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जीवन की यात्रा एक बेहद गूढ़ और गहन विषय है, जो हर व्यक्ति के अनुभवों, विचारों, और भावनाओं से जुड़ी होती है।

जीवन की यात्रा एक बेहद गूढ़ और गहन विषय है, जो हर व्यक्ति के अनुभवों, विचारों, और भावनाओं से जुड़ी होती है।

यह यात्रा समय के साथ परिपक्व होती जाती है, और हर नए वर्ष के साथ हम नए अनुभवों को जोड़ते हुए जीवन के विभिन्न रंगों को महसूस करते हैं। आज हम सोलह अक्टूबर को  अपने 59 वे  जन्म दिवस पर जीवन  यात्रा के उन पहलुओं पर आपसे हम  अपने अनुभव साझा करेंगे   जो हमें हमारे मूल से जोड़ते हैं, और कभी-कभी हमें हमारे खुद से भी दूर कर देते हैं।

जीवन एक यात्रा का आरंभ

जब हम जीवन की शुरुआत करते हैं, तो हमारे पास कोई भी पूर्व ज्ञान नहीं होता। यह एक शुद्ध और निर्मल अवस्था होती है। हमारे चारों ओर का संसार नया और अदभुत होता है।   हम जैसे-जैसे  बड़े  हुए दुनिया को समझने की कोशिश शुरू हुई   हर कदम पर  हमें कुछ   नया सीखने को मिला  और हम अपने आस-पास के लोगों और , समाज,के परिवेश में ढलते  चले गए
बचपन में  अपने  हम मूल स्वभाव के काफी निकट थे । किसी प्रकार की न कोई चिंता थी  और न ही कोई बड़ा लक्ष्य।  अपने हर अनुभव में  मै पूरी तरह डूब जाता  था और उन पलों को  खुशी जीता यही वह अवस्था है, जिसे  उम्र बढ़ने के साथ धीरे-धीरे मै  खोने  लग गया  । जैसे-जैसे जीवन की जिम्मेदारियां और दायित्व  का बोझ  कंधों पर आया    मैं खुद को अपने मौलिक रूप से दूर होता पाया ।

क्या खोया, क्या पाया?

जीवन के इस अनंत प्रवास में, सवाल यह उठता है कि हमने क्या खोया और क्या पाया? इस बात का उत्तर कोई सामान्य नहीं हो सकता, क्योंकि हर व्यक्ति का अनुभव अलग होता है। फिर भी, एक बात जो सभी में समान होती है, वह है समय का सतत प्रवाह।

वर्ष दर वर्ष, हम चीज़ों, लोगों, और परिस्थितियों को खोते आए  हैं। दोस्ती टूटती है, रिश्ते बदलते हैं, और हमारे सपने भी समय के साथ  बदलते गए । इस उधेड़बुन  में, हम कई बार खुद को खो  दिया हैं। अपनी  मासूमियत, वह सहजता, और वह निर्दोषता जो बचपन में  साथ थी, वह कहीं खो गई।

परंतु यह भी सत्य है कि इस खोने के साथ ही  मैने बहुत कुछ पाया भी है। जीवन के उतार-चढ़ाव को सहा भी और  जीवन को पानी की तरह घूट   घूट पिया  भी और उससे सीखकर हम और भी मजबूत हुए हैं। हमने अपने भीतर की शक्ति को पहचाना है, और उसे दिशा देने का प्रयास किया है। अगर ध्यान से देखें, तो यह खोने और पाने का खेल ही जीवन की सच्चाई है।

खुद से दूर और खुद से मिलने की यात्रा

जीवन के किसी भी मोड़ पर, जब हम खुद को खुद से दूर पाते हैं, तब वह पल बड़ा निराशाजनक होता है। यह वह समय होता है जब हम आत्म-चिंतन और आत्म-निरीक्षण से दूर हो जाते हैं। जीवन की दौड़ में हम इतने उलझ जाते हैं कि हमें अपनी ही पहचान धुंधली नजर आने लगती है।

लेकिन यही वह समय भी होता है, जब हम अपने भीतर एक गहरी लालसा महसूस करते हैं—खुद से मिलने की। यह  जीवन का बेहद मार्मिक और महत्वपूर्ण मोड़ होता  है, जहां हम अपने अस्तित्व को फिर से खोजने का प्रयास करते हैं। खुद से मिलना एक मानसिक, भावनात्मक, और आध्यात्मिक प्रक्रिया होती है। यह प्रक्रिया हमें हमारी जड़ों से जोड़ती है, और यह एहसास दिलाती है कि हम जीवन में चाहे कितनी भी दूर निकल आएं, हमारी आत्मा का स्रोत हमारे भीतर ही है।

खुद की जमीन पर पैर जमाकर रखना

जीवन की यात्रा में एक और महत्वपूर्ण पाठ जो हमें मिलता है, वह है “खुद की जमीन पर पैर जमाकर रखना।”  केवल शारीरिक रूप से नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक रूप से भी खुद को स्थिर और संतुलित रखना होता है।

जब हम अपने मूल्यों, सिद्धांतों और आत्मिक सत्य के साथ जुड़े रहते हैं, तब हम जीवन की हर परिस्थिति का सामना मजबूती से करते हैं। चाहे जीवन में कितनी भी चुनौतियाँ आएं, हम अपनी आंतरिक शक्ति से उन्हें पार करने की जद्दोजहद करते हैं।

यही वह अवस्था होती है, जब हम खुद से जुड़े रहते हैं। इस जुड़ाव में एक अद्भुत संतुलन होता है, जो हमें जीवन के हर पहलू को शांतिपूर्वक स्वीकार करने की क्षमता देता है।

जीवन अनंत की यात्रा

जीवन केवल एक निश्चित समय तक की यात्रा नहीं है, बल्कि यह अनंत है। यह यात्रा केवल शारीरिक रूप से नहीं, बल्कि आत्मिक रूप से भी चलती रहती है। जब हम इस जीवन से विदा लेते हैं, तब भी हमारी आत्मा की यात्रा चलती रहती है।

इस अनंत यात्रा में हमारा हर अनुभव, हर विचार, और हर भावना महत्वपूर्ण होती है। यह यात्रा हमें जीवन के गहरे अर्थ को समझने का अवसर है, और यह जीवन केवल बाहरी घटनाओं और उपलब्धियों तक सीमित नहीं है।
जीवन की यात्रा का सार है।

जीवन की यात्रा में  हम चाहे कितनी भी दूर चले जाएं, अंततः हमें अपने भीतर लौटना होता है। हमने क्या खोया और क्या पाया, यह केवल बाहरी दृष्टिकोण से देखने का विषय नहीं है। वास्तविकता यह है कि हर अनुभव हमें हमारे मूल के और करीब ले जाता है।

खुद से खुद मिलने की यह यात्रा कठिन हो सकती है, लेकिन यही वह यात्रा है जो हमें जीवन के असली उद्देश्य और आनंद से परिचित कराती है। जब हम अपनी जमीन पर पैर जमाकर चलते हैं, तब हम जीवन की हर परिस्थिति का सामना साहस और धैर्य से करना पड़ता है।
जीवन की यह यात्रा अनंत है, और यह हमें अपने भीतर की असीम संभावनाओं से अवगत कराती है। यही जीवन का वास्तविक अर्थ  है—खुद से जुड़ना, खुद से दूर होना, और फिर से खुद से मिलना।

जीवन की यात्रा केवल बाहरी दुनिया में घटित नहीं होती, बल्कि यह एक आत्मिक प्रक्रिया भी है, जिसमें हम अपने आप को हर दिन थोड़ा और  थोड़ा खोजने  और पहचानने की कोशिश करते  हैं।

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