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दुनिया को एक अपूरणीय क्षति हुई है।  अपने  जीवन यात्रा  की एक  विरासत  छोड़ गए

दुनिया को एक अपूरणीय क्षति हुई है।  अपने  जीवन यात्रा  की एक  विरासत  छोड़ गए

अंतिम दिन और मृत्यु

रतन टाटा का जीवन प्रेरणादायक और अनुकरणीय था। वे एक ऐसे व्यक्ति थे जो न केवल व्यवसाय में सर्वोत्तम  थे, बल्कि अपने दयालु और परोपकारी स्वभाव के लिए भी जाने जाते थे। उनकी मृत्यु  आज 10 अक्टूबर 2024 को  हो गई ,

रतन टाटा एक महान उद्योगपति, परोपकारी, और समाज सेवक के रूप में  जाने माने गए उनका जीवन लोगो के लिए  प्रेरणा दायक का स्रोत रहा है, और उनकी दूरगामी  सोच और नेतृत्व ने भारत और दुनिया भर में टाटा समूह को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। रतन टाटा के जीवन की यात्रा बचपन से लेकर उनकी मृत्यु तक कई उतार-चढ़ाव से भरी रही है।

प्रारंभिक जीवन और बचपन

रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) में एक पारसी परिवार में हुआ था। वे टाटा परिवार के प्रमुख सदस्य थे, जो भारत के सबसे प्रतिष्ठित और पुरातन व्यवसायी परिवारों में से एक है। रतन टाटा के पिता नवल टाटा और मां सूनू टाटा थीं। बचपन में उनके माता-पिता के बीच तलाक हो गया था, और रतन टाटा को उनकी दादी, नवाजबाई टाटा, ने पाला।

शुरुआती शिक्षा उन्होंने मुंबई के कैंपियन स्कूल में प्राप्त की और फिर कैथेड्रल और जॉन कॉनन स्कूल से अपनी पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने अमेरिका के कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चर की डिग्री प्राप्त की और हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एडवांस्ड मैनेजमेंट प्रोग्राम भी पूरा किया।

टाटा समूह में योगदान

रतन टाटा ने 1961 में टाटा समूह में प्रवेश किया, जहां उन्होंने सबसे पहले टाटा स्टील में काम शुरू किया। उन्हें साधारण से कामों में लगाया गया था ताकि वे जमीनी स्तर से अनुभव हासिल कर सकें। इसके बाद, उन्होंने धीरे-धीरे कंपनी के अन्य हिस्सों में भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ संभालनी शुरू कीं।

1991 में, रतन टाटा को जे.आर.डी. टाटा के उत्तराधिकारी के रूप में टाटा समूह का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उनके नेतृत्व में, टाटा समूह ने कई सफलताएं हासिल कीं। उन्होंने टाटा मोटर्स के लिए पहला स्वदेशी कार ‘इंडिका’ और दुनिया की सबसे सस्ती कार ‘टाटा नैनो’ लॉन्च की, जो उनके विज़न और तकनीकी नवाचार का प्रमाण है।

रतन टाटा की समाज सेवा

रतन टाटा न केवल एक सफल उद्योगपति थे, बल्कि वे एक अत्यंत संवेदनशील और दयालु व्यक्ति भी थे। उनका समाज के प्रति प्रेम और सेवा का दृष्टिकोण  ही उन्हें सबसे जुदा बनाता  था। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। टाटा ट्रस्ट्स, जो टाटा समूह का परोपकारी अंग है, समाज सेवा में उनकी  लगन  को दर्शाता है।

रतन टाटा ने सैकड़ों करोड़ रुपए स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, ग्रामीण विकास, और आपदा प्रबंधन के लिए दान किए। वे एक निस्वार्थ परोपकारी थे जिन्होंने कभी भी अपनी प्रसिद्धि का इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि चुपचाप लोगों की मदद करते रहे।

अंतर्राष्ट्रीय पहचान

रतन टाटा ने न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई। उनके नेतृत्व में टाटा समूह ने कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियों का अधिग्रहण किया, जिनमें ब्रिटिश स्टील कंपनी कोरस और प्रतिष्ठित मोटर कंपनी जगुआर-लैंड रोवर शामिल हैं। इसने टाटा समूह को वैश्विक मंच पर एक शक्तिशाली उपस्थिति प्रदान की।

पुरस्कार और सम्मान

रतन टाटा को उनकी असाधारण सेवाओं और उपलब्धियों के लिए अनेक सम्मान और पुरस्कार मिले। उन्हें 2000 में पद्म भूषण और 2008 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया, जो भारत के तीसरे और दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार हैं।

उनकी विनम्रता और शांति उन्हें दूसरों से अलग बनाती थी। वे अक्सर सादगी भरा जीवन जीते थे और उनकी सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाने की प्रतिबद्धता ने उन्हें “गरीबों के मसीहा” और “दानवीर कर्ण” जैसे उपनाम दिए।

दस अक्टूबर नवमी तिथि उनका अंतिम दिन और मृत्यु

रतन टाटा का जीवन प्रेरणादायक और अनुकरणीय था। वे एक ऐसे व्यक्ति थे जो न केवल व्यवसाय में उत्कृष्ट थे, बल्कि अपने दयालु और परोपकारी स्वभाव के लिए भी जाने जाते थे।  उनके जाने से देश और दुनिया को एक अपूरणीय क्षति हुई है।  एक  ऐसी  विरासत  दे गए  जिसे आने वाली पीढ़ियाँ सदैव याद रखेंगी।

रतन टाटा का जीवन  सफलता केवल धन और शक्ति से नहीं जाना गया बल्कि दूसरों की सेवा और मदद से  लोग जानते और मानते  थे उनके उद्यमिता और समाज सेवा के सफर ने उन्हें एक महान राष्ट्रभक्त और समाज सेवक के रूप में स्थापित किया।

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