
भोपाल, 09 सितम्बर 2025।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल बैठक में आज महापौर और नगर पालिका अध्यक्ष के प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली को हरी झंडी दे दी गई। इस फैसले ने जहां जनता को सीधा नेतृत्व चुनने का अधिकार दिया है, वहीं स्थानीय नेताओं और पार्षदों की कार्यशैली में खलबली मचा दी है।
क्यों मची खलबली?
अब तक पार्षदों का प्रभाव सबसे ज्यादा होता था क्योंकि महापौर और अध्यक्ष का चुनाव वे अपने मत से करते थे।
कई नेता पार्षदों की राजनीति के माध्यम से ही शक्ति संतुलन साधते थे।
लेकिन नई व्यवस्था में सीधा जनता से वोट मांगना पड़ेगा, जिससे स्थानीय नेताओं की पारंपरिक रणनीति कमजोर पड़ जाएगी।
जिन नेताओं की पकड़ केवल गुटबाजी और परिषद के भीतर समझौतों तक सीमित थी, वे अब जनता के बीच जाकर अपनी स्वीकार्यता साबित करने को मजबूर होंगे।
राजनीतिक समीकरणों पर असर
स्थानीय गुटबाजी पर चोट → पार्षदों के बहुमत के सहारे बनने वाले महापौर और अध्यक्ष अब इतिहास बन जाएंगे।
जनप्रिय नेता आगे आएंगे → जनता में अच्छी छवि और लोकप्रियता वाले उम्मीदवारों की जीत की संभावना अधिक होगी।
दलगत राजनीति तेज़ होगी → राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल अब सीधे जनता के लिए चेहरा खड़ा करेंगे।
स्थानीय नेतृत्व पर दबाव → हर नेता को विकास कार्य, पारदर्शिता और जनता से जुड़ाव दिखाना पड़ेगा।
सरकार की दलील
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा—
“यह फैसला लोकतंत्र को जनता तक सीधे पहुँचाने का प्रयास है। अब जनता का नेता जनता ही चुनेगी, किसी गुटबाजी या सौदेबाजी से नहीं।”
विपक्ष की प्रतिक्रिया
विपक्षी दलों का कहना है कि यह कदम चुनावी लाभ के लिए उठाया गया है। साथ ही उन्होंने सवाल उठाया कि क्या इससे पार्षदों की भूमिका सीमित हो जाएगी।
शहरी मतदाता इस फैसले से उत्साहित हैं। उनका कहना है कि अब उन्हें अपने शहर का सीधा नेतृत्व चुनने का अधिकार मिलेगा और वे ऐसे व्यक्ति को महापौर/अध्यक्ष बना सकेंगे जो उनके बीच काम करता है।
कुल मिलाकर, इस फैसले ने स्थानीय नेताओं की रणनीति और कार्यशैली को हिला दिया है। आने वाले निकाय चुनाव अब जनता बनाम नेता की असली परीक्षा होगी।



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