ज्योतिषशास्त्र में वेध एवं वेधशालाओं का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रहनक्षत्रादि पिण्डों के अवलोकन को वेध कहते हैं। भारतवर्ष में वेध परम्परा का प्रादुर्भाव वैदिक काल से ही आरम्भ हो गया था। कालान्तर में उसका क्रियान्वयन का स्वरूप समय-समय पर परिवर्तित होते रहा है। कभी तपोबल के द्वारा सभी ग्रहों की स्थितियों को जान लिया जाता था। अनन्तर ग्रहों को वेध-यन्त्रों के द्वारा देखा जाने लगा। त्रिस्कन्धात्मक ज्योतिषशास्त्र के आधाररूप सिद्धान्त ज्योतिष की ग्रह-गणित परम्परा के अन्तर्गत वेधशालाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भारतवर्ष में वेध परम्परा प्राचीनकाल से ही चली आ रही है।
उज्जैन । सूर्य के विषुवत रेखा पर लंबवत होने के कारण 23 सितंबर को दिन रात की अवधि बराबर रहेगी। अर्थात दिन व रात 12-12 घंटे के रहेंगे। खगोल शास्त्र में इस घटना को शरद संपात कहा जाता है। शासकीय जीवाजी वेधशाला में शंकु तथा नाड़ीवलय यंत्र पर इस खगोलीय घटना को देखा जा सकता है।
हमें सूर्य कर्क रेखा से मकर रेखा की ओर गति करता दिखाई देता है। इस दौरान सूर्य वर्ष में दो बार 21 मार्च व 23 सितंबर को विषुवत रेखा पर लंबवत रहता है, इससे दिन व रात की अवधि बराबर होती है।
23 सितंबर को सूर्य की क्रांति 0 अंश 16 कला तथा 56 विकला दक्षिण पर होगी तथा सूर्य की स्थित सायन तुला राशि में 0 अंश 43 कला तथा 28 विकला पर होगी। इसका अर्थ है सूर्य उत्तरी गोलार्ध से दक्षिण गोलार्ध में प्रवेश करने लगेगा।




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