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“लौह इच्छाशक्ति जिसने भारत को एक सूत्र में पिरोया” — सरदार पटेल की जयंती पर राष्ट्र नतमस्तक

“लौह इच्छाशक्ति जिसने भारत को एक सूत्र में पिरोया” — सरदार पटेल की जयंती पर राष्ट्र नतमस्तक



“एक लौह पुरुष जिसने बिखरे भारत को एक किया — सरदार पटेल की जयंती पर जानिए वह अनसुनी कहानी जिसने इतिहास की दिशा बदल दी”
भारत का लौह पुरुष — एक दृष्टा, एक निर्णायक, एक एकता-पुरुष
31 अक्टूबर — यह तारीख केवल एक व्यक्ति की जयंती नहीं, बल्कि राष्ट्र की एकता और दृढ़ संकल्प की प्रतीक तिथि है।
सरदार वल्लभभाई पटेल, भारत के प्रथम उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री, जिन्होंने 564 रियासतों को एक राष्ट्र में समाहित कर भारत की राजनीतिक अखंडता की नींव रखी।
उन्हें “लौह पुरुष” कहा गया क्योंकि वे न तो दबाव में झुके, न प्रलोभन में आए।
जब देश विभाजन की पीड़ा से गुजर रहा था, तब पटेल ने दृढ़ निश्चय और अद्भुत कूटनीति से भारत को एक अखंड राष्ट्र बनाया — बिना किसी बड़े युद्ध या रक्तपात के।
जब सरदार ने इतिहास पलट दिया
1947 के बाद भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी — रियासतों का विलय।
ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता तो मिली, पर देश 562 टुकड़ों में बँटा हुआ था।
राजे-महाराजे, नवाब, निज़ाम — सभी अपनी-अपनी शर्तों पर अलग राष्ट्र चाहते थे।
तब सरदार पटेल ने अपने अडिग व्यक्तित्व और लौह दृढ़ता से “संघीय एकीकरण” का अभियान चलाया।
उन्होंने राजाओं से कहा
“यह मातृभूमि आपकी भी है, और उसकी रक्षा का धर्म आपका भी है।”
राजनयिक, कठोर और व्यवहारिक दृष्टिकोण से उन्होंने सभी को एक धागे में पिरो दिया।
हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर जैसे विवादित रियासतों को भी भारत का हिस्सा बनाने में उन्होंने निर्णायक भूमिका निभाई।
उन्हें लौह पुरुष क्यों कहा गया?
अडिग निर्णय क्षमता वे बिना झिझक सत्य और राष्ट्रहित के पक्ष में खड़े रहते थे।
राजनैतिक इच्छाशक्ति ब्रिटिशों की चालों के बावजूद उन्होंने एक भी रियासत को अलग नहीं होने दिया।
कूटनीतिक कौशल जहां नेहरू ने भावनात्मक दृष्टिकोण अपनाया, वहीं पटेल ने व्यवहारिक नीति अपनाई।
राष्ट्र की रीढ़ उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) और भारतीय पुलिस सेवा (IPS) जैसी संस्थाओं की नींव रखी, जो आज भी राष्ट्र की एकता की गारंटी हैं। गुजरात के करमसद से लौह युग की शुरुआत

गुजरात के नडियाद तहसील के करमसद गांव में 31 अक्टूबर 1875 को जन्मे पटेल ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालय से प्राप्त की।
वे साधारण किसान परिवार से थे, पर असाधारण साहस और आत्मबल के धनी थे।
लंदन से बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी कर लौटे पटेल ने स्वतंत्रता संग्राम में गांधीजी के साथ मिलकर खेड़ा, बारडोली और नागपुर सत्याग्रह का नेतृत्व किया।
यहीं से उन्हें “सरदार” की उपाधि मिली — जनता ने दी, किसी सरकार ने नहीं।
राष्ट्र की एकता का आधुनिक प्रतीक — ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’
सरदार पटेल के सम्मान में गुजरात के नर्मदा जिले में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण किया गया —
182 मीटर ऊँची यह मूर्ति आज विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा है।
यह न केवल सरदार की स्मृति का प्रतीक है, बल्कि भारत की अखंडता, स्वाभिमान और शक्ति का सजीव प्रतीक है।
विश्व को दिया एकता का सन्देश
जहां विश्व युद्धों और विभाजन की राजनीति में उलझा था, वहीं सरदार पटेल ने यह दिखाया कि राष्ट्र निर्माण तलवार से नहीं, संकल्प से होता है।
उनकी नीतियों ने न केवल भारत को एकजुट किया बल्कि भविष्य की पीढ़ियों को यह संदेश दिया
“राष्ट्र पहले — बाकी सब बाद में।”
सरदार पटेल की जयंती हमें यह याद दिलाती है कि राष्ट्र की ताकत भाषाओं, जातियों या सीमाओं में नहीं, बल्कि एकता में निहित है।
आज जब विश्व नए विभाजन और राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर रहा है, सरदार की नीति और दृष्टि पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है।
“एक भारत, श्रेष्ठ भारत” — यह नारा नहीं, सरदार की आत्मा का संदेश है।
आज हर भारतीय के मन में वही लौह संकल्प गूंजना चाहिए जो पटेल के हृदय में था।

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