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तीन साल में थक गई सत्ता! अनूपपुर की नगर पालिकाओं में कुर्सी बचाने की जंग शुरू

तीन साल में थक गई सत्ता! अनूपपुर की नगर पालिकाओं में कुर्सी बचाने की जंग शुरू

नगर पालिकाओं में संकट की घड़ी अनूपपुर जिले में कई अध्यक्षों पर मंडराया अविश्वास प्रस्ताव का साया, तानाशाही और भ्रष्टाचार से नाराज़ पार्षद ला सकते हैं अविश्वास प्रस्ताव
मध्य प्रदेश नगरीय निकायों में बदलाव की बयार अब सत्ता की कुर्सियों को भी हिला रही है। राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा तय तीन वर्ष के कार्यकाल को पार कर चुकीं नगर पालिका परिषदों में अब दो वर्षों का कार्यकाल शेष है, लेकिन इसी बीच अनूपपुर जिले की विभिन्न नगर पालिकाओं में अध्यक्षों के खिलाफ असंतोष की आंधी तेज हो गई है।

जिन परिषदों में अध्यक्ष का चुनाव सीधे जनता द्वारा नहीं, बल्कि निर्वाचित पार्षदों के जरिए हुआ था, वहां अब यह संभावना बनती जा रही है कि नाराज़ पार्षद अविश्वास प्रस्ताव लाकर अध्यक्षों को पदच्युत कर सकते हैं। सूत्रों के अनुसार, जिले की छह  निकायों में पार्षदों के बीच गहरी नाराजगी है।

नाराजगी के प्रमुख कारण

तानाशाही रवैया कई अध्यक्षों पर आरोप है कि वे परिषद की सामूहिक निर्णय प्रक्रिया की अनदेखी करते हुए व्यक्तिगत निर्णय थोप रहे हैं। समितियों को दरकिनार करना, पार्षदों को बिना जानकारी के प्रस्ताव पास करना और परिषद बैठकों को औपचारिकता मात्र बनाना गहरे असंतोष का कारण बना है।

भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप विकास कार्यों में भारी भ्रष्टाचार  अनियमितता, टेंडरों में अपारदर्शिता, अपने करीबी ठेकेदारों को लाभ पहुंचाना, सामग्री खरीदी में घोटाले, निकाय निधि के दुरुपयोग के आरोप सामने आए हैं।
विकास कार्यों में पक्षपात कुछ वार्डों में लगातार विकास कार्य कराए गए, जबकि अन्य क्षेत्रों की अनदेखी की गई, जिससे पार्षदों को जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ रहा है।
सत्ता और विपक्ष एक सुर में!
चौंकाने वाली बात यह है कि विरोध केवल विपक्षी दलों तक सीमित नहीं है। सत्तारूढ़ दल के पार्षद भी अपने ही पार्टी के अध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोलने को तैयार दिख रहे हैं। कुछ स्थानों पर बीजेपी के पार्षद बीजेपी अध्यक्ष से नाराज़ हैं तो कहीं कांग्रेस के पार्षद कांग्रेस अध्यक्ष को हटाने की रणनीति बना रहे हैं।
बीजेपी शासित नगरपालिका में बीजेपी पार्षद ही पीड़ित हैं
क्या कहते हैं जानकार?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नगरपालिका चुनावों के अगले चरण से पहले कई निकायों में समीकरण बदले जा सकते हैं। यदि अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो पुनः अध्यक्ष का चुनाव केवल पार्षदों के वोट से किया जाएगा, जो नए समीकरणों को जन्म देगा।
प्रशासन सतर्क, माहौल गर्म
प्रशासन ने संभावित राजनीतिक अस्थिरता को देखते हुए सजग हो गया है  नगर परिषदों के कुछ  सीएमओ भी अध्यक्ष की कुर्सी खिसकाने में जोड़ तोड़ में लगे हैं गुपचुप जिनमें कुछ  सब इंजीनियर भी शामिल हैं ।

अनूपपुर जिले में नगर पालिकाओं की राजनीति एक नए मोड़ पर पहुंच चुकी है। तीन साल बाद जब पार्षदों का धैर्य जवाब देने लगा है, तब अध्यक्षों को अपनी कुर्सी बचाना बड़ी चुनौती बन चुका है। अगर तानाशाही रवैया और भ्रष्टाचार का सिलसिला नहीं रुका, तो अगली परिषद बैठकों में कुर्सियां खाली होना तय है।

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Kailash Pandey
Anuppur
(M.P.)

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