, धर्म परिवर्तन और लक्षित अपहरण जैसी घटनाओं तक, इस समुदाय पर बढ़ते उत्पीड़न का असर अब असहनीय होता जा रहा है। बांग्लादेश के धर्मनिरपेक्ष होने के बावजूद, हिंदू, विशेषकर महिलाएं और बच्चे, हिंसा के शिकार हो रहे हैं, जो उनके अस्तित्व के लिए खतरा बन चुका है।
महिलाएं खतरे में यौन हिंसा और सामाजिक बहिष्कार
हिंदू महिलाओं को खासतौर पर सांप्रदायिक दंगे के दौरान निशाना बनाया जाता है, जिसमें सामूहिक बलात्कार, अपहरण और मजबूर विवाह की घटनाएं सामने आती हैं। ये महिलाएं, जो धार्मिक हिंसा का शिकार होती हैं, शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के आघातों का सामना करती हैं। 2024 के दुर्गा पूजा समारोह के दौरान, हिंदू महिलाओं के खिलाफ यौन हमले के कई मामले सामने आए, जिनमें आरोपियों ने धार्मिक नफरत का इस्तेमाल करते हुए ये क्रूर कृत्य किए। इन महिलाओं को धर्म परिवर्तन करने के लिए दबाव डाला जाता है, और अगर वे विरोध करती हैं, तो उन्हें सामाजिक बहिष्कार और धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।
इसके अतिरिक्त, ‘लव जिहाद’ जैसे प्रचार अभियानों ने महिलाओं के खिलाफ दुष्प्रचार को बढ़ावा दिया है। इस तरह के आरोप न केवल उनके जीवन को विकृत करते हैं, बल्कि उन्हें और अधिक असुरक्षित भी बना देते हैं, जिससे उनके अधिकारों और स्वतंत्रताओं का धीरे-धीरे हनन हो रहा है।
बच्चे भी संकट में
बच्चों की स्थिति भी बेहद खराब है। उन्हें अक्सर बाल श्रम में लगाया जाता है, जो उनकी शिक्षा और बचपन से वंचित करता है। चिंताजनक बात यह है कि कुछ बच्चों को अपहरण करके उन्हें धार्मिक रूप से मजबूर किया जाता है, या उनका यौन शोषण किया जाता है। ये बच्चे मानसिक आघात से गुजर रहे हैं, क्योंकि वे घर में हिंसा और राज्य से सुरक्षा की कमी के बीच फंसे हुए होते हैं।
भारत की भूमिका और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
अंतरराष्ट्रीय समुदाय को बांग्लादेश में बढ़ती धार्मिक उग्रता और विशेष रूप से हिंदू महिलाओं और बच्चों की असुरक्षा की स्थिति पर ध्यान देना चाहिए। भारत, जो हमेशा से क्षेत्रीय अल्पसंख्यकों का रक्षक रहा है, को इस बढ़ते शरणार्थी संकट के बीच हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है। हिंसा से पीड़ितों को शरण देना भारत का नैतिक दायित्व है, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि भारत बांग्लादेश सरकार पर दबाव बनाए ताकि वह अपने धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों का पालन करते हुए अपने सभी नागरिकों, खासकर धार्मिक अल्पसंख्यकों, की सुरक्षा सुनिश्चित करे।
धार्मिक और अंतरराष्ट्रीय संगठनों को एकजुट होकर बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के संरक्षण के लिए आवाज उठानी चाहिए, विशेष रूप से उन महिलाओं और बच्चों के लिए जो सबसे अधिक पीड़ित हो रहे हैं। मानवाधिकार निगरानी निकायों को यौन हिंसा और मानव तस्करी को रोकने के लिए कड़े कानून बनाने के लिए दबाव डालना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि समाज के सबसे कमजोर वर्गों को शिक्षा और सुरक्षा मिले।संकट पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। जैसे-जैसे बांग्लादेश में असहिष्णुता बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे दुनिया को इसके सबसे कमजोर नागरिकों की पीड़ा पर आंखें नहीं मूंदनी चाहिए।




प्रतीकात्मक चित्र



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