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मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की मौजूदा  नीति पर मुस्लिम समुदाय द्वारा  सवाल  उठाना स्वाभाविक है

मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की मौजूदा  नीति पर मुस्लिम समुदाय द्वारा  सवाल  उठाना स्वाभाविक है

कि मुस्लिम वोटर अपनी राजनीतिक पसंद में क्या बदलाव करेंगे। मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में राजनीतिक परिदृश्य में मुस्लिम समुदाय के वोटर्स के पास  क्या  विकल्प हो सकते हैं।


बीजेपी की ओर जाने की संभावना

बीजेपी की ओर मुस्लिम वोटरों के जाने की संभावना कम होती है, क्योंकि पार्टी का हिंदुत्ववादी रुख और कई विवादास्पद मुद्दों पर पार्टी की स्थिति को देखते हुए, अधिकांश मुस्लिम वोटर्स बीजेपी को अपनी पसंद के रूप में नहीं देखते हैं।  अगर , कुछ जगहों पर बीजेपी स्थानीय मुस्लिम नेताओं को शामिल कर स्थानीय स्तर पर मुद्दों को हल करने का  झुनझुना  पकड़ाती है, तो सीमित संख्या में मुस्लिम वोटर्स का रुझान  बीजेपी की तरफ देखने को मिल सकता है।

क्षेत्रीय दलों की ओर रुझान


मुस्लिम समुदाय के वोटर्स अक्सर उन क्षेत्रीय पार्टियों की ओर रुख करते हैं जो उनके मुद्दों पर अधिक संवेदनशील हैं और उनके अधिकारों का समर्थन करती हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और महाराष्ट्र में एनसीपी जैसी पार्टियाँ उदाहरण हैं, जो मुस्लिम वोटर्स को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। मध्य प्रदेश में भी क्षेत्रीय दलों का प्रभाव बढ़ने की संभावना है, यदि कांग्रेस मुस्लिम समुदाय को अधिक प्रतिनिधित्व नहीं देती है।
आप (आम आदमी पार्टी) या अन्य नई पार्टियों का उभार

आम आदमी पार्टी (आप) जैसे नए दल  मुस्लिम वोटर्स को आकर्षित कर सकते हैं। ‘आप’ का दिल्ली और पंजाब में प्रदर्शन देखकर मध्य प्रदेश में भी मुस्लिम समुदाय इसका समर्थन कर सकता है, यदि उन्हें अन्य प्रमुख दलों में अपनी समस्याओं का समाधान नहीं मिलता है।

कांग्रेस में ही आंतरिक दबाव बढ़ाना

मुस्लिम समुदाय के वोटर्स कांग्रेस पार्टी में बने रहकर आंतरिक दबाव भी बना सकते हैं, ताकि पार्टी उनकी चिंताओं  की उपेक्षा न करे और कार्यकारिणी या प्रमुख फैसलों में मुस्लिम समुदाय का  सहभागिता बढ़ाए। यह तब संभव है जब समुदाय के नेता पार्टी के भीतर से बदलाव की मांग करें और पार्टी की नीतियों को प्रभावित करने का प्रयास करें।


वोट न डालने या नोटा का प्रयोग

यदि मुस्लिम समुदाय के वोटर्स को किसी भी पार्टी में अपनी उचित भागीदारी या प्रतिनिधित्व नहीं दिखाई देता, तो संभव है कि वे निराश होकर चुनाव में भागीदारी न करें या नोटा (नन ऑफ द अबव) का विकल्प चुनें। हालांकि, इससे राजनीतिक ताकत कम हो सकती है और इससे उनकी चिंताओं का समाधान और कठिन हो सकता है।


मुस्लिम वोटर्स की राजनीतिक दिशा कांग्रेस के अगले कदम पर निर्भर करेगी। यदि कांग्रेस मुस्लिम समुदाय को अपनी रणनीति में उचित स्थान नहीं देती है, तो समुदाय का झुकाव उन विकल्पों की ओर हो सकता है, जो उनकी  समस्याओं का  समाधान करने के लिए तैयार हों। राजनीतिक परिदृश्य में यह बदलाव कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है,जिस वजह से क्षेत्रीय दलों को इसका लाभ मिल सकता है।

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