
कभी-कभी समाज के सबसे शालीन और अनुभवी नागरिक हमारे बुजुर्ग—ऐसे अकेलेपन और उपेक्षा का शिकार हो जाते हैं, जिसकी कल्पना भी उनके जीवन संघर्षों को जानने के बाद कठिन हो जाती है। लेकिन जब इस अंधेरे में कोई संवेदनशील नेतृत्व करुणा की मशाल लेकर आगे आता है, तो न सिर्फ एक जीवन फिर से मुस्कराता है, बल्कि समाज को भी इंसानियत का रास्ता दिखता है। अनूपपुर जिले में ऐसी ही एक मिसाल पेश की है पुलिस अधीक्षक श्री मोती ऊर्रहमान ने, जिनकी मानवीय पहल और संवेदनशील नेतृत्व ने एक 84 वर्षीय उपेक्षित बुजुर्ग को फिर से पारिवारिक छांव दिलाई ।
शासकीय जिला चिकित्सालय, अनूपपुर के एक साधारण वार्ड में, जहां न दवा की महक थी, न रिश्तों की गर्माहट—वहां एक वृद्ध अपने टूटते शरीर के साथ अपनों की बेरुखी से भी लड़ रहा था। 84 वर्षीय श्री मोहन कुशवाहा, जिन्हें उनके ही बेटों और बहुओं ने अस्पताल में छोड़ दिया था, पिछले पाँच दिनों से बेसहारा अवस्था में इलाजरत थे। कोई पास नहीं, कोई हालचाल पूछने वाला नहीं, केवल खामोशी और एक इंतज़ार—कि शायद कोई आए…।
इसी बीच सोशल मीडिया पर किसी सजग नागरिक द्वारा इस उपेक्षित बुजुर्ग की स्थिति को साझा किया गया। खबर जब अनूपपुर के पुलिस अधीक्षक श्री मोती उर रहमान तक पहुँची, तो संवेदनशीलता ने तत्परता का रूप ले लिया। इंसानियत के प्रहरी की भूमिका निभाते हुए उन्होंने बिना देर किए कोतवाली टीआई अरविन्द जैन को जिला चिकित्सालय भेजा।
एक खामोश जिला अस्पताल का कमरा…बिस्तर पर बैठा एक वृद्ध, जिसकी आंखों में उम्मीद और दिल में अकेलापन…
दरवाज़ा खुलता है—वर्दी में खड़े हैं अनूपपुर कोतवाली नगर निरीक्षक अरविन्द जैन और अन्य पुलिसकर्मी। चेहरे पर न कठोरता, न औपचारिकता—बल्कि एक बेटा-सा अपनापन।
“बाबूजी, चिंता मत कीजिए, अब हम हैं ना…”

इस एक संवाद ने उस पल को एक फिल्मी दृश्य बना दिया—लेकिन यह कोई स्क्रिप्ट नहीं थी, यह जमीनी इंसानियत की सच्ची कहानी थी।
परिवार से मिलन सच्चे न्याय की सामाजिक स्थिति
पुलिस न केवल इलाज में सहयोगी बनी, बल्कि श्री मोहन कुशवाहा जी को उनके घर पुरानी बस्ती ले जाकर बेटों—संतोष और मोहन कुशवाहा—एवं बहुओं से आमना-सामना कराया। शुरू में दोनों पक्षों में आपसी मतभेदों का हवाला दिया गया, लेकिन पुलिस की संवेदनशील समझाइश, मानवीय अपील और कर्तव्य की याद दिलाते संवादों ने बात बना दी।
यह केवल एक पारिवारिक पुनर्मिलन नहीं था, बल्कि पुलिस की सामाजिक उत्तरदायित्व के रूप में निभाई गई भूमिका का प्रमाण था।

एसपी मोती ऊर रहमान की अपील
बुजुर्गों की सहायता को लेकर पुलिस अधीक्षक श्री मोती उर रहमान ने एक एडवाइजरी जारी कर कहा
“जिले के सभी वरिष्ठ नागरिक यदि अपने परिवार या आस-पड़ोस से उपेक्षित या असहज महसूस करते हैं, तो बिना झिझक पुलिस से संपर्क करें। हम हर स्थिति में तत्परता से उनकी सहायता करेंगे।”
यह अपील सिर्फ एक निर्देश नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है एक ऐसी व्यवस्था का वादा जो अपने सबसे कमजोर वर्ग को भी सशक्त बनाती है।
यह कहानी केवल एक बुजुर्ग की नहीं, बल्कि हर उस इंसान की है, जो अकेलापन और असहायता से जूझ रहा है।
यह प्रशासन की सख्त छवि को संवेदनशीलता की नरमी से जोड़ने वाली एक मिसाल है।
नेतृत्व जब मानवीय हो, तो व्यवस्था विश्वास के कंधे बन जाती है।
SP मोती उर रहमान की यह पहल हमें याद दिलाती है कि पुलिस सिर्फ अपराध से नहीं, संवेदनहीनता से भी लड़ सकती है। यह कहानी बताती है कि जब ड्यूटी और इंसानियत एक साथ चलें, तो व्यवस्था केवल अनुशासन नहीं, सहानुभूति भी बांटती है।
इस घटना ने न केवल मोहन कुशवाहा जी के जीवन में एक नई रोशनी जलाई, बल्कि पूरे अनूपपुर जिले को यह संदेश दिया
संवेदनशील नेतृत्व, सामाजिक बदलाव की असली चाबी है।



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