शहडोल में जनजातीय गौरव दिवस वरिष्ठ आदिवासी नेताओं की उपेक्षा से संभागीय राजनीति में बदलाव के संकेत

शहडोल में जनजातीय गौरव दिवस वरिष्ठ आदिवासी नेताओं की उपेक्षा से संभागीय राजनीति में बदलाव के संकेत

भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर शहडोल जिले में जनजातीय गौरव दिवस कार्यक्रम में    महामहिम राज्यपाल मंगूभाई पटेल, जी मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला,  कुंवर विजय साह सांसद हिमाद्रि सिंह, लघु एवं कुटीर उद्योग राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार दिलीप जायसवाल, और मध्यप्रदेश कोल विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष, कैबिनेट मंत्री दर्जा प्राप्त राम लाल रौतेल सहित कई प्रमुख नेताओं के साथ हजारों आदिवासी समाज के लोग उपस्थित रहेंगे। लेकिन इसी कार्यक्रम से आदिवासी समुदाय के कुछ वरिष्ठ नेताओं को दूर रखा गया है, जो क्षेत्र की राजनीतिक दिशा में बदलाव की ओर संकेत कर रहा है।

कार्यक्रम में वरिष्ठ आदिवासी नेताओं को आमंत्रण न दिए जाने से उनकी नाराजगी बढ़ी है। अनूपपुर जिले के साथ-साथ पूरे संभाग में इस निर्णय का राजनीतिक प्रभाव दिखाई देने लगा है। वरिष्ठ आदिवासी नेताओं का यह हाशिए पर आना, न केवल सत्ता के समीकरण बदल रहा है, बल्कि यह संकेत भी दे रहा है कि बीजेपी नेतृत्व अब नई पीढ़ी और उभरते नेताओं पर अधिक भरोसा कर रहा है  आदिवासी समुदाय की लंबे समय से स्थापित राजनीतिक धारा में एक नया मोड़ आ रहा है, जिसमें युवा और नए नेतृत्व को स्थान दिया जा रहा है। इस निर्णय के पीछे कई संभावित कारण हैं जो आदिवासी राजनीति के मौजूदा और भविष्य के स्वरूप को प्रभावित करेंगे।


आदिवासी राजनीति में नया नेतृत्व आदिवासी समुदाय में युवा और उभरते नेताओं को अधिक मौका देकर भाजपा यह संदेश दे रही है कि अब सत्ता के गलियारों में वही लोग टिक पाएंगे, जो नए विचारों और ऊर्जा के साथ काम करने को तैयार हैं। शहडोल संभाग में इस बदलाव के संकेत पहले से ही दिखाई दे रहे थे, लेकिन जनजातीय गौरव दिवस के इस आयोजन से यह स्पष्ट हो गया है कि पार्टी का रुख किस ओर है।


पुराने नेतृत्व का हाशिए पर जाना लंबे समय से राजनीति में सक्रिय वरिष्ठ आदिवासी नेताओं को दरकिनार करना बीजेपी की एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। इस प्रक्रिया में पुराने नेताओं का अनुभव और जनाधार छूट सकता है, लेकिन पार्टी शायद अब उभरते नेताओं के जरिए नए और युवाओं को आकर्षित करने की योजना बना रही है।


विकास के एजेंडे को प्राथमिकता राज्य में आदिवासी समाज को बेहतर विकास सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए यह बदलाव किया गया हो सकता है। लघु और कुटीर उद्योगों के लिए दिलीप जायसवाल के स्वतंत्र प्रभार में जिम्मेदारी मिलने से संकेत मिलते हैं कि पार्टी अब रोजगार और विकास के मुद्दों पर ध्यान दे रही है।


सामाजिक ताने-बाने में बदलाव इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के लोगों का आना दिखाता है कि समुदाय के लिए यह एक गौरव का अवसर है, जहां उन्हें अपने मुद्दों को खुलकर व्यक्त करने का मौका मिलेगा। इसी के साथ, समुदाय के भीतर एक नई लहर देखी जा रही है, जहां पुराने नेताओं के बजाय नए और उभरते चेहरों पर अधिक भरोसा किया जा रहा है।

राजनीतिक ध्रुवीकरण और भविष्य की रणनीति अनूपपुर जिले और शहडोल संभाग में इस बदलाव का सीधा असर वहां के राजनीतिक ध्रुवीकरण पर पड़ सकता है। बीजेपी द्वारा अपने पुराने नेताओं को दरकिनार करने से पार्टी का एक नया चेहरा सामने आ रहा है, जो आदिवासी समाज की नयी पीढ़ी को ध्यान में रखकर बनाया गया है।

आदिवासी समाज के मुद्दों की पुनर्रचना आदिवासी समाज के पुराने नेता परंपरागत मुद्दों पर ध्यान देते रहे हैं, लेकिन नया नेतृत्व शायद शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ, और अधिकारों को लेकर अधिक जागरूक है। ऐसे में बीजेपी का यह कदम आदिवासी समाज के मुद्दों की नए सिरे से पुनर्रचना की ओर भी इशारा करता है।


संभागीय राजनीति में बदलाव का संकेत जनजातीय गौरव दिवस के इस आयोजन ने अनूपपुर संभाग में राजनीति का एक नया अध्याय खोल दिया है। इस कदम का मुख्य उद्देश्य संभवतः आगामी चुनावों में पार्टी की पकड़ मजबूत करना है, लेकिन इसके साथ-साथ यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या वरिष्ठ आदिवासी नेताओं को हाशिए पर डालने का कदम भविष्य में पार्टी के लिए चुनौती बन सकता है।

कार्यक्रम का सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव भगवान बिरसा मुंडा की जयंती का यह कार्यक्रम एक ऐतिहासिक आयोजन है, जहां आदिवासी समाज को अपनी सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहर का सम्मान करने का अवसर मिलेगा। इसके साथ ही यह कार्यक्रम पार्टी की राजनीतिक और सामाजिक रणनीति का भी प्रतीक है, जो आदिवासी समुदाय में नए नेतृत्व को सशक्त बनाने का प्रयास कर रहा है।



शहडोल जिले में आयोजित जनजातीय गौरव दिवस कार्यक्रम आदिवासी राजनीति में एक बड़ा मोड़ साबित हो सकता है। भाजपा की यह नई रणनीति, जिसमें नए नेताओं को स्थान देना और पुराने नेताओं को धीरे-धीरे हाशिए पर लाना शामिल है, पार्टी के लिए लाभदायक साबित हो सकती है। लेकिन इस रणनीति के सफल होने के लिए पार्टी को उन नाराजगी और असंतोष का भी समाधान करना होगा जो पुराने नेताओं और उनके समर्थकों में पनप सकती है।

अगले चुनावों में यह सबसे ज्यादा दिलचस्प रहेगा कि क्या भाजपा का यह फैसला सही साबित होता है या नहीं, लेकिन फिलहाल संभागीय राजनीति का यह नया अध्याय कई संभावनाओं को जन्म दे रहा है।

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