सर्द दिसंबर की रात थी। अमरकंटक रोड के पास स्थित ग्राम किरर में एक 20 वर्षीय नवयुवती टूटी हुई हालत में भटक रही थी। उसके पांव सूजे हुए थे, बाल बिखरे और चेहरे पर गहरे तनाव की लकीरें साफ झलक रही थीं। उसने अपनी पहचान केवल “आशा” बताई, लेकिन उसकी आवाज़ और भावनाएं एक गहरी मानसिक पीड़ा की गवाही दे रही थीं। स्थानीय ग्रामीणों ने इसे एक सामान्य घटना समझकर नज़रअंदाज कर दिया, लेकिन किसी संवेदनशील दिल ने पुलिस अधीक्षक मोती ऊर्रहमान तक सूचना पहुंचा दी और फिर जाग उठी मानवता की उम्मीद
पुलिस की पहल मानवता की पहली किरण
कोतवाली, अनूपपुर के नगर निरीक्षक अरविंद जैन ने यह सूचना मिलते ही तत्काल महिला पुलिस बल को घटनास्थल पर भेजा। टीम जब मौके पर पहुंची, तो “आशा” को देखकर उनकी आंखों में करुणा उमड़ आई। उसे देखकर साफ था कि वह न केवल शारीरिक रूप से थकी हुई थी, बल्कि मानसिक पीड़ा से जूझ रही थी।
महिला आरक्षक कुंती शर्मा ने सबसे पहले उसके कंधे पर हाथ रखा और पानी का गिलास दिया । “आशा” की आंखों में आंसू थे—वेदना, अकेलेपन और अविश्वास का मिला-जुला भाव। लेकिन पुलिस टीम ने उसे सहारा देकर धीरे-धीरे वन स्टॉप सेंटर, अनूपपुर पहुंचाया।
वन स्टॉप सेंटर में जब “आशा” को गर्म कंबल और भोजन दिया गया, तो उसकी आंखों में पहली बार सुकून की झलक दिखाई दी। महिला काउंसलर ने धीरे-धीरे उससे बात की, लेकिन “आशा” अपने गहरे सदमे से बाहर आने में असमर्थ दिखी। उसके टूटे हुए शब्द उसकी अंदरूनी लड़ाई और मानसिक वेदना को बयां कर रहे थे।
नगर निरीक्षक अरविंद जैन ने इस वाक्या को महज एक औपचारिक कार्रवाई के रूप में नहीं देखा। उन्होंने “आशा” की स्थिति को समझते हुए, उसे एक बेहतर भविष्य देने की ठानी। “यह सिर्फ हमारी ड्यूटी नहीं, हमारी जिम्मेदारी है,” उन्होंने अपनी टीम से कहा।
महिला आरक्षक जानकी बैगा ने “आशा” का हाथ पकड़कर भरोसा दिलाया। इस पल ने “आशा” के दिल में एक छोटी-सी उम्मीद जगाई। यह मानवीय स्पर्श और सहृदयता ने उस युवती की पीड़ा को कम करने की कोशिश की।
न्याय और इलाज की दिशा में कदम
मेडिकल परीक्षण के बाद, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अनूपपुर के आदेश पर”आशा” को स्टेट मेन्टल हेल्थ हॉस्पिटल, बिलासपुर भेजा गया। उसकी मानसिक और शारीरिक स्थिति का इलाज किया जा रहा है।
आकाश में चमकते सितारे और सड़क पर ठंडी हवा के बीच, “आशा” अकेली खड़ी थी। उसके आस-पास का अंधेरा उसकी अंदरूनी तकलीफों का प्रतिबिंब था। जब पुलिस टीम उसके पास पहुंची, तो ऐसा लगा जैसे उस अंधकार में एक दीप जल उठा हो। वन स्टॉप सेंटर का माहौल, कंबल की गर्माहट, और महिला आरक्षकों के स्नेह ने उसके बिखरे हुए जीवन को सहारा दिया।
“आशा” का नया जीवन
अब “आशा” बिलासपुर अस्पताल में है। उसकी आंखों में डर कम और विश्वास ज्यादा है। नगर निरीक्षक अरविंद जैन और उनकी टीम ने यह साबित कर दिया कि मानवता की भावना में वह ताकत है, जो किसी टूटे हुए जीवन को भी नई दिशा दे सकती है।
एक छोटी-सी संवेदनशीलता और तत्परता किसी के जीवन में बड़ा बदलाव ला सकती है। यह घटना न केवल “आशा” की जिंदगी बदलने वाली है, बल्कि यह मानवता की जीत की मिसाल भी है।
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Admin
Kailash Pandey
Anuppur (M.P.)
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