“बंटोगे तो कटोगे” नारे का राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में उपयोग आज एक नया मोड़ ले चुका है। पहले यह नारा चुनावी मंचों तक सीमित था, लेकिन अब यह विवाह निमंत्रण पत्रों तक जा पहुंचा है। भावनगर में एक परिवार ने इस नारे का उपयोग अपनी विवाह कंकोत्री में किया है, जिससे यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि हिंदू समाज को एकजुट रहना चाहिए।
राजनीतिक “नारों का नया ठिकाना”
राजनीतिक नारों का निजीकरण चुनावी नारे आमतौर पर लोगों को जागरूक करने और एक खास संदेश देने के लिए बनाए जाते हैं। लेकिन अब ये नारे निमंत्रण पत्रों पर भी छपने लगे हैं, जैसे कि राजनीति घर-घर का मसला बन गई हो। यह एक नए तरह का “व्यक्तिगत राजनीतिकरण” है, जिसमें नारा अपनी राजनीतिक पृष्ठभूमि छोड़कर एक पारिवारिक और सामाजिक अवसर पर पहुंच गया है।
लेकिन यहां तो निमंत्रण पत्र एक राजनीतिक घोषणापत्र बनता दिख रहा है। यह एक ऐसा विचित्र दृश्य है, जैसे दूल्हा-दुल्हन का मिलन किसी राजनीतिक रैली में बदल गया हो। शादी की खुशी का संदेश छोड़कर, यहां “बंटोगे तो कटोगे” का भय दर्शाया जा रहा है।
सामाजिक एकता का आह्वान या राजनीतिक संदेश? परिवार का कहना है कि वे हिंदू समाज की एकजुटता के लिए यह नारा उपयोग कर रहे हैं। यह एक विडंबना है कि विवाह जैसी व्यक्तिगत और पारिवारिक बात में राजनीतिक नारे को शामिल किया गया है। क्या समाज को एकजुट करने के लिए अब विवाह निमंत्रण पत्रों की जरूरत है, या फिर यह राजनीति का समाज पर प्रभाव दर्शाने का एक उदाहरण है?
सामाजिक समीकरण और हिंदू एकता का प्रश्न
समाज में डर का संदेश “बंटोगे तो कटोगे” का उपयोग विवाह निमंत्रण पर करना यह बताता है कि समाज में आपसी डर और विभाजन की भावना है। यह नारा कहीं न कहीं यह दर्शाता है कि अगर आपस में फूट पड़ेगी, तो परिणाम बुरे होंगे। निमंत्रण पत्र में ऐसा संदेश देना एक विडंबना ही है, जहां एक ओर मिलन की खुशी है और दूसरी ओर डर का संदेश है।
सांस्कृतिक परंपराओं में राजनीति का प्रवेश भारतीय विवाह परंपरा में “शुभ” और “मंगल” शब्दों का प्रयोग होता है, ताकि परिवारों में आनंद और उत्सव का माहौल बने। लेकिन यहां इस परंपरा को राजनीतिक नारों से बदलने का प्रयास है, जो यह दर्शाता है कि अब सामाजिक और सांस्कृतिक अवसरों में भी राजनीति ने अपनी जगह बना ली है।
हिंदू समाज को एकजुट करने का साधन या विभाजन का डर? परिवार का दावा है कि नारा हिंदू समाज की एकता का प्रतीक है, लेकिन इसके पीछे छुपा संदेश यह भी हो सकता है कि समाज में एकता बनाए रखने के बजाय, यह लोगों को विभाजन के डर के जरिए एकजुट करने की कोशिश है। यह सामाजिक एकता की एक अनोखी परिभाषा बन गई है, जो डर से प्रेरित है, न कि प्रेम और समझ से।
“बंटोगे तो कटोगे” नारा अब एक राजनीतिक मंच से निकलकर एक सामाजिक अवसर का हिस्सा बन गया है। यह घटना दर्शाती है कि कैसे समाज में राजनीति का प्रभाव इतना गहरा हो गया है कि लोग व्यक्तिगत और पारिवारिक अवसरों पर भी राजनीतिक विचारधाराओं का प्रयोग करने लगे हैं।
Leave a Reply