
सतना 05 अक्तूबर। बाबा मेहर शाह दरबार के भव्य उद्घाटन समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परमपूज्य सरसंघचालक डॉ मोहन मधुकरराव भागवत उपस्थित हुए। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि संत सबके गुण को देखते हैं और तिनका मात्र भी जो गुणवान होता है उसको पर्वत के समान दिखाते हैं। सतना की पुण्य धरा में संत संगम के सूत्रधार संत पुरुषोत्तम दास जी का आभार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा की संतो की कृपा ही भारत को वैभवशाली बना रही है। गुरु के प्रति श्रद्धा ही व्यक्ति को भगवान से मिलाती है। गुरु के बिना ज्ञान संभव नहीं है। व्यक्ति भौतिकवाद की सुविधा में दौड़ लगा रहा है। भौतिकवाद में सुख की प्राप्ति नहीं होगी। भारत पर सिकंदर ने जब आक्रमण किया यहां सब कुछ पाया धन वैभव भोग किंतु वापस जाते समय मृत्यु के समय वह रोने लगा उस लोगों ने पूछा क्यों रो रहे हैं तो उसने कहा कि अब मैं मर जाऊंगा लेकिन खाली हाथ ही जाऊंगा। व्यक्ति खाली हाथ आता है और खाली हाथ जाता है किंतु बुद्धि का सुख उसे भौतिकवाद में लगा देता है। टूटे हुए दर्पण में आप चेहरा देखेंगे तो आपका चेहरा भी टूटा हुआ दिखाई देगा। इसी तरह हिंदू समाज भी भ्रमित है और आपस में टूटा हुआ दिखाई दे रहा है। किंतु हम सब एक हैं सब अपने-अपने स्वार्थ में धर्म अर्थ काम मोक्ष आध्यात्मिक परंपरा का दर्पण देख रहे हैं। अहंकार और स्वार्थ से विजय का बोध गुरु कराते हैं। स्व के बोध से हम सभी एक साथ जुड़े हैं ।
अंग्रेजो ने देश की संस्कृति को नष्ट किया
भारत के ऊपर जब अंग्रेज आये तो संस्कृति को ही नष्ट किए। जाति पंथ सम्प्रदाय भाषा मे बाटा था संघ और संत समाज राष्ट्र के लिए आवश्यक कार्य कर रहे हैं संपूर्ण विश्व में समाज का सुविचार ही देश को परम वैभव तक पहुचायेगा। इतिहास में उत्पन्न स्वरूप से हमे शिक्षा लेनी होगी।
अध्यामिक शक्ति ही भारत की शक्ति
स्वतंत्रता की लड़ाई में जितने संत क्रांतिकारी लड़े उन सब का मूल मंत्र और जो उद्देश्य था वह था सच्ची स्वतंत्रता और वह आध्यात्म से ही संभव हो पाई है।चाहे वो कोई भी विचारक रहे हो।
समाज को प्रारंभ स्वयं से करना होगा जितने भी लोग कार्य कर रहे हैं वह सब भारत माता के लिए कार्य कर रहे हैं। आज भारत माता आध्यात्मिक सत्य और महापुरुषों के जीवन तक उदाहरण है कि जब तक व्यक्ति त्याग नहीं करेगा तो उसे कुछ भी प्राप्त नहीं होगा।
गुरु एवं गुरु पुत्र के बलिदान त्याग में परंपरा सुरक्षित हैं हिंदू समाज का गौरव है।
स्व का भाव ही हमे राष्ट्रभक्त बनाएगा
डॉ भागवत ने भाषा भूषा भजन भ्रमण भजन भवन पर जोर देते हुए बताया की विविधता में एकता ही देश का श्रृंगार है। भाषा का जतन घर में होना चाहिए घर के अंदर हमारी भाषा का ज्ञान हमको होना चाहिए हम किसी भाषा के विरोधी नहीं है किंतु अपनी भाषा का ज्ञान अपनी भाषा का लिखना अपनी भाषा में बोलना पढ़ना यह हमारे लिए गौरव का विषय है। सभी को तीन भाषाएं आनी ही चाहिए
अपनी मातृभाषा, अपनी राष्ट्रभाषा, जिस प्रांत में हम रहते हैं उस राज्य की भाषा। अपनी वेशभूषा अपना भजन सब के बारे में जानना चाहिए किंतु अपने राम कृष्ण बुद्ध के बारे में जानना यह हमारा परम कर्तव्य है। भोजन नित्य का भजन और भजन भ्रमण में भी हमें स्व का ज्ञान होना चाहिए। प्राण जाए फिर भी नहीं छोड़ना चाहिए।
धर्म को नहीं छोड़ना ही हमारा गौरव है।
राष्ट्र धर्म का स्व का भाव होना चाहिए।संतो के सहयोग के बिना कुछ सम्भव नही।1857 के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज तक संत के मार्गदर्शन करते आ रहे हैं। जब देश को आवश्यकता लगी तब संत ही देश की स्वतंत्रता के लिए आगे आए थे उनके साथ गृहस्थ भी आगे आए थे। राष्ट्र मंदिर को परम वैभव के मंदिर पर ले जाने के लिए ही कार्य करना चाहिए।



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