
अनूपपुर/भालूमाड़ा।
न्यायिक मजिस्ट्रेट के आवास पर कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा कथित रूप से पत्थरबाज़ी, गाली-गलौज व तोड़फोड़ करने की गंभीर घटना के बाद पुलिस-प्रशासन पर सवाल उठने लगे थे। घटना के तुरंत बाद पुलिस ने सक्रियता दिखाते हुए शाम होते-होते आरोपियों को पकड़ लिया। इस कार्रवाई की सराहना हुई, लेकिन इसी बीच थाना प्रभारी संजय खलको को अचानक लाइन हाजिर करने के आदेश से पुलिस महकमे और स्थानीय जनों के बीच असंतोष देखा जा रहा है।
इसी क्रम में सोशल मीडिया पर कई पत्रकारों, युवाओं और नागरिकों ने नाराजगी व्यक्त की है और विभाग से स्पष्टता की मांग की है कि “आखिर दोष क्या था?”
सोशल मीडिया पर उठी आवाज़ें किसने क्या लिखा
रमाकांत शुक्ला
ने लिखा मै इस कारवाही की घोर निंदा करता हूं
अमीन वारसी “अपने कार्य के प्रति एक जिम्मेदार पुलिस अफसर को लाइन हाजिर करना बिल्कुल उचित नहीं। आखिर क्या कसूर था, विभाग इसे स्पष्ट करे।”
पवन पटेल (स्थानीय नागरिक/कार्यकर्ता) “शराब दुकान से बिक्री के विरोध में कार्रवाई के दौरान पत्रकार और युवा को धमकी देने वालों पर सख्त कदम उठाए गए। ऐसे में ईमानदार छवि वाले थाना प्रभारी को लाइन हाजिर करना निराशाजनक है।”
अहमद मुख्तार “आईजी को अपने फैसले पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। अपराधियों पर प्रभावशाली कार्रवाई करने वाले अधिकारी को हटाना मनोबल गिराने वाला कदम है।”
अन्य यूज़र्स ने भी पूछा “गरीबों के साथ ही क्यूँ? सबको समान समय और न्याय मिलना चाहिए।”
राजनैतिक व प्रशासनिक पृष्ठभूमि
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का पारसी ग्राम में शोक संवेदना हेतु अल्प प्रवास कार्यक्रम निर्धारित था। ऐसे में घटनाक्रम को लेकर पुलिस-प्रशासन विशेष दबाव में रहा। कई जानकारों का मत है कि यही त्वरित निर्णय का कारण बन सकता है।
जनभावना vs विभागीय निर्णय
जहाँ विभागीय आदेश को प्रशासनिक कार्रवाई का हिस्सा बताया जा रहा है, वहीं पुलिस व पत्रकार समुदाय के लोग इसे “कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी के प्रति अनुचित कदम” मान रहे हैं।
लोगों की माँग है कि यदि थाना प्रभारी से चूक हुई थी तो उसका तथ्याधारित कारण सार्वजनिक रूप से स्पष्ट किया जाए।
फिलहाल मामला चर्चा में है। पुलिस विभाग की ओर से इस निर्णय पर कोई आधिकारिक बयान अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।



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