धार रिश्वतखोरी के खेल में ‘वनपाल’ बने ‘धनपाल’
वन विभाग में भ्रष्टाचार का नया अध्याय शुक्रवार को उस वक्त खुला, जब इंदौर लोकायुक्त पुलिस ने धार जिले में डिप्टी रेंजर दयाराम वर्मा को रंगे हाथों 10,000 रुपये की रिश्वत लेते गिरफ्तार किया। दिलचस्प बात यह है कि वर्मा साहब का रिटायरमेंट महज एक महीने दूर है, लेकिन उन्होंने जाते-जाते अपनी “आखिरी हरियाली” काटने का भरसक प्रयास किया।
50,000 की ‘हरियाली डील’
आरोप है कि वर्मा ने अमझेरा निवासी दिनेश कोली से 10 बीघा वन भूमि का पट्टा दिलाने के एवज में पूरे 50,000 रुपये की मांग की थी। जब दिनेश ने रकम को लेकर मोलभाव करने की कोशिश की, तो वर्मा साहब ने सख्त लहजे में कहा, “कम में काम नहीं होगा।” परेशान होकर दिनेश ने इंदौर लोकायुक्त पुलिस से संपर्क किया।
लोकायुक्त पुलिस ने मामले की पूरी प्लानिंग की और 10,000 रुपये की पहली किस्त लेते हुए वर्मा को रंगे हाथों धर दबोचा। वर्मा साहब सरदारपुर वन विभाग में डिप्टी रेंजर के पद पर तैनात हैं।
हरियाली में अंधेरगर्दी
यह घटना वन विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार का एक और नमूना है। लगता है, वर्मा साहब ने रिटायरमेंट से पहले ‘पेंशन प्लान’ बनाने के बजाय ‘रिश्वत योजना’ को प्राथमिकता दी। लोकायुक्त की यह कार्रवाई यह भी सवाल खड़ा करती है कि क्या वन विभाग का काम पेड़ों की रक्षा करना है या भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी जमाना?
वन विभाग जंगल में मंगल या जंगलराज?
वन विभाग में रिश्वतखोरी की यह घटना यह दर्शाती है कि कैसे सरकारी कार्यालय रिटायरमेंट से पहले ‘फ्री-फॉर-ऑल’ का खेल खेलते हैं। क्या वर्मा साहब ने सोचा था कि आखिरी महीना “जंगल के राजा” की तरह बिताया जाएगा?
लोकायुक्त की इस कार्रवाई ने साबित कर दिया कि भ्रष्टाचार चाहे कितना भी गहरा क्यों न हो, उसकी जड़ें भी उखाड़ी जा सकती हैं। अब देखना यह होगा कि वर्मा साहब का ‘वनवास’ कितने दिनों तक चलता है।
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Kailash Pandey
Anuppur (M.P.)
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